हिटलर ने यहूदियों को उसकी समाजिक व्यवहार की वजह से नरसंहार किया- महमूद अब्बास

1933 में अडोल्फ़ हिटलर जर्मनी की सत्ता में आये थे और उन्होंने एक नस्लवादी साम्राज्य की स्थापना की, जिसमें यहूदियों को सब-ह्यूमन करार दिया गया और उन्हें इंसानी नस्ल का हिस्सा नहीं माना गया था। 1939 में जर्मनी द्वारा विश्व युद्ध भड़काने के बाद हिटलर ने यहूदियों को जड़ से मिटाने के लिए अपने अंतिम हल (फाइनल सोल्यूशन) को अमल में लाना शुरू किया।

हिटलर के सैनिक यहूदियों को कुछ खास इलाकों में ठूंसने लगे। उनसे काम करवाने, उन्हें एक जगह इकट्ठा करने और मार डालने के लिए विशेष कैंप स्थापित किए गए, जिनमें सबसे कुख्यात था ऑस्चविट्ज। यहूदियों को इन शिविरों में लाया जाता और वहां बंद कमरों में जहरीली गैस छोड़कर उन्हें मार डाला जाता।

जिन्हें काम करने के काबिल नहीं समझा जाता, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता, जबकि बाकी बचे यहूदियों में से ज्यादातर भूख और बीमारी से दम तोड़ देते। युद्ध के बाद सामने आए दस्तावेजों से पता चलता है कि हिटलर का मकसद दुनिया से एक-एक यहूदी को खत्म कर देना था।

यहूदियों को जड़ से मिटाने के अपने मकसद को हिटलर ने इतने प्रभावी ढंग से अंजाम दिया कि दुनिया की एक तिहाई यहूदी आबादी खत्म हो गई। यह नरसंहार संख्या, प्रबंधन और क्रियान्वयन के लिहाज से विलक्षण था।

इसके तहत एक समुदाय के लोग जहां भी मिले, वे मारे जाने लगे, सिर्फ इसलिए कि वे यहूदी पैदा हुए थे। इन कारणों के चलते ही इसे नाम दिया गया- नरसंहार (होलोकॉस्ट)

फिलिस्तीनी अथॉरिटी के अध्यक्ष महमूद अब्बास ने कहा की विरोधी -यहूदीवाद ने नरसंहार को नहीं बल्कि यहूदियों का सामाजिक व्यवहार ही उनकी नरसंहार का कारण बना था।

टाइम्स ऑफ इज़राइल के अनुसार, अब्बास ने फिलीस्तीनी राष्ट्रीय परिषद के एक सत्र के दौरान इतिहास के पन्नों को टटोलते हुए बैठक में इजराइल के इतिहास के बारे में एक छोटा सा किस्सा सुनाया, जिसमे उन्होंने कई यहूदी-विरोधी थ्योरी को संबोधित किया और कहा की यहूदियों का इजराइल से कोई सम्बन्ध नहीं है और उन्होंने तर्क दिया की अशकेनाज़ी यहूदी प्राचीन इस्राएली से कोई संबंध नहीं रखते थे।

तब अब्बास ने यहूदियों के नरसंहार का कारण यहूदियों के सामाजिक व्यवहार, [चार्जिंग] ब्याज, और वित्तीय मामलों और विरोधीवाद को ठहराया।

अब्बास ने यह भी कहा कि फिलिस्तीन अमेरिका से इजरायल-फिलिस्तीनी शांति समझौते तक पहुंचने के लिए किसी भी प्रयास को स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने कहा की “यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है,”। “हम इस सौदे को स्वीकार नहीं करेंगे, और हम अमेरिका को एकमात्र दलाल के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे।

अमेरिका ने पिछले साल कहा था की वह इजराइल की राजधानी के रूप में जेरुसलम को मान्यता देंगे, जिसे फिलिस्तीनी अपनी भावी राजधानी मानते हैं और अमेरिका ने कहा था की यह उनका मिडिल ईस्ट में शांति लाने का एक प्रयास है। इसका दुनियाभर में विरोध किया गया और ट्रम्प की काफी निंदा की गयी।

साभार- ‘World News Arabia’