हिंदूस्तान में तारीकी(अंधेरे) का दौर

हिंदूस्तान की निस्फ़ आबादी गुज़िश्ता दो दिन तारीकी में ग़र्क़ रही। ये सूरत-ए-हाल इस बात की मज़हर है कि हम तरक़्क़ी के मराहिल तए कर के भी कहां जा रहे हैं ? कोई हम से ये पूछे तो हम यही कहेंगे कि कहीं नहीं जा रहे हैं! इस तारीक और तकलीफ दह सूरत-ए-हाल में क्या हम मज़ीद आगे बढ़ सकते हैं ? हरगिज़ नहीं। ये बोहरान की कैफ़ियत फैलती जा रही है । इस के साथ ही अवाम की उम्मीदों पर पानी फिरता जा रहा है ।

ये लोग अपने सामने छा जाने वाले अंधेरे से परेशान हैं और आगे की सिम्त क़दम उठाना उन की बस की बात नहीं। बर्क़ी सरबराही में नाकामी के बाद पीर और मंगल के दिन अवाम ने जिन मुश्किलात का सामना किया है, ये नाक़ाबिल बयान है । सारी दौड़ती चलती फिर्ती अवामी ज़िंदगी यकलख़्त मफ़लूज होगई ।

क़ौम का ये स्याह मंज़र नामा हुकूमत की नाएहली की शहादत दे रहा था । बर्क़ी की सरबराही में नाकामी ने वज़ारत की सतह पर भी कई उलझनें पैदा करदी । बर्क़ी क़ुमक़ुमे बंद थे, आला क़ाइदीन ओवर टाइम करते हुए काम कर रहे थे। इस तारीकी में हुकूमत ने काबीना में रद्द-ओ-बदल का काम भी अंजाम दे दिया ।

लेकिन इन वुज़रा(म‍त्री) की सतह पर भी बर्क़ी बहाली को यक़ीन नहीं बनाया जा सका । इस से ये एहसास पैदा हुआ कि हुकूमत बुनियादी जरूरतों की फ़राहमी में भी नाकाम है। दरहक़ीक़त इस तारीकी ने हुकूमत की पोल खोल दी है । वो अवाम को पसमांदगी की सिम्त ढकेल चुकी है और अवाम तारीक दौर में पहूंच चुके हैं। इस बोहरान ने हिंदूस्तानी अवाम की अक्सरियत को हुकूमत के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त ब्रहम कर दिया ।

सरकार के साथ अवाम की ब्रहमी और इस के बाद जंतर मंतर‌ की सिम्त जाने वाले अवाम की मिक़दार में इज़ाफ़ा को देख कर अंदाज़ा होता है कि हिंदूस्तानी अवाम की अक्सरियत ना सिर्फ हुकूमत से नाराज़ है बल्कि इस पर शदीद ब्रहम भी है। बर्क़ी सरबराही में नाकामी ने अन्ना हज़ारे का काम आसान कर दिया।

कल तक जंतर मंत्र पर लोगों की भीड़ कम थी मगर तारीकी ने अवाम को अन्ना हज़ारे से करीब होने में मदद की । अवाम ने हुकूमत की नाएहली के ख़िलाफ़ जंतर मंतर‌ पर जमा होकर हल्ला बोल मुहिम चलाई। जी हाँ गुज़िश्ता चंद दिनों से अन्ना हज़ारे की टीम का साथ देने वाले लोगों की तादाद कम थी जहां ये लोग भूक हड़ताल पर बैठे हैं।

अवामी रद्द-ए-अमल में कमी ने इन भूक हड़तालियों को मायूस किया था लेकिन अब उन के चेहरों पर बहाली आई है। दरहक़ीक़त उन हड़तालियों के अतराफ़ पाई जाने वाली की सूरत-ए-हाल में हर हिंदूस्तानी की हालत का आईना है। ये लोग भी भूक और फ़ाक़ाकशी से दो-चार होकर बे यार-ओ-मददगार और बेबस होगए हैं।

अवाम का राबिता आज के दौर के इन वुज़रा यह आला ब्यूरो करीटस से नहीं है कीवनका उन की ज़िंदगी गुज़ारने की सूरत-ए-हाल बहुत पसमांदा है जबकि ये वुज़रा(मंत्री) और ब्यूरो करीटस ऊंची हवेली के मकान बड़े बंगलों के मालिक होते हैं। इन को वोट देने वाले लोग अंधेरे और झोंपड़ियों की ज़िंदगी गुज़ारते है ।

इस हक़ीक़त से आज तो कोई भी सियासतदां वाक़िफ़ नहीं है यह फिर वो इस सच्चाई से मना मोड़ लेता है । किसी भी सयासी जमात से वाबस्ता लीडर अवामुन्नास की मदद की फ़िक्र नहीं रखता बल्कि उसे अपनी ही फ़िक्र लाहक़ होती है । उसी मे अवाम के ज़हनों में उठने वाले इन सवालात का भी जवाब नहीं मिलता कि आख़िर उन की बुनियादी जरूरतों को कौन बेहतर बनाएगा ।

उन्हें दो बुनियादी चीज़ों खाना कौन फ़राहम करेगा और कुरप्शन से पाक निज़ाम देगा। इस ख़राबी के दरमियान सयासी राहदारियों में पाए जाने वाले ख़ला को देखते हुए हिंदूस्तानियों को जंतर मंत‌र से कुछ तवक़्क़ो होरही है । इस लिए इस मुक़ाम तक मर्द और ख़वातीन की तादाद बढ़ रही है ।

अगर ये लोग हिंदूस्तानियों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने केलिए भूक हड़ताल कर रहे हैं तो इस के फ़वाइद दिखाई देंगे वर्ना कुछ हासिल नहीं होगा। महाराष्ट्रा के एक गाव‌ का सीधा साधा शख़्स दिल्ली में इक़तिदार की बुनियादों को हिलाकर रख दिया है तो अवामुन्नास को भी इस तहरीक में हिस्सा लेने की तरग़ीब मिल रही है ।

इस ग्रुप का असल मुतालिबा जिन लोक पाल बिल की मंज़ूरी और इस पर अमल आवरी है। इस बिल को पार्ल्यमंट से हनूज़ मंज़ूर नहीं किया गया है । सयासी पार्टियों की जानिब से कई वाअदे किए जाते हैं मगर इन सब से किसी को भी पूरा नहीं किया जाता। ताहम अवाम एक स्वराज के इंतिज़ार में बैठे हैं।