हुज़ूर (स.) की तालीमात पर अमल करने की तलक़ीन

खम्मम, 12 फरवरी: खम्मम के शुक्र्वारपेट सेंटर पर मुनाक़िदा जलसा मीलादुन्नबी (स.) के जलसे से मेहमान ख़ुसूसी मौलाना
बदीउद्दीन कादरी हैदराबाद ने अपने ख़िताब में कहा कि पैग़म्बर की बिअसत तमाम आलम के लिए रहमत है और हुज़ूर (स.) का उस्वा क़यामत तक आने वाले लोगों के लिए बेहतरीन नमूना है। हुज़ूर (स.) की तालीमात को अपनाते हुए ज़िंदगी गुज़ारने वाला दुनिया-ओ-आख़िरत में कामयाब है पैग़म्बर की बिअसत ऐसे दौर में हुई कि हर तरफ़ जहालत नाख़्वान्दगी बाम उरूज पर थी, औरत का कोई मुक़ाम समाज में नहीं था बल्कि लड़की पैदा होने पर उसे ज़िंदा दफ़न करदिया जाता था।

पैग़म्बर(स.) ने अपनी बिअसत का मक़सद बताते हुए कहा कि अल्लाह तआला ने मुझे मुअल्लिम बनाकर भेजा जो लोगों को तारीकियों से निकाल कर अल्लाह की वहदानियत की तरफ़ बुलाए जहालत को ख़त्म करते हुए पैग़म्बर(स.) ने पूरी दुनिया को इल्म की क़ीम्ती मताअ आरास्ता किया, और औरत के मुक़ाम को दुनिया वालों को बताया कि औरत का एहतिराम उस की इज़्ज़त-ओ-इफ़्फ़त की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी अल्लाह तआला ने सरपरस्त पर रखी और हुज़ूर (स.) ने फ़रमाया जिस के घर में लड़की पैदा हुई है वो अल्लाह की तरफ़ से नेमत भी है और बरकत भी है।

आज ज़रूरत इस बात की है कि एक मोमिन के लिए ये ज़रूरी है कि वो हुज़ूर (स.) के उस्वे को अपनी ज़िंदगी के अंदर पैवस्त करले उसी का नाम हुज़ूर (स.) से वालहाना अक़ीदतो इश्क़ का है । जलसे के दूसरे मेहमान ख़ुसूसी जनाब मुहम्मद अफ़ज़ल MPJ वरंगल ने अपने ख़िताब में कहा कि इस्लाम अमन-ओ-शांति का मज़हब है। इस्लाम में भाई चारगी को फ़रोग़ देने के लिए तालीम दी गई।

आज हम पर ये ज़िम्मेदारी है कि इस्लाम के पैग़ाम को अब्ना-ए-वतन तक पहूँचाने के लिए अपने तमाम इख़तिलाफ़ात को खत्म करते हुए कमर बस्ता होने की ज़रूरत है। चौदहसौ साल पहले पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने दुनिया को ये तालीम दी है कि मज़हब इस्लाम में पड़ोसियों के साथ कैसा बरताव‌ हो।

अग़यार के साथ हुस्न-ए-सुलूक से पेश आने की इस्लाम ने तालीम दी। जलसा मीलादुन्नबी (स.) की सदारत मुहम्मद अफ़ज़ल मियां तेलंगाना रीटायर्ड एम्पलॉयज़ एसोसीएष्ण सदर ज़िला खम्मम ने की। जलसे का आग़ाज़ मुफ़्ती अबदुलख़ालिक़ की क़िराते कलाम पाक से हुआ। नाते शरीफ़ शहज़ाद आलम ने की। जलसे में कसीर तादाद ने शिरकत की। शह नशीन पर जनाब खलील अमीर जमात-ए-इस्लामी शहर खम्मम, मौलाना फीरोज़ इमाम-ओ- ख़तीब मस्जिदे मुहम्मदिया मौजूद थे।