हिंद , अफ़्ग़ान मुआहिदा

सदर अफ़्ग़ानिस्तान हामिद करज़ाई और वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह के दरमयान अफ़्ग़ान फ़ौज को तर्बीयत देने के लिए अपनी नौईयत के पहले हिक्मत-ए-अमली पर मबनी शराकतदारी के मुआहिदा पर दस्तख़त होने इस मुआहिदा को जंग ज़दा मुल़्क अफ़्ग़ानिस्तान के लिए बहुत बड़ी तबदीली समझा जा रहा है। सदर हामिद करज़ई ने पाकिस्तान को अपना जुड़वां भाई बताया तो हिंदूस्तान को एक अज़ीम दोस्त क़रार दिया लेकिन अफ़्ग़ान फ़ौज को तर्बीयत देने का मसला पड़ोसी मलिक पाकिस्तान की तहफ़्फ़ुज़ ज़हनी के बाइस ज़ेर अलतवा था। अफ़्ग़ानिस्तान से साल 2014तक बैरूनी अफ़्वाज के तख़लिया तक हिंदूस्तान ने इस मुल़्क की सीकोरीटी फ़ोर्स को तर्बीयत से इत्तिफ़ाक़ किया है। इस तजवीज़ पर गुज़श्ता 6 साल से ग़ौर किया जा रहा था। जब सदर अफ़्ग़ानिस्तान की हैसियत से हामिद करज़ई ने ज़िम्मेदारी सँभाली थी वो हिंदूस्तान से फ़ौजी तआवुन की ख़ाहिश रखते थे लेकिन पाकिस्तान की बेचैनी और दहश्तगर्दी के ख़िलाफ़ जंग में अमरीका का हलीफ़ मुल़्क होने की वजह से अफ़्ग़ानिस्तान में हिंदूस्तान के बढ़ते असरात फ़ौज की तर्बीयत तक पहूंच नहीं सके हालिया दिनों में अमरीका के साथ पाकिस्तान के ताल्लुक़ात में तल्ख़ी और हक़्क़ानी नट वर्क के साथ आई ऐस आई के गठजोड़ के इल्ज़ामात के बाद पाकिस्तान का दाख़िली और ख़ारिजी मौक़िफ़ पहले की तरह मूसिर नहीं रहा। सदर हामिद करज़ाई भी अपनी हुकूमत का झकाव हिंदूस्तान की जानिब करने के ख़ाहां मैं जारीया साल ही उन की वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह से ये तीसरी मुलाक़ात है। पाकिस्तान के मौजूदा हालात के लिए अमरीका को ज़िम्मेदार टहराने वाले लोग अफ़्ग़ानिस्तान की सूरत-ए-हाल के लिए भी उसे ही ख़ाती तसव्वुर करते हैं। जंग से मुतास्सिरा मुल्क में जहां तक इंसानी हुक़ूक़ के तहफ़्फ़ुज़ और इंसानियत पर मबनी इक़दामात का सवाल था इस के लिए हिंदूस्तान ने हर मुम्किना मदद की है। अब सीकोरीटी अफ़्वाज की तर्बीयत का मुआमला मुआहिदा की शक्ल इख़तियार कर रुलिया है तो अफ़्ग़ानिस्तान की दिन बह दिन होती अबतर सूरत-ए-हाल के पेशे नज़र हिंदूस्तान अपनी ज़िम्मेदारीयों को अदा करने के दौरान कुन मसाइल से दो-चार होगा। ये तो हालात पर मुनहसिर है, अफ़्ग़ानिस्तान के हालात पर नज़र रखने वाले हलक़ों ने ये तस्लीम करलिया है कि अफ़्ग़ानिस्तान में अमरीका कमज़ोर पड़ चुका ही। तालिबान की बढ़ती या दुबारा मुजतमा होती ताक़त ने ये साबित करदिया है कि अमरीकी इत्तिहादी अफ़्वाज की मौजूदगी के बावजूद अफ़्ग़ानिस्तान में मईशत तबाह है। इन्फ़िरा स्ट्रकचर के तामीर-ए-नौ प्रोग्राम कामयाब नहीं है। बे यक़ीनी की सूरत-ए-हाल के बाइस अफरा तफरी मची हुई है। अफ़्ग़ानिस्तान में क़ियाम अमन के लिए आलमी ताक़तों के अहम और मुसबत किरदार का कोई बेहतर नतीजा बरामद नहीं हुआ । अमरीका के तमाम आला फ़ौजी ओहदेदारों ने दहश्तगर्दी के ख़िलाफ़ जंग में नुक़्सानात का तजज़िया करने में ही अपना वक़्त ज़ाए क्या । ऐसे हालात में सदर अफ़्ग़ानिस्तान को अपने मुल़्क की सलामती क़ियाम अमन की फ़िक्र के इलावा ख़ुद मुकतफ़ी होने की फ़िक्र लाहक़ ही। हिंदूस्तान ने अब तक इंसानियत पर मबनी कई पराजकटस अंजाम दिए हैं और इस के इव्ज़ उसे अफ़्ग़ानिस्तान में अपने अमला को दहश्तगर्दी का निशाना बनना भी पड़ा है। सिफ़ारतख़ाना पर किए गए हमलों के इलावा दीगर अग़वा, क़तल जैसे ख़तरात से भी गुज़रना पड़ा। फिर भी हिंदूस्तान ने अपने वाअदा की तकमील की राह से पीछे हटने की कोशिश नहीं की। सयासी और सैक्योरिटी तआवुन के इलावा इस मलिक के साथ ख़ुसूसी तिजारती-ओ-मआशी तआवुन को भी बरक़रार रखा। हामिद करज़ई का ये दौरा हिंदूस्तान हालिया दिनों अफ़्ग़ानिस्तान में रौनुमा हुए वाक़ियात ख़ासकर साबिक़ सदर और अमन की बहाली के लिए काम कररहे साबिक़ सदर बुरहान उद्दीन रब्बानी के क़तल के पस-ए-मंज़र में एहमीयत रखता ही। तालिबान ने काबुल हुकूमत के अहम ज़िम्मेदारों को हलाक किया है। इन में हामिद करज़ई के सौतेले भाई और क़ंधार सुबाई कौंसल के सरबराह अहमद वली करज़ई को अपनी जान से हाथ इस लिए धोना पड़ा क्यों कि ये लोग अमन पेशरफ़त में मसरूफ़ थी। इन हालात के तनाज़ुर में ही वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह और हामिद करज़ई ने बाहमी मुआहिदों पर दस्तख़त के बाद ये वाज़िह किया कि ये मुआहिदे किसी मुल़्क या ग्रुप के ख़िलाफ़ नहीं हैं। सयासी और सलामती के शोबों में दोनों मुल्कों के मुस्तक़बिल के तआवुन के लिए इदारा जाती ढांचा के तहत हिक्मत-ए-अमली पर मबनी शराकतदारी का मुआहिदा अपने मक़सद को पूरा करने में कामयाब होतो इस मलिक के मआशी तआवुन, तालीम और समाजी, सक़ाफ़्ती शहरी मुआशरा के इलावा अवाम से अवाम के राबिता को फ़रोग़ देने में मदद मिलेगी। अफ़्ग़ानिस्तान में दिन बह दिन रौनुमा होने वाले हालात पर आलमी सतह के मुहज़्ज़ब अक़्वाम अपनी ज़िम्मेदारीयों पर सिर्फ तवील लकचर देते आरहे हैं। दहश्तगर्दी के ख़िलाफ़ जंग को सख़्त बनाने पर ग़ौर किया जाता है लेकिन इस के असरात से मुतास्सिर होने वाले अवाम की ज़िंदगीयों पर तवज्जा नहीं दी जाती यही वजह है कि अफ़्ग़ानिस्तान में अक़्वाम की इत्तिहादी फ़ौज अपने मक़ासिद में कामयाब नहीं होसकी। अफ़्ग़ान अवाम की बड़ी तादाद आज भी अपनी ज़िंदगीयों में इन ताक़तों को ही तस्लीम किया है जो अमन के लिए ख़तरा बन रहे हैं। अफ़्ग़ानिस्तान के अवाम ने अपनी ख़ुदी को पुख़्ता करने की हिक्मत इख़तियार नहीं की गई। अब ओबामा नज़म-ओ-नसक़ अफ़्ग़ान जंग के इक़तिसादी बोझ से तंग आचुका है इस सरज़मीन से निकलने के रास्ते तलाश कररहा है। इस लिए अफ़्ग़ान हुक्मराँ को अपनी अफ़्वाज की तर्बीयत के लिए हिंदूस्तान जैसे बेहतरीन पड़ोसी मलिक के सिवा कोई और नहीं होसकता। इस बाहमी हिक्मत-ए-अमली को दूसरे पड़ोसी मुलक या किसी ग्रुप के ख़िलाफ़ ना होने का यक़ीन दिलाना ज़रूरी है ताकि ग़ैर ज़रूरी शकूक-ओ-शुबहात से हालात पेचीदा ना हों।