हिफ़्ज़ान-ए-सेहत और अहकामात नबवी स.व.

परहेज़ ईलाज से बेहतर है। आज सारी दुनिया के इदारे इस तरफ़ तवज्जा दे रहे हैं और हर मैडीकल कॉलेज में कम्यूनीटी मैडीसन के नाम से एक शोबा क़ायम है। पूरी दुनिया में लाखों डालर इस काम पर ख़र्च हो रहे हैं और कोशिश ये हो रही है कि परहेज़ और एहतियात के ज़रीया से बीमारीयों से नजात हासिल करली जाये।

नबी करीम स.व. ने चौदह सौ पच्चास साल पहले चंद एसे ज़रीं उसूल बताए, जो आज की दुनिया साईंस के लिए भी रहनुमा का काम दे रहे हैं। अगर उन पर मुकम्मल तरीक़े से अमल किया जाये तो तक़रीबन हर बीमारी से बचा जा सकता है।

इंसानी जिस्म में जिल्द (खाल) की हैसियत तमाम अंदरूनी आज़ा के लिए हिफ़ाज़ती बंद की सी है। इस पर कोई ज़ख़म, फोड़ा, फूंसी या धूप और सर्दी के असरात अंदर के आज़ा को मुतास्सिर करते हैं। अल्लाह ताला ने जिल्द की साख़त एसी बनाई है कि इस के ख़लीयों की सिर्फ एक या दो तहें नहीं हैं, जैसा कि दीगर आज़ा में हैं, बल्कि जिल्द की बहुत सी तहें होती हैं और उसे मैडीकल की ज़बान में STRATIFIED SQUAMOUS EPITHELIUM कहते हैं। प्यारे नबी स.व. ने रोज़मर्रा ज़िंदगी के सिलसिले में जो हिदायात दी हैं, इन में से एक ये भी है कि पाकीज़गी ईमान का हिस्सा है। जिस्म को हरवक़त साफ़ सुथरा रखना, कपड़े पहनना और नहाना सफ़ाई का हिस्सा हैं। इन इक़दामात से जिस्म की जिल्द पर हरवक़त मौजूद जरासीम और बहुत से दूसरे जरासीम धुल कर बहत्ते हैं और जिल्द साफ़ हो जाती है। इन जरासीम की मौजूदगी मुसलसल ख़तरे का बाइस होती है। जूंही सफ़ाई सुथराई में कमी आए, ये जरासीम अपना असर ज़ाहिर करना शुरू कर देते हैं और किसम किस्म की जिल्दी बीमारीयां इंसान को आलेती हैं और जिल्द के ज़रीया जिस्म के बाक़ी आज़ा मसलन हड्डी, पट्ठे और जोड़ वग़ैरा भी मुतास्सिर हो जाते हैं।

इन बीमारीयों से बचने के लिए आजकल मैडीकल साईंस का उसूल ये है कि बार बार नहाया जाये और जिस्म को साफ़ सुथरा रखा जाये।