मालेगांव, ०९ जनवरी: (फैक्स) मुस्लमानों को ख़ौफ़-ओ-दहश्त के हिसार से बाहर आना चाहीए। इस मुल्क में मुस्लमान दूसरी बड़ी अक्सरीयत हैं, उसे अक़ल्लीयत कह कर एहसास कमतरी में मुबतला नहीं करना चाहीए।
तक़ाज़ा-ए-वक़त यही है कि आप अपने माज़ी की तरफ़ लौटें और अपने हक़-ओ-ईमान पर बरक़रार रहते हुए आप मोमिन बन जाएं, तो हर जगह और हर महाज़ पर कामयाब होंगे और इस दबाव में हरगिज़ ना रहें कि हम गिनती में कम हैं।
इन ख़्यालात का इज़हार मालेगांव में आईनी हुक़ूक़ बचाव तहरीक के जल्सा-ए-आम से ख़िताब के दौरान ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सैक्रेटरी मौलाना सय्यद मुहम्मद वली रहमानी ने किया। दौरान तक़रीर उन्हों ने मज़ीद कहा कि फ़ैसले तादाद की बुनियाद पर नहीं होते और ना ही तमन्नाओं से तक़दीर बदलती है, बल्कि जहद मुसलसल का रास्ता इख़तियार करने की ज़रूर हुआ करती है।
आप एक और मुत्तहिद हो जाएं तो कामयाबी आप के क़दम चूमेगी। आज हम कई दहाईयों से मुश्किल हालात और वाक़ियात से दो-चार हो रहे हैं, हम तलब दुनिया में पड़ गए हैं, इस लिए हम ऐसे हालात का शिकार हैं। उन्हों ने मज़ीद कहा कि जमहूरीयत नेमत है और आज हमें जमहूरी दस्तूर-ओ-आईन हासिल है, जिस के तहत हम अपने हुक़ूक़ हासिल करने का हक़-ओ-इख़तियार रखते हैं।
मुस्लमान गुज़श्ता 63 बरसों से मुख़्तलिफ़ मसाइल में उलझे हुए हैं या उलझाए जा रहे हैं। ख़ौफ़ की सियासत लादकर एहसास कमतरी और एहसास पसमांदगी में मुबतला करते हुए हौसलाशिकन हालात पैदा किए जा रहे हैं कि मुस्लमान अक़ल्लीयत में हैं, जो वसाइल से महरूम हैं। देनी मदारिस ईमानी तालीमात के सरचश्मा हैं, जहां इंसान ढाले जाते हैं, जिस की ख़ाक से इंसान बनाए जाते हैं।
आज मालीयाती इमदाद के नाम पर लुभाने की कोशिश की जा रही है, मगर हम और आप अपने अमली जद्द-ओ-जहद से हक़-ओ-इंसाफ़ हासिल करेंगी। जमहूरीयत मैं तादाद की बजाय इस्तिदाद को फ़ौक़ियत दी जाती है, हमें इस मुल़्क की जमहूरीयत पर मुकम्मल यक़ीन है कि यहां नाइंसाफ़ी नहीं होगी।
अपने हुक़ूक़ की बाज़याबी के लिए मुसलमानान हिंद जमहूरी अंदाज़ में कोशिश करते रहे हैं और करते रहेंगी। ओक़ाफ़ी इमलाक के बारे में उन्हों ने कहा कि कोलकता का राईटर हाउस और गवर्नर हाउस, दिल्ली में मस्जिद शेख़ अबद उन्नबी से लेकर ख़ूनी दरवाज़ा दिल्ली गेट तक की 500 बीघा ज़मीन और इसी तरह हज़रत-ए-शैख़ अबद उल-हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैहि की ख़ानक़ाह की 700 बीघा आराज़ीयात पर सरकारी क़बज़ा है।
हुकूमत वक़्त को चाहीए कि मौजूदा बाज़ार की क़ीमत के लिहाज़ से उन आराज़ीयात का किराया अदा करे। उन्हों ने कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड मुसलमानान हिंद का मोकर और बाएतिमाद इदारा है और इदारा ने मुसलमानान हिंद की बरवक़्त और मउसर नुमाइंदगी की है।
क़ब्लअज़ीं मौलाना अमरीन महफ़ूज़ रहमानी ने तक़रीर करते हुए कहा कि दीनी मदारिस अमन-ओ-सलामती की अलामतें हैं। मज़हबी दरसगाहों के जो फ़ारग़ीन थें, उन्हों ने हिंदूस्तानी तहिरीक-ए-आज़ादी को अपना लहू दिया है। तारीख़ के रोशन सफ़हात उस की बेहतरीन दलील हैं। उल्मा ए किराम, इस्लाफ़ और बुज़्रगान-ए-दीन – की जद्द-ओ-जहद से वतन आज़ाद हुआ।
उन्हों ने कहा कि मुल़्क की मज़हबी दरसगाहों की हैसियत ख़तम करने के लिए राइट टू एजूकेशन जैसे क़वानीन नाफ़िज़ किए जाने की तैय्यारी हो रही है। मौलाना अमरीन ने कहा कि औक़ाफ़ की इमलाक मुस्लमानों के हवाले करदी जाएं तो हुकूमती ख़ैरात की ज़रूरत ही नहीं रहेगी।