मालेगांव 2006 ब्लास्ट केस में एनआईए ने आठ मुस्लिम व्यक्तियों को रिहा कर दिया था। इसी रिहाई को चुनौती देने के लिए महाराष्ट्र एटीएस ने याचिका दायर की थी। जिसको सोमवार को एनआईए द्वारा पक्षपात का आरोप लगाते हुए और यह कहते हुए की यह निर्णय जांच के आधार पर लिया गया था याचिका को ख़ारिज कर दिया है।
एटीएस ने सेशन कोर्ट के फैसले को गैर कानूनी बताते हुए हाई कोर्ट में गुहार लगाई और कहा कि सेशन कोर्ट का फैसला अनुचित है और सुबूतों के खिलाफ है। एटीएस ने दावा किया कि यह मानना की अगर यह लोग मुसलमान है तो मस्जिद पर हमला नहीं कर सकते पूरी तरह से गलत है।
पीटीआई के अनुसार एनआईए ने अपने शपथ पत्र में कहा है कि जांच के बाद यह सामने आया है कि ब्लास्ट हिन्दू समूह द्वारा कराया गया था एनआईए के पुलिस निरीक्षक विक्रम खालाते का कहना है कि यह कहना पूरी तरह से गलत है कि एनआईए ने एटीएस और सीबीआई की जांच को गलत दिखने के लिए पहले से निर्धारित और सुनियोजित क्रम में जांच की है।
शपथपत्र में आगे कहा गया है कि एनआईए की जांच के अनुसार मनोहर नरवरिया, राजेंदर चौधरी, धन सिंह, शिव सिंह, लोकेश शर्मा, रामचन्द्र कालसांगरा, सुनील जोशी, रमेश महालकर,संदीप दंगे इत्यादि ये लोग मालेगांव में आतंकवादी गतिविधि करने के लिए 2006 जनवरी से सितम्बर तक कथित रूप से आपराधिक साजिश में शामिल हुए थे।
ट्रेनिंग कैंप इंदौर में लगाये गए वहां पर बॉम्ब बना कर मालेगांव भिजवा दिए जाते थे। नरवरिया, चौधरी, सिंह और कालसंगरी ने मालेगांव में बॉम्ब लगाये थे। वे लोग मुस्लिम बहुल क्षेत्र में बॉम्ब लगाना चाहते थे जिससे मालेगांव में हिन्दू मुसलमान दंगे भड़क जाये।
मक्का मस्जिद ब्लास्ट के अपराधी स्वामी अस्सेम आनंद ने अपने ब्यान में कहा था कि मालेगांव का ब्लास्ट उसके लड़को का हस्तकार्य है। एनआईए ने आगे कहा है कि एटीएस के अनुसार मोहम्मद ज़ाहिद अंसारी ने 8 सितम्बर 2006 को मालेगांव में बॉम्ब लगाया था वो बिलकुल गलत है।
एनआईए की जांच में सामने आया है कि ब्लास्ट के दिन अंसारी मालेगांव से 400 किलोमीटर दूर यावतमल में था। 12 गवाहों ने इस का समर्थन किया है। मालेगांव बड़ा क़ब्रिस्तान मस्जिद पर और मुशावेरात चौक पर 08 सितम्बर 2006 को हुए बाम्ब धमाके में बच्चों समेत 30 से ज़्यादा लोग मारे गए 300 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे।