देश के सात राज्यों एवं एक केंद्रशासित प्रदेश में हिंदुओं को अल्पसंख्यक वर्ग का दर्जा नहीं मिल सकता। इस संबंध में दाखिल एक याचिका पर सुनवाई से कुछ दिन पहले राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सैयद गैयरुल हसन रिजवी ने ये बातें कहीं हैं।
उन्होंने कहा कि मौजूदा कानूनी प्रावधानों के तहत इन प्रदेशों में हिंदुओं को धार्मिक अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि अल्पसंख्यक वर्गों का निर्धारण राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में होता है।
यह पूछे जाने पर कि क्या मौजूदा कानूनी प्रावधानों के तहत इन राज्यों में हिंदुओं को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देना संभव है, उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम-1992 के तहत पांच समुदायों : मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को धार्मिक अल्पसंख्यक कहा गया. वर्ष 2014 में इसमें जैन समुदाय को भी शामिल किया गया।
धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग का निर्धारण राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में होता है।
रिजवी ने कर्नाटक सरकार द्वारा हाल ही में लिंगायतों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिये जाने की अनुशंसा किये जाने का हवाला दिया। कहा, मौजूदा कानूनी प्रावधान में संभव होता, तो लिंगायतों को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा मिल गया होता।
भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च अदालत में अर्जी दाखिल कर आठ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दिये जाने की मांग की थी।
बाद में न्यायालय ने उनसे कहा था कि वह अल्पसंख्यक आयोग का रुख करें। उपाध्याय का कहना है कि इन आठ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। ऐसे में इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यकों वाले अधिकार मिलने चाहिए।