हिजाब के खिलाफ यूरोपीय संघ की अदालत का फैसला समानता और स्वतंत्रता के खिलाफ: मौलाना महमूद मदनी

नई दिल्ली: जमीयत उलेमा हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने यूरोपीय संघ के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हिजाब से संबंधित फैसले पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए इसे मानवाधिकार, समानता और स्वतंत्रता के खिलाफ बताया है। उल्लेखनीय है कि वहां की अदालत ने यूरोपीय कंपनियों को इस बात की अनुमति दी है कि वह अपने कर्मचारियों को इस्लामी हिजाब सहित हर उस वास्तु के पहनने पर पाबंदी लगा सकती हैं, जिस से किसी धर्म विशेष या राजनीतिक विचारधारा का प्रचार होता हो।

मौलाना मदनी ने इस संबंध में ब्रिटिश प्रधानमंत्री थरेसामय के इस बयान की पुष्टि की है जिसमें उन्होंने कहा है कि महिलाएं क्या पहनें और क्या नहीं पहनें, यह बताना सरकार का काम नहीं है। मौलाना मदनी ने कहा कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने वास्तव में,सच्चाई को उजागर किया है कि अगर पश्चिम में महिलाएं,स्वतंत्रता और समानता का अधिकार रखती हैं तो फिर एक वर्ग ही क्यों आजादी का लाभ उठाए और दूसरे वर्ग की स्वतंत्रता छीन ली जाए?

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प्रदेश 18 के अनुसार, मौलाना मदनी ने अन्य यूरोपीय देशों का ध्यान आकर्षित किया है कि वह ब्रिटिश प्रधानमंत्री की इस सकारात्मक और रचनात्मक सोच को अपना कर यूरोप में अल्पसंख्यकों के प्रति हिंसक और उग्र विचारधारा वाले लोगों के आक्रमण पर लगाम लगाएं। मौलाना मदनी ने कहा कि यूरोप जो मानव मूल्यों, स्वतंत्रता और समानता के सबसे बड़े अलमबरदार होने का दावा करता है, वहाँ की अदालत से इस तरह के निर्णय की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने कहा कि दुनिया के हर कोने में मुट्ठी भर हिंसक और पक्षपातपूर्ण लोग हैं, जो इस्लामी पहचान के हवाले से हिजाब और मुस्लिम महिलाओं की जीवन शैली को निशाना बनाते हैं, हाल के दिनों में इस तरह घटनाएं अधिक हो रही हैं, और ऐसी स्थिति में अदालत की ओर से इस तरह के निर्णय आने से जातीय आधार पर भेदभाव में वृद्धि होने का ख़तर है, तथा ऐसी सोच और फैसलों से यूरोप में रह रहे मुसलमानों का विश्वास कमजोर होगा।

मौलाना मदनी ने उम्मीद जताई है कि यूरोप और पश्चिमी देशों के सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति और मानवाधिकार संगठन, किसी खास संस्कृति और परंपरा के खिलाफ चलाई जा रही उग्र और नकारात्मक आंदोलन को विफल बना देंगे, स्वतंत्रता राय और मानव अधिकारों का हनन नहीं होने देंगे।