हिजाब कभी तरक़्क़ी में हाइल नहीं होता, इसका सबूत ख़लीजी ममालिक की हिजाब पहनी एथलीट्स के हालिया अर्सा में शानदार मुज़ाहिरों ने ज़ाहिर कर दिया है। अब जबकि कल 14 फरवरी को क़तर अपना पहला नेशनल स्पोर्टस डे मना रहा है , इस मौक़ा पर एजूकेशन सिटी में ख़ातून एथलीट और उन की कोच्स से हिजाब पहनी एथलीट के मुज़ाहिरों के मुताल्लिक़ जो सर्वे किया गया इस में ना सिर्फ फ़ुतूहात के हौसला अफ़ज़ा-ए-नताइज दर्ज किए गए हैं बल्कि अक्सरियत का ये कहना है कि स्पोर्टस में ख़वातीन ख़ुद को ख़ुद मुकतफ़ी महसूस करती हैं।
नीज़ हिजाब उन के लिए कभी भी रुकावट साबित नहीं हुआ है।हालिया अर्सा में ख़लीजी ममालिक की बेशतर एथलीट्स ने हिजाब के साथ मुख़्तलिफ़ स्पोर्टस में शिरकत की है जिस में फुटबॉल जैसा खेल भी शामिल है। हालाँकि फुटबॉल की आलमी तंज़ीम फ़ीफ़ा ने हिजाब पर पाबंदी आइद की है जिस के बावजूद माहिरीन का कहना है कि हिजाब ना सिर्फ मज़हबी लिबास है बल्कि ये एथलीट्स को गर्दन की इंजरीज़ ( Injouries) से भी महफ़ूज़ रखता है।