हैदराबाद जो कल था

हम बचपन से सुनते आए हैं कि आँखें बड़ी नेमत हैं। लेकिन इस हक़ीक़त का एहसास उस वक़्त होता है जब आँखें कमज़ोर होने लगती हैं, ऐनक लग जाती है या फिर ऑप्रेशन की नौबत आती है। ऐसे में अज़ ख़ुद मुँह से निकलता है कि आँखें बड़ी नेमत हैं और एक अच्छा माहिरे चश्म भी एक नेमत है। हैदराबाद जो कल था की मुलाक़ातों के सिलसिले में जब हमारी मुलाक़ात डॉ. श्याम सुंदर प्रसाद से हुई तो हमको अंदाज़ा हुआ कि वो ना सिर्फ़ माहिरे चश्म हैं बल्कि ख़ुद एक दीदावर शख़्सियत हैं
। जब हम ने उन की तालीमी क़ाबिलीयत और तजुर्बे पर नज़र डाली तो हमारी आँखें खुली की खुली रह गईं । बसारत के साथ बसीरत का एहसास भी हुआ। मौसूफ़ ने जामिया उस्मानिया से एम बी बी एस किया। फिर इंग्लिस्तान से एफ़ आर सी एस किया। अमरीका के कई बड़े बड़े डाक्टरों के ज़ेर निगरानी काम किया।

बड़ी बड़ी कान्फ़्रेंसों में रिसर्च पेपर्स पढ़े। सिर्फ़ उन के एज़ाज़ात की फ़ेहरिस्त लिखने बैठूं तो कई सफ़हात दरकार होंगे। आप ने ना सिर्फ़ बैरूनी जमियात में आला तालीम हासिल की बल्कि कई बैरूनी तलबा ने आप की निगरानी में तजुर्बा हासिल किया। एक डाक्टर के लिए सब से बड़ी सनद ये है कि उस की क़ाबिलीयत और महारत से कितने मरीज़ों ने फ़ायदा उठाया। अगर ख़ुद डा. साहब से पूछा जाये कि पिछली निस्फ़ सदी में कितने मायूस मरीज़ों ने आप के ईलाज से फ़ायदा उठाया है तो शायद उनकी तादाद वो ख़ुद भी ना बता सकें, लेकिन आप की हरदिलअज़ीज़ी आप की महारत की दलील है। आप की तरक़्क़ी में जहां आप के असातिज़ा की रहनुमाई और आप की ज़ाती मेहनत को दख़ल है वहीं ये बात भी काबिल-ए-ज़िकर है आप के मामू माया नाज़ माहिरे चशम डाक्टर राम चन्द्र आप के लिए नमूना और रोल मॉडल की हैसियत रखते थे। जांफ़िशानी , वसीअ उल-नज़री और ख़िदमत-ए-ख़लक़ का बेमिसाल जज़बा आप ने डाक्टर रामचंद्र से हासिल किया।
डा. श्याम सुंदर प्रसाद की दो सिफ़ात जो आज की हमारी गुफ़्तगु का असल मौज़ू हैं वो हैं क़दीम हैदराबाद से उनकी मुहब्बत और उर्दू ज़बान-ओ-अदब से उनका वालहाना शग़फ़ है। उनसे गुफ्तगू का खुलासा यहाँ पेश है।

मेरे वालिद नरेंद्र प्रसाद साहब पुलिस के महकमे में ओहदेदार थे । दादा राजा कन्हैया प्रसाद सर्फ-ए-ख़ास में बरसर-ए-कार थे। जद्द-ए-अमजद राजा मुरलीधर प्रसाद चार सौ साल पहले यहां आए थे। उन्ही के नाम से मुरलीधर बाग़ का इलाक़ा मशहूर है जहां हमारा दौलत ख़ाना है। फ़र्ज़ंद डॉ. वसुंदर प्रसाद भी माहिर अमराज़-ए-चश्म हैं। उर्दू की इब्तिदाई तालीम अपनी वालिदा ख़ुशहाली देवी साहबा से ली । हिन्दी की तालीम पण्डित दया प्रसाद शास्त्री से हासिल की। ऑल सेंट्स हाई स्कूल से मैट्रिक किया। यहां पर भी उर्दू ज़बान बहैसीयत इख़तियारी मज़मून पढ़ी। क्लिनिक में उर्दू में यह शेर लिखा हुआ है।

मुब्तेला ए दर्द कोई उज़ू हो रोती है आँख
किस क़दर हमदरद सारे जिस्म की होती है आँख

रोज़नामा सियासत के पड़ोसी भी हूँ और पहले दिन से इस अख़बार का क़ारी भी । हम बानी सियासत आबिद अली ख़ां साहब को अब्बा कह कर पुकारते थे और महबूब हुसैन जिगर को जिगर चाचा कहते थे । मुज्तबा हुसैन साहब से भी गहरे मरासिम हैं । क़दीम हैदराबाद से शेफ़्तगी का ये आलम है कि आसिफ़ साबह को सरकार के लक़ब से याद करते हैं। मेरा रोये सुख़न मीर उसमान अली ख़ां की तरफ़ है। आ

उस ज़माने में दवाखाना-ए-उस्मानिया एक मिसाली हॉस्पिटल था। डाक्टर बहादुर ख़ान एक ग़ैरमामूली सर्जन थे। उन के किए हुए ऑप्रेशन इतने कामयाब होते थे कि इन का ज़िक्र मैडीकल जर्नल्स में रहता था। 1954 में Lancet नामी इंग्लिश रिसाले में उन की माहिराना-ए-सर्जरी की तारीफ़ हुई थी। दवा ख़ानों में दवाएं मुफ़्त दी जाती थीं। उस्मानिया दवाख़ाना के इलावा ज़चगी ख़ाना, यूनानी दवाख़ाना, फीवर हॉस्पिटल , टी बी और दिमाग़ी अमराज़ का दवाख़ाना, विकाराबाद में अनंतगिरी के मुक़ाम पर बेहतरीन दवाख़ाना, के ई ऐम हॉस्पिटल और शहर के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों में शिफ़ा ख़ाने क़ायम थे। जो ग़िज़ा मरीज़ों को दी जाती थी वही डाक्टरों को भी दी जाती थी। हड्डियों के ईलाज के लिए डाक्टर रंगा रेड्डी निहायत मशहूर थे। हैज़ा और ताऊन फैलता तो शहर के बाहर कैंप लगते। आँखों के ईलाज के लिए अरस्तू यार जंग बहुत मशहूर थे। डॉ. पी रामचन्द्र आँखों के ईलाज के माहिर थे। हैदराबाद में अदसा की पैवंद कारी का पहला ऑप्रेशन उन्होंने किया था जिससे मरीज़ की बसारत बहाल होगई थी। इंग्लिस्तान के डॉ. रीडली ने उन्हें छः उदसे दिए थे जिन से डा. रामचंद्र ने निहायत कामयाब पैवंद कारी की। डा. राम चन्द्र वो पहले डाक्टर थे जिन्होंने मुख़्तलिफ़ जगहों पर आई कैंप क़ायम किए जिन से बेशुमार लोगों को फ़ायदा पहुंचा। दवा ख़ानों की तामीर पुरफ़िज़ा मुक़ाम पर होती थी। बड़ी बड़ी खिड़कियां, खुले हाल और सफ़ाई का बेहतरीन इंतिज़ाम होता था। आजकल मालीए की कमी की वजह से ख़ातिरख़वाह तवज्जा नहीं होती। इस गए गुज़रे में भी उस्मानिया हॉस्पिटल ग़नीमत है। दिलसुख नगर बम धमाके के आधे घंटे के अंदर उस्मानिया दवाखाने से पच्चास डाक्टरों की टीम पहुंच गई जिन की तवज्जा और मदद से कई जानों को बचाया जा सका। मैडीकल मैदान में हैदराबाद को दो निहायत अहम एज़ाज़ात हासिल हुए। कौनैन पहले पहले इस्तिमाल यहां हुआ। क्लोरोफाम यहीं दरयाफ़त हुई।

क्लोरोफार्म की इफ़ादीयत का सही तौर पर जायज़ा लेने के लिए एक रॉयल कमीशन हैदराबाद आया जिस की तसदीक़ की बुनियाद पर क्लोरोफाम सारी दुनिया में इस्तिमाल होने लगी। डाक्टर साहब ने बताया कि आजकल दवा के ग़ैर ज़रूरी इस्तिमाल से आरिज़ी तौर पर फ़ायदा होजाता है लेकिन जिस्म के मदाफ़अती निज़ाम पर इस के बुरे असरात पड़ते हैं। सर रोनाल्ड रास ने मच्छरों पर यहां रिसर्च की जिस से मलेरिया के ईलाज में मदद मिली।

हैदराबाद शहर की मिसाली आब-ओ-हवा के हवा के बारे में क्या बताऊं सड़कें निहायत वसीअ, कुशादा और साफ़ सुथरी थीं। उन्हें हर रोज़ धोया जाता था। ड्रेनेज सिस्टम इतना अच्छा था कि मूसलाधार बारिश भी हो तो थोड़ी देर बाद कहीं पानी खड़ा हुआ नज़र नहीं आता था। आब-ओ-हवा ऐसी थी कि कभी गर्मी में इज़ाफ़ा हो जाता तो दो-चार दिन में बारिश होती और दर्जा हरारत मामूल पर आजाता। फ़िज़ाई आलूदगी या Pollution का नाम सुना ही ना था।

रियासत हैदराबाद के नज़्म-ओ-नसक़ के लिए काबिल लोगों को बाहर से बुलाया जाता था। नज़्म-ओ-नसक़ में तास्सुब और तंगनज़री का शोबा तक नहीं था। लोग अपनी तनख़्वाह का कुछ हिस्सा अवाम की फ़लाह-ओ-बहबूद पर ख़र्च करते थे। हमारे पड़नाना ने मुफ़ीदुल अनाम हाई स्कूल एतबार चौक में क़ायम किया, जहां से बैरिस्टर अकबर अली ख़ां और बैरिस्टर श्री किशन और कई लोग फ़ारिगुत्तहसील हुए। नवाबों की दरियादिली का हाल ये था कि बड़ी बड़ी तक़ारीब में ज़रूरत से ज़्यादा खाना पकवाया जाता था ताकि समाज के ग़रीब लोगों की भी इमदाद हो जाए। शहर में कई बाग़ात थे जिन की वजह से आब-ओ-हवा मोतदिल रहती थी। एक मर्तबा आसिफ़ जाह ने प्रिंस इमदाद जाह की आँखों का ऑप्रेशन किंग कोठी में करवाया। डॉ. पी राम चन्द्र की मदद के लिए मैं और मुख़्तसर अमला साथ था । ऑप्रेशन के बाद खाने के कमरे में गए तो देखा कि इंतिहाई बड़ी मेज़ पर अन्वा-ओ-इक़साम के खाने रखे हुए थे। श्याम सुंदर प्रसाद ने ताज्जुब का इज़हार किया तो डाक्टर पी राम चन्द्र ने अज़राह मज़ाक़ कहा बड़े मियां बख़ील कहलाते हैं लेकिन दस आदमियों के लिए सौ लोगों के खाने का इंतिज़ाम करते हैं।

शिकागो की एक कान्फ़्रैंस में जहां लोग उर्दू के ख़त्म हो जाने के अंदेशे ज़ाहिर कररहे थे मैंने बबांगे दहल ऐलान किया था कि जब तक उर्दू के चाहने वाले ज़िंदा हैं ये ज़बान कभी नहीं मर सकती। उर्दू ज़िंदा थी , ज़िंदा है , ज़िंदा रहेगी शम्स-ओ-क़मर की तरह। उर्दू के फ़रोग़ में रोज़नामा सियासत की ख़िदमात भी क़बिले तहिसीन हैं। अपने क्लीनिक पर आने वाले मरीज़ों को मैं आज भी उर्दू सीखने की तरग़ीब देता हूँ और मौक़ा हो तो उर्दू के इब्तिदाई किताबचे तोहफ़्तन देता हूं।

लोग ये बात फैलाते हैं कि हुज़ूर निज़ाम बख़ील शख़्स थे। सच्ची बात ये है कि उनकी किफ़ायत शिआरी उनकी शख़्सी ज़िंदगी की हद तक थी। रियाया के लिए उनकी सख़ावत आम थी। सनअती तरक़्क़ी के लिए क़दीम रियासत हैदराबाद में कई कारख़ाने क़ायम हुए। निज़ाम सागर इसी दौर की यादगार है। प्रागा टूल्स, जे बी मंघाराम बिस्कुट फ़ैक्ट्री, आज़म जाहि मिल्स , आलवीन कंपनी , सनअत नगर का इंडस्ट्रीयल इलाक़ा , निज़ाम शूगर फ़ैक्ट्री वग़ैरा चंद नाम हैं जो बरसर मौक़ा याद आगए।