नई दिल्ली, ०६ जनवरी: (पी टी आई) वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने आज एक अहम ब्यान देते हुए मुल़्क की क़दीम ज़बानों में से एक संस्कृत हिंदूस्तान की रूह से ताबीर किया और कहा कि हुकूमत इस ज़बान के मज़ीद फ़रोग़ और इस्तिहकाम के लिए इक़दामात करेगी।
15 वीं आलमी संस्कृत कान्फ़्रैंस से ख़िताब करते हुए कि संस्कृत ज़बान में जिस तरह आज़ादी और रवादारी का जज़बा कोट कोट कर भरा हुआ है, बिलकुल उसी जज़बे को आज हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लाए जाने की ज़रूरत है। जिस तरह हिंदूस्तानी तहज़ीब का मौक़िफ़ है बिलकुल इसी तरह संस्कृत ज़बान को भी किसी मख़सूस फ़िर्क़ा, मज़हब या नसल से नहीं जोड़ा जा सकता।
इस ज़बान की सक़ाफ़्त इतनी वसीअ तर है कि इस के पास रवादारी और सब को शामिल करने के दरवाज़े हमेशा खुले हैं। संस्कृत तंगनज़र और मसल्की नज़रिया से बालातर है। अगर यही नज़रियात आज हमारी ज़िंदगी में शामिल होजाएं तो हालात इतने बेहतर होजाएंगे जिन का हम तसव्वुर भी नहीं कर सकते।
मनमोहन सिंह ने कहा कि ये बात अपनी जगह मुस्लिमा है कि संस्कृत हिंदूस्तान की चंद क़दीम तरीन ज़बानों में से एक है, लेकिन इस के ताल्लुक़ से एक ग़लतफ़हमी ये पाई जाती है कि लोग उसे सिर्फ मज़हबी अश्लोक या भजन की ज़बान ही समझते हैं जो संस्कृत ज़बान के साथ सरासर नाइंसाफ़ी और इस के दानिश्वर उन के कारनामों से लाइल्मी है। संस्कृत ज़बान बड़े बड़े दानिश्वर इन, मुफ़क्किरीन, साधू और साईंसदानों से भरी पड़ी है जैसे कोटलया, चर इक्का, सौ श्रोता, आर्या भट्ट, विरह हिमी हीरा, ब्रहम गुप्ता, भास्कर आचार्य और दीगर कई।