हिज़ाब मेरे लिए मजहबी और विरासती हक़

लेखक – शीबा खान

एक तरफ़ तो हमारा समाज लड़कियों के छोटे छोटे कपड़े पहनने पर एतेराज़ करता है और दूसरी हिजाब लगाने वाली लड़कियों को दकियानूसी समझता है। जब एक मुस्लिम औरत पर्दा करती हैं तो अल्लाह की खुशी के लिए यानी ईश्वर के आदेश के कारण। ताकि वो ऐसी औरत के रूप में पहचानी जाएं जिसकी इज्जत और सम्मान किया जाना चाहिए ना कि छेड़छाड़ या शोषण। इससे वो पुरुषों की घूरने वाली निगाहों से बची रहती हैं ! पर्दे जैसी शालीन लिबास एक ऐसा प्रतीक है जिससे दुनिया को यह संदेश मिलता है कि औरत का बदन आम लोगों के लिए उपभोग और उत्पीडऩ का सामान नहीं है।’ अगर कोई औरत अपनी सुरक्षा को लेकर जगरूक हैं तो समाज़ का फर्ज होना चाहिए कि उसको इज्जत दे ! हिज़ाब मुस्लिम औरतों का धार्मिक अधिकार हैं जिसे उनसे कोई नहीं छीन सकता ! कुछ लोगों का मानना हैं कि हिज़ाब मुस्लिम औरतों को उनकों दबाने के लिए तथा उनको जोर जबरदस्ती से पहनाया जाता हैं और वो हिज़ाब पहनी हुई औरतों को दया भावना से देखती हैं और यह सोच रखती हैं कि इस्लाम धर्म में तो औरत के साथ दोयम दर्जे के नागरिक जैसा बर्ताव किया जाता है।’ जबकि ‘उस दौर में जब पाश्चात्य मुल्कों में औरत को पुरुष की प्रोपर्टी समझा जाता था, ऐसे दौर में इस्लाम ने मैसेज दिया कि अल्लाह की नजर में मर्द और औरत एक समान हैं। दोनों का दर्जा बराबर है। इस्लाम ने शादी के मामले में औरत की सहमति को अनिवार्य बनाया, उसे विरासत में हक दिया, अपनी सम्पति रखने, व्यापार करने का अधिकार दिया।
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‘जब पाश्चात्य देशों में महिला-अधिकारों के बारे में सोचा गया था उससे लगभग 1250 साल पहले ही इस्लाम ने औरत को यह सब अधिकार दे दिए थे। इस्लाम एक ऐसा मज़हब हैं जो महिलावादी सोच के अनुकूल हैं ! परदा मुस्लिम समा़ज की पहचान रहा हैं और हिजा़ब उनके लिबास का एक हिस्सा ! उसके साथ छेडछाड़ मुस्लिम समाज़ की भावना को चोट पहुँचाना ! भारत जैसे देश जिसमें अनेक धर्म, जाति और वर्ण के लोग रहते हैं उस देश मे परस्पर तालमेल बैठाकर चलना अत्यंत जारूरी हैं !
आश्चर्य है के जिस देश में भूख, बेरोज़गारी और शिक्षा पर बात होनी चाहिए और प्राथमिकताएं यही होनी चाहियें वहाँ हिज़ाब जैसे मुद्दे पर इतनी गम्भीर चर्चा का क्या औचित्य है ?

औरतों का घूंघट भारतीय समाज की परम्परा में शामिल रहा है चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम, हाल ही में दिल्ली में मैट्रों ट्रेन में सफर करने पर मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने को जिस प्रकार प्रतिबंधित किया गया है उसने एक बार फिर देश को ये सोचने पर विवश कर दिया है कि संविधान में धर्म के आधार पर जो उनके अनुयायियों को उसको मानने की स्वत्रतंता दी गयी है क्या उसमें मुसलमान भी आते हैं? मुसलमानों में हिजाब एक मज़हबी पहनावे की तरह ही माना जाता है जिसमें महिलायें अपने चेहरे को ढक कर समाज के अराजक तत्वों से अपनी रक्षा करती हैं।

संवैधानिक तौर पर भी मैट्रो में मुस्लिम महिलाओं को हिजाब न पहनने देना उनके धर्म की निजी स्वात्ता का हनन है , हिजाब की आड में मुस्लिमों के साथ किये जाने वाले ये द्वेष पूर्ण कार्य ये बताने के लिये काफी है कि आज देश के बहुसंख्यक समाज को मुस्लिमों के साथ होने वाले इस असंवैधानिक कार्यों में भी मौन समर्थन प्राप्त है । बहुसंख्यकों आखिर तुम्हारी इतनी सी बात समझ क्यों नहीं आती कि संविधान की आड में होने वाले मुस्लिमों पर ये अत्याचार सबसे पहले संविधान की खुली अवमानना है जिसपर तुम फक्र करते हो , याद रखना इंसाफ रहेगा तभी सविंधान बचा पाओगे ।