हुस्न परस्ती का इलाज

एक तालिबे हक इस्लाहे नफ्स के लिए एक बुजुर्ग की खिदमत में हाजिर हुए और शेख के तजवीज कर्दा जिक्र और शगल को एहतेमाम से करने लगे लेकिन जो खादिमा शेख के घर से उनके लिए खाना लाया करती थी उस पर बार-बार निगाह डालने से उनके दिल में उस खादिमा का इश्क पैदा हो गया। इसलिए जब वह खाना लेकर आती यह खाने की तरफ मुतवज्जो होने के बजाए उसी खादिमा को आशिकाना नजरों से घूरते रहते। वह खादिमा भी अल्लाह वाली थी उसको शुब्हा हुआ कि यह शख्स मुझे बुरी निगाह से देखता है। बदनिगाही की जुलमत का उस खादिमा के नूरानी दिल ने इदराक कर लिया और उसने शेख से अर्ज किया कि आप का फलां मुरीद मेरे इश्क में मुब्तला हो गया है, उसको जिक्र से अब क्या नफा होगा, पहले आप उसको इश्क मजाजी से छुड़ाइए।
अल्लाह वालों की शान यह होती है कि वह अपने अहबाब व मुताल्लिकीन और खुद्दाम को हर मुमकिन रूसवा नहीं फरमाते और यह हजरात किसी की बुरी हालत से मायूस नहीं होते क्योंकि यह आरिफ होते हैं उनकी नजर अल्लाह पाक की अता और फजल पर होती है। इसलिए शेख ने बावजूद इल्म के न उस मुरीद को डांटा और न अपने इस इल्म का इजहार किया। लेकिन दिल को फिक्र लाहक हो गई कि उसको इश्क मिजाजी से किस तरह निजात हासिल हो।

अल्लाह की तरफ से एक तदबीर इल्हाम हुई जिस पर आप ने अमल फरमाया और उस खादिमा को इसहाल की दवा दे दी और इरशाद फरमाया कि तुझ को जितने दस्त आएं सबको एक तश्त में जमा करती रहना। यहां तक कि उसको बीस दस्त हुए जिससे वह इंतिहाई कमजोर और लागर हो गई, चेहरा पीला हो गया आंखें धंस गईं, रूखसार अंदर को बैठ गए, हैजा के मरीज का चेहरा जिस तरह खौफनाक हो जाता है, खादिमा का चेहरा भी वैसा ही खौफनाक और मकरूह हो गया और तमाम हुस्न जाता रहा।

शेख ने खादिमा को इरशाद फरमाया कि आज उसका खाना लेकर जा और खुद भी आड़ में छुप कर खड़े हो गए। मुरीद ने जैसे ही खादिमा को देखा तो खाना खाने के बजाए उसकी तरफ से मुंह फेर लिया और कहा कि खाना रख दो। शेख फौरन आड़ से निकल आए और इरशाद फरमाया कि ऐ बेवकूफ! आज तूने इस खादिमा से रूख क्यों फेर लिया।

इस कनीज में क्या चीज कम हो गई जो तेरा इश्क आज रूखसत हो गया। फिर शेख ने खादिमा को हुक्म दिया कि वह पाखाने का तश्त उठा लाए। जब उसने सामने रख दिया तो शेख ने मुरीद को मुखातिब करके इरशाद फरमाया कि ऐ बेवकूफ! इस खादिमा के जिस्म से सिवाए इतनी मिकदार पाखाने के और कोई चीज खारिज नहीं हुई। मालूम हुआ कि तेरा माशूक दरहकीकत पाखाना था। जिसके निकलते ही तेरा इश्क गायब हो गया। शेख ने इरशाद फरमाया कि अगर तुझ को इस जरिया से मोहब्बत है तो अब वह मोहब्बत, नफरत में क्यों तब्दील हो गई।

इश्क मजाजी का पलीद होना शेख की इस तदबीर से अच्छी तरह उस शख्स पर वाजेह हो गया और अपनी हरकत पर बहुत शर्मिंदा हुआ और अल्लाह तआला की बारगाह में गिड़गिड़ाकर सच्चे दिल से तौबा की और इश्क की दौलत से मालामाल हो गया। (मौलाना ख्वाजा मोहम्मद इस्लाम)

——–बशुक्रिया: मरकज़ी जदीद