हैदराबाद ने बनाया है सायना को

(बैडमिंटन की खिलाड़ी सायना नेहवाल के वालिद हरवीर सिंह नेहवाल की ज़ुबानी )
हैदराबाद ने सायना को बनाया है। यूँ कहूँ तो ग़लत न होगा कि साइना की किस्मत ही हमें हैदराबाद ले आयी। मुझे याद है, मैं हरियाना एग्रिकल्चर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर था। अचानक हैदराबाद के एनजीआरआाr में मर्कजी हुकूमत के तह़कीकी इदारे में काम करने का प्रस्ताव आया। हम पति पत्नी ने पहले तो बहुत सोचा कि जाएँ या न जाएँ, लेकिन फैसला किया कि हैदराबाद जाएँ। उन दिनों चंद्रांशु(बड़ी लड़की) दसवीं में थी और सायना को भवन्स स्कूल में तीसरी में दाखिला दिला दिया। चंद्रांशु को तो कुछ बना नहीं सके थे।

सायना के बारे में भी बिल्कुल नहीं सोचा था कि वह बैडमिन्टन या कुछ और खेलेगी। 1998 हमारी किस्मत पलटने के दिन थे। मुझे आईसीआर गेम्स का सेक्रेटरी बनाया गया था। उसी सिलसिले में एक दिन जब मैं एल बी स्टेडियम गया हुआ था तो सायना साथ में थी। मैं एस एम आरिफ और नानी साहब से बात कर ही रहा था कि साइना ने शार्ट लगाया। नानी ने उसे रोकने का प्रयास किया कि इससे कहीं स्टेडियम का कोर्ट न खराब हो। फिर बाद में आरिफ साहब और नानी दोनों ने कहा कि सायना को पांच महीने बाद मई `99 में ले आओ।

हमने कभी नहीं सोचा था कि दो अजनबी लोग हमें मिलेंगे और इतनी मेहराबानी होगी। हम पति पत्नी उस रात देर तक सोये नहीं, बस सोचते रहे। जब पहली बार आरिफ साहब ने सायना को खेलते देखा तो उन्होंने कहा था कि तीन साल में यह भारत के लिए खेलेंगी। मैं एक साइंटिस्ट था, मआशी हालत (आर्थिक स्थिति) उतनी अच्छी नहीं थी कि साइना को किसी बड़ी अकादमी में ट्रेनिंग दूँ। वैसे साइंटिस्टों को स्कूटर से कार ख़रीदना हो तो त्र+ण लेना पड़ता है। वो अपना मकान नहीं बना सकता। मैं हैदराबाद का शुक्रगुज़ार हुँ कि उसकी वज्ह से सायना को कामयाबी मिली। आरिफ़ साहब ने जो कहा था, वही हुआ 2002 में साइना ने हिन्दुस्तान की नुमाइंदगी की।

इससे पहले एक और व़ाकिया हुआ। पेना चाधरी ने एक दिन हम से कहा कि आप पास्पोर्ट बना लें। हमें तआज्जुब हुआ, लेकिन सायना का इन्तेख़ाब (चयन) यूरोप में खेलने के लिए हो गया था। उस वक़्त हमारे पास पैसा नहीं था और कोई स्पान्सर भी नहीं थे, लेकिन कई हैदराबादियों ने काफी मदद की। एच. एस. ब्रह्मा ने निज़ाम क्लब की रुकनियत (सदस्यता) दिलाई। वहाँ महबूब अली साहब ने सायना को ख़ूब ट्रेनिंग दी। दूसरी ओर एस.एम. आरिफ साहब मेहनत कर रहे थे। सायना ने भी मेहनत की। दूसरी लड़की होती तो शायद इतनी मेहनत नहीं कर पाती। आरिफ साहब उसकी मेहनत देखकर बोलते कि इसे बौनवीटा पिलाओ। जब कामयाबी मिलने लगी तो, जिस आटोरिक्शा में सायना आती जाती थी, उस आटोवाले ने भी उसकी तस्वीर रिक्शा पर लगा ली थी। उस वक़्त मेरे पास स्कूटर था। 2008 में एक मारूती 800 ली थी। अब 6 कारें हैं उसके पास। आज भी वह ख़ूब मेहनत कर रही है। उसको इतना करना भी पड़ेगा। नौकरी करनी पड़े तो भी इतना करना पड़ता। हाँ इतना ज़रूर है कि हम उसके साथ हैं, कोई उसे खाना खिला रहा है, तो कोई मालिश कर रहा है। कोई ले जा-ला रहा है। अवार्ड मिलते हैं तो हम भी ख़ुश हो जाते हैं।
कोई स्टार बेटी का पिता होने के बहुत सारे लाभ मिले और उनसे मैं ख़ुश भी हूँ, लेकिन इसी बीच मुझे अपना कैरियर रोक देना पड़ा। कई सालों तक एक ही ओहदे पर रहा। विज्ञान में मैं अपना अच्छा कैरियर नहीं बना सका। अब रिटायर हो गया हूँ।

मैं दो बेटियों का बाप हुँ एक खिलाड़ी है और एक बेटी आम लड़की। बड़ी लड़की शुरू में बहुत महसूस करती कि वह उसके लिए खाना बनाए, उसका काम करे और फिर सायना छोटी होने के बावजूद हवाई जहाजों में घूमें होटलों, रेस्तराओं में जाएँ। नये नये फैशन के कपड़े पहने। जबकि बड़ी बेटी ने अपनी माँ के कपड़े पहन कर भी गुज़ारा किया। सायना भी कभी बोलती, तुम भी खेलती तो बहुत बड़ी खिलाड़ी होती। बड़ी लड़की की शादी हो चुकी है और वह अपने घर मे खुश है और उसकी बेटी को हरियाना में बैडमिंटन की स्पेशल ट्रेनिंग मिल रही है।
मेरी पत्नी ऊषा के बारे में भी अकसर पूछा जाता है। जब हमारी शादी हुई तो वो पढ़ रहीं थीं। मेरे वालिद ने उन्हें दस साल तक पढ़ने का म़ौका दिया। वह स्टेट लेवल की बैंडमिंटन खिलाडी थी। मैं भी बैडमिंटन खेलता था। शादी से पहले हमने एक दूसरे को देखा तक नहीं था। इत्तेफ़ाक देखिए के दोनों बैडमिंटन को पसंद करते थे और फिर अब सायना जैसी बेटी ने हमारी ा़जिन्दगी को कामयाब बना दिया है।

(एफ. एम. सलीम से इन्टरव्यू का इक़्तिबास(अंश)