हैदराबाद कर्नाटक के उर्दू सहाफ़ीयों को नजरअंदाज़ करने का इल्ज़ाम

जनाब शाह सईद उल-हसन कादरी मदीरे आला रोज़नामा अदबी अक्कास-ओ-सदर उर्दू जर्नलिस्ट एसोसीएसन बीदर ने कर्नाटक उर्दू एकेड्मी और उर्दू रिपोर्टर्स फ़ोर्म बैंगलोर पर रियासत कर्नाटक के मुख़्तलिफ़ अज़ला बिलख़सूस इलाक़ा हैदराबाद कर्नाटक के उर्दू सहाफ़ीयों को नजर अंदाज़ करने का इल्ज़ाम आइद किया है।

सहाफ़त के लिए जारी कर्दा अपने एक ब्यान में सईद उल-हसन कादरी ने कहा है कि कर्नाटक में उर्दू ज़बान दरअसल उर्दू सहाफ़त की मरहून-ए-मिन्नत है बिलख़सूस इलाक़ा हैदराबाद कर्नाटक के अज़ला बीदर, गुलबर्गा, राइचूर और यादगीर् के इलाक़ों में उर्दू अख़बारात की इशाअत गुज़श्ता निस्फ़ सदी से इंतिहाई ना मुसाइद हालात के बावजूद जारी है।

विकास सुविधा बैंगलोर में हालिया दिनों उर्दू ज़बान-ओ-सहाफ़त के ज़ेर-ए-उनवान जो मुशावर्ती इजलास मुनाक़िद किया गया, इसमें साफ़ तौर पर ज़ाहिर है कि मुख़लिसाना तौर पर उर्दू ज़बान-ओ-अदब की देरीना ख़िदमात अंजाम देने वाले अफ़राद-ओ-अख़बारात को यकसर नजर अंदाज़ कर दिया गया है।

बताया जाता है कि जिस मख़सूस तंज़ीम या एसोसीएसन ने इजलास हज़ा को तलब करने के लिए कर्नाटक उर्दू एकेडेमी पर दबाॶ डाला इस के मुम्किन है कुछ अग़राज़-ओ-मक़ासिद होसकते हैं। मगर जहां तक रियासत कर्नाटक के उर्दू अख़बारात और उर्दू वालों के मसाइल का ताल्लुक़ है इजलास हज़ा में इस पर ज़्यादा तवज्जा नहीं दी गई।

मुल्क की दूसरी बड़ी अक़ल्लीयत की लिखी, पढ़ी और बोली जाने वाली ज़बान के बुनियादी और देरीना हल तलब मसाइल पर इजलास हज़ा में ग़ौर करने की भी ज़रूरत महसूस नहीं की गई जबकि ये इजलास रियास्ती हुकूमत की सब से बड़ी तंज़ीम कर्नाटक उर्दू एकेडमी की जानिब से तलब किया गया था, और जिसमें एक ख़ानगी तंज़ीम का तआवुन किस मक़सद के लिए हासिल किया गया था।

ये बात और एहमीयत खो चुकी है कि जिसके बाइस उस को एक ग़ैर मारूफ़ तंज़ीम की बैसाखीयों का सहारा लेना पड़ा जो मुबय्यना तौर पर उर्दू सहाफ़त की ख़ुद साख्ता ठेकदार बनी हुई है।

इंतिहाई अफ़सोस का मुक़ाम और शर्म की बात तो ये है कि जिन रिपोर्टर्स को उर्दू सहाफ़त की ( अलिफ़ और बे ) से वाक़्फ़ीयत नहीं उन्हें इस रियास्ती इजलास में मदऊ किया गया जो उर्दू सहाफ़त की तौहीन और देरीना मुख़लिस ख़िदमत गारों के साथ नाइंसाफ़ी के मुतरादिफ़ है।

कर्नाटक उर्दू एकेडेमी के अर्बाब मजाज़ बिलख़सूस रजिस्ट्रार को चाहीए कि वो अपने चंद एक क़रीबी लोगों के साथ ऑफ़िस के बंद कमरे में बैठ कर रियास्ती लेवल पर सहाफ़त और उर्दू ज़बान-ओ-अदब की तरक़्क़ी, बक़ा और तरवीज-ओ-इशाअत के इलावा उर्दू के हक़ीक़ी ख़िदमतगारों की फ़लाह-ओ-बहबूद के कमज़ोर फ़ैसले ना करें।

जहां तक मज़कूरा इजलास का ताल्लुक़ है चाहीए तो ये था कि इसके इनइक़ाद से क़ब्ल ज़िलई उर्दू अख़बारात के मुदीर उनसे मुशावरत करके कोई पालिसी तैयार की जाती। मगर पता नहीं क्यों ऐसा नहीं किया गया लेकिन यक़ीन है कि आइन्दा उसको दुहराया नहीं जाएगा।