हिन्दू नौजवान मुशर्रफ़ बह इस्लाम ,सरीनवास से अबदुर्रहमान

अज़ल से सब पर है मेहरबाँतेरी शान जल्लाजलालुहू
माँ बाप और बहन भी दाख़िल इस्लाम मुस्लिम दोस्त की क़ुरबत ने दिल पर पाकीज़ा नुक़ूश छोड़े
नुमाइंदा ख़ुसूसी
अल्लाह के रसोलऐ ने फ़रमाया कि तुम्हारा काम सिर्फ बात पहूँचाना है। हिदायत का देना सिर्फ़ अल्लाह के इख़तियार में है। एक ग़ैर मुस्लिम दोस्त एक मुस्लिम दोस्त की आदात-ओ-अत्वार, इबादात, इताअत से मुतास्सिर हुआ और अपने अंदर बेचैनी महसूस करने लगा। इस मुस्लिम दोस्त ने अपनी क़ुरबत के कुछ ऐसे पाकीज़ा नक़श-ए-दिल पर छोड़ दीए कि वो कलिमा तुय्यबा का वरद करने लगा । तेरी शान जल जला ला तलब सच्ची हो तो अल्लाह ख़ुद रहनुमाई फ़रमाता है। आख़िर कार इस ने हिदायत अता फ़रमाई और वो सरीनवास से अबदुर्रहमान होगया। कल रात इदारा गाईड नस सैंटर फ़ार पीस (G.C.P.) की जानिब से नौ मुस्लिम भाईयों के ईद मिलाप की तक़रीब रखी गई थी जो उर्दू घर, मग़लपोरा में मुनाक़िद हुई थी। वहां हम भी मौजूद थे जहां हर इतवार को ग़ैरमुस्लिम भाईयों केलिए इस्लाम के मुताल्लिक़ अगर गलतफहमियां हूँ तो ख़ुशगवार माहौल में बातचीत के ज़रीया या फिर किताबों के ज़रीया दूर किया जाता है। ईद मिलाप के इस प्रोग्राम में हमारी मुलाक़ात 23 साला एक लड़के से हुई जिस का नाम सरीनवास (अबदुर्रहमान) था। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। अबदुर्रहमान ने कहा कि मैं टैक्सी कयाब चलाता हूँ। मल्लिका जिगरी में ज़ाती मकान में रहता हूँ। मेरी एक बहन है और में अपने माँ बाप के साथ रहता हूँ। अबदुर्रहमान ने कहा कि मेरे एक दोस्त की अच्छी आदतों ने मुझे मुतास्सिर किया। इस की इस्लामी तर्ज़-ए-ज़िदंगी ने इस पर बेतहाशा रोशनी की तीरगी बिखेर दी और इस ने तए किया कि ज़िंदगी ऐसी ना जी जाय जिस का कोई मुस्तक़बिल और आख़िरत ना हो।मैं सोचता रहा कि बाज़ार से ख़रीदी हुई चीज़ की इबादत करना कहां तक दरुस्त है। अल्लाह ताली पर ईमान की सच्चाई तो एक नूर है ये नूर जिस पर मर्कूज़ होजाए वो ख़ुद बंदे को मनवा ले गी।इसके बाद हक़ वाले अपनी तक़दीर बनाने लेने का फ़न पालीते हैं। हुसूल हक़ की बेचैनी ने मुझे जी सी पी तक पहुंचाया और मैंने 2009-ए-जून को इस्लाम क़बूल करलिया। मेरी बहन भानू प्रिय (आईशा) जो पढ़ी लिखी है और फ़िलहाल डिग्री कररही है, इस को भी समझाने लगा। वो एक जीवीलरी शाप में गुज़श्ता सात साल से काम कररही है। शोरूम के मालिक ने इस की दियानतदारी देख कर उसे ये ज़िम्मेदारी सौंपी है। वो रोज़ाना सुबह पूजा करती है और दुकान खोलती है और फिर सेल में लग जाती है। मैंने तलगो ज़बान में क़ुरआन हकीम दिया। वो क़ुरआन मुक़द्दस पढ़ने लगी और बात इस के समझ में आने लगी। इस ने सब से पहले नौकरी छोड़ दी और दाइरा-ए-इस्लाम में दाख़िल होगई। फिर हम दोनों ने मिल कर अपने माँ बाप पर मेहनत की जिस में हम को ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। मेरे वालिद अक्सर बीमार रहते हैं। मेरी माँ ने आज तक कभी मुझ पर हाथ नहीं उठाया क्योंकि आज तक मैंने ऐसा कोई काम नहीं जिस से वो नाराज़ हो। मैं हद से ज़्यादा अपनी माँ का अदब-ओ-एहतिराम करता हूँ। वो भी मेरी हर बात मानती है। मेरी माँ कहती है कि मेरे दोनों बच्चे पढ़े लिखे हैं लेकिन में नहीं हूँ। माँ का कहना है कि अगर इन दोनों ने इस्लाम क़बूल किया है तो ग़ौरोफ़िक्र भी किया होगा और ये बात भी समझ में आरही है तो हम ने भी फ़ैसला किया कि हम को भी मुशर्रफ़ बह इस्लाम होजाना चाहीए। इस तरह से ये ख़ानदान ने एक अच्छे-ओ-नेक मुस्लिम दोस्त के बेहतर अमल से मुतास्सिर होकर इस्लाम क़बूल करलिया। हाँ ख़ानदान के कुछ लोग उन से कट गए लेकिन उन्हें इस का कोई अफ़सोस नहीं है। वो ख़ुश हैं कि वो अल्लाह से जुड़ गए हैं।और बारगाह ख़ुदावंदी में सरबसजूद होकर ये जाना कि हमारे सजदों से ही दुनिया में हम को फ़ख़्रिया ज़िंदगी नसीब होगी। माँ का ग़ैर इस्लामी नाम वजए लक्ष्मी था, अब फ़ातिमा है। वालिद का पहले नाम करो पाकर था और अब अबदुल्लाह है। इस ने कहा कि अब उसे अपनी बहन की शादी की फ़िक्र है। इस के बाद में शादी करूंगा। मुझे ऐसी लड़की चाहीए जो दीनदार हो ताकि हम इस से कुछ सीख सकें क्योंकि हम इस्लाम के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं रखते। मैं मल्लिका जिगरी का मकान किराया पर दे कर एक अलग माहौल में रहना चाहता हूँ। चलिए! अब हम ख़ुद अपना जायज़ा लेते हैं। देखा आप ने हमारे अच्छे अमल से किया नताइज निकल सकते हैं। रमज़ान उल-मुबारक में कोई चोर मुस्लमान औरत या मर्द औरतों के पर्स चुराते हुए पाकेट मारते हुए पकड़े जाते हैं, कुछ दिन पहले दामाद ने सास, सुसर, साले और साली पर हमला करके उन्हें क़तल करदिया था। जागने की रातों को ग़ैरों के घरों के सामने पटाख़े मार कर उन्हें सोने नहीं देते। वलीमा की दावत में कुछ मुस्लमान आरकैस्टरा में नौजवान लड़कीयों को हैजानअंगेज़ अंदाज़ में डांस कराते हैं और वलीमा जैसी सुन्नत के अमल को अपने लिए अज़ाब बना लेते हैं। हमारी बुराईयों की फ़हरिस्त बहुत लंबी है। शायद कितनी भी मुश्किल होजाए लेकिन बुराईयों का सिलसिला ख़तन नहीं होगा। इन बातों से हम नहीं बचेंगे तो असल काम कैसे होगा। अल्लाह के रसूल सिल्ली अल्लाह अलैहि वसल्लम ने तो हमें ज़िम्मेदारी दी है कि दावत-ए-इस्लाम का काम हम अंजाम दें। इस के लिए सब से पहले ख़ुद को बदलना होगा। पूरे के पूरे इस्लाम में दाख़िल होना पड़ेगा। अल्लाह की ज़मीन पर एकड़ कर चलने वाले मुस्लमानों पहले ख़ुद बुराई से बचो, फिर देखना तुम्हारी नज़रें वो देखेंगी जो अल्लाह वाले देखना चाहते हैं