हुकूमत ने एक साथ कई निशाने साधे

नई दिल्ली, 10 फरवरी: पार्लियामेंट हमले का गुनाहगार अफजल गुरू को फंदे पर लटकाने के फैसले को यूपीए हुकूमत-कांग्रेस ‘Apolitical’ साबित करने की चाहे तमाम कोशिशें करे, लेकिन उसने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। अफजल की फांसी के लंबे अर्से से लटके मुद्दे पर यकायक फैसला हुकूमत की अगले आम इलेक्शन की तैयारी का पुख्ता इशारा माना जा रहा है।

इस फैसले से हुकूमत ने दहशतगर्दी के तरफ से नरम होने का दाग धो दिया है तो साथ ही 2014 में नरेंद्र मोदी के मरकज़ की ओर बढ़ते सियासी उफान को कमज़ोर करने की बड़ी कोशिश भी की है। पूरे मुल्क में अचानक चली राहुल बनाम मोदी की बहस को रोकने में हुकूमत का यह कदम कांग्रेस के लिए बहुत अच्छा साबित हो सकता है।

हिंदू दहशतगर्द के वज़ीर ए दाखिला सुशील कुमार शिंदे के मुनाज़े वाले बयान पर सियासी हमलों का मोर्चा खोल चुकी बीजेपी पर ब्रेक लगाने के लिहाज से भी अफजल की फांसी हुकूमत के बचाव का हथियार बनेगी।

बीजेपी यूपीए हुकूमत पर दहशतगर्द के तरफ से नरम रवैया अपनाने का इल्ज़ाम लगाती रही है। मगर पहले कसाब और अब अफजल को फांसी पर चढ़ा कर हुकूमत ने बीजेपी से दहशतगर्दी पर नरम होने का मुद्दा ही छीन लिया है। पार्लियामेंट के बजट सेशन से ठीक पहले अफजल के बहाने शिंदे और हुकूमत पर हमला बोलने का ऐलान कर चुकी भाजपा को अपनी हिकमत अमली में नए पैंतरे आजमाने होंगे।