हैदराबाद में तुग़यानी की 104 वीं बरसी

हज़रत अमजद हैदराबादी पर ग़मों के पहाड़ टूट पड़े थे , हकीम उल-शियर ए-ए-ने माँ , बीवी और बेटी को अपनी नज़रों से बटहते देखा था
सारा शहर तूफ़ान में घिरा है । तुग़यानी अपनी ज़ोरों पर है । तबाही-ओ-बर्बादी का आलम है । भगडर मची हुई है । लोग अपनी ज़िंदगियां बचाने के लिये भाग दौड़ कररहे हैं । हर तरफ़ चीख-ओ-पुकार सुनाई दे रही है । बच्चाव‌ बच्चाव‌ की आवाज़ें आरही हैं । तुग़यानी के पानी की बेहती हुई लहरों में मासूम बच्चे ख़वातेन बूढ़े जवान सब बह रहे हैं । पानी की किसी लहर में कोई नाश नज़र आरही है तो कभी सामान बहता हुआ नज़र आरहा है ।

उसी में एक 22 साला नौजवान चीख रहा परेशानी के आलम में कभी अपनी माँ की जानिब दौड़ता है तो बीवी की आवाज़ सुनाई देती है । अपनी बीवी की जानिब जाने की कोशिश करता है तो मासूम बेटी के नज़र ना आने पर इस के हवासगुम होजाते हैं । वो अपने हवास को सँभाल भी रहा है कि बाप का साया सर से उठ जाने के बाद पूरी तवज्जु-ओ-इन्हिमाक से तालीम-ओ-तरबियत और परवरिश करनेवाली माँ का हाथ पानी में लहराता नज़र आरहा है । वो तो पूरी तरह पानी में डूब चुकी है लेकिन इन का हाथ वाज़िह तौर पर नज़र आरहा है । जैसे वो अपने बेटे से कह रही हो । बेटा ख़ुदाहाफ़िज़ अपना ख़्याल रखना और अपनी हर दुआ में अपनी माँ कोयाद रखना वो नौजवान अभी माँ के लहराते हाथ की जानिब लपकने की कोशिश ही कररहा है जो इन बीवी की दबी दबी चीख़ों ने इस की तवज्जु अपनी जानिब करलें लेकिन क्या देखता है कि वो एक तिनके की तरह पानी में तेज़ी के साथ बही जा रही है ।

इन मुनाज़िर को देख कर सदमा से दो-चार उस नौजवान को चंद लोग ज़बरदस्ती खींच कर ले जा रहे हैं लेकिन वो हाय मेरी माँ मेरी बेटी मेरी बेगम की सदाएं लगाते रहा है इस के आँख से आँसू रवां है देखते ही देखते वो अपने आप को अमली के एक मज़बूत दरख़्त की मज़बूत शाख़ पर बैठे हुए पाता है इस दरख़्त पर वो तन्हा नहीं है बल्कि दीगर 149 लोग भी मौजूद हैं जो दरअसल रौद मूसा की तुग़यानी के दौरान इन दरख़्त पर पनाह लेकर अपनी ज़िंदगियां बचाएं थीं अपनी माँ , बीवी और मासूम बेटी-ओ-दीगर अरकान ख़ानदान को रौद मूसा की तुग़यानी में अपनी नज़रों के सामने मौत को गले लगाते देखने वाला ये नौजवान कोई और नहीं बल्कि सय्यद अमजद हुसैन थे जो दुनियाए अदब में हकीम उल-शियर ए-ए-अमजद हैदराबादी के नाम से मशहूर हुए सरज़मीन दक्कन के इस काबिल फ़ख़र सपूत को दुनिया उन की रबाईआत से जानती है और दुनिया में रबाईआत का जहां भी ज़िक्र आता है यह रबाईआत पढ़ी जाती हैं अमजद हैदराबादी का ज़िक्र ज़रूर किया जाता है ।

माह सितंबर 1908 को जब कि सरज़मीन दक्कन पर आसिफ़ जाहि हुक्मरानी का साया फ़िगन थी रौद मूसा की तुग़यानी का वाक़िया पेश आया जिस में हज़ारों लोग मौत की आग़ोश में पहूंच गए । तुग़यानी की नज़र होने वालों में हज़रत अमजद हैदराबादी की वालिदा मुहतरमा सोफिया बेगम अहलिया महबूब अलनिसा-ए-और चहेती बेटी आज़म अलनिसा-ए-और दीगर अरकान ख़ानदान शामिल हैं । इस ख़ानदान में सिर्फ अमजद हैदराबादी ही वाहिद बच गए । दुनिया की सब से बड़ी नेअमत माँ , ज़िंदगी की राहत बीवी और अल्लाह की रहमत बेटी की जुदाई ने अमजद हैदराबादी की ज़िंदगी तबाह कर के रखदी थी ।

वो ग़म दर्द-ओ-अलम करब-ओ-फ़िक्र में ग़र्क़ रहा करते थे । उन के दिल पर इन वाक़ियात का गहिरा असर हुआ और तक़रीबन‌ 6 बरसों तक वो दर्द की इसी कैफ़ियत से गुज़रते रहे इस दौरान अमजद हैदराबादी ने जो कलाम लिखा है इस में दर्द-ओ-करब नुमायां नज़र आता है । क़ारईन आप को बतादें कि 28 सितंबर को तुग़यानी की 104 वीं बरसी मनाई जा रही है । रौद मूसा में तेगानी का जब भी ज़िक्र किया जाता है तो हज़रत अमजद हैदराबादी का ज़िक्र लाज़िमी तौर पर किया जाता है । तुग़यानी के दौरान वो जिस उल-मनाक दूर से गुज़रे थे उन के ज़हन पर वो दर्दनाक लमहात इस तरह नक़्श होगए थे जिस तरह किसी पत्थर पर कोई तहरीर यह लकीरें नक़्श होजाती हैं । उन्हों ने अपने इस ग़म-ओ-दर्द को अपनी रबाईआत नज़मों और नस्र के ज़रीये ज़ाहिर किया है ।

रौद मूसा की तुग़यानी के बाद हज़रत अमजद हैदराबादी ने क़यामत सुग़रा के उनवान से नज़म लिखी जिस में उन्हों ने तुग़यानी के तकलीफ दह हालात की तस्वीरकशी की । इन के कलाम में दर्द-ओ-ग़म-ए-पिन्हां होता है । हज़रत अमजद हैदराबादी ने तुग़यानी से एक साल क़बल 1907 मैं रबाईआत अमजद शाय करवाई थी । रबाईआत अमजद के बाद रबाईआत अमजद दोम और फिर रबाईआत अमजद हिस्सा सोम भी मंज़रे आम पर आया । सहाबी रसूल ए हज़रत बलालओ की शान में भी हज़रत अमजद हैदराबादी ने कलाम लिखा है और इस कलाम को हज़रत अमजद की वफ़ात के बाद मुहम्मद अकबर अलुद्दीन सिद्दीकी ने मुख़्तसर रबाईआत हुस्न बलालओ के उनवान से शाय करवाया ।

हज़रत अमजद हैदराबादी की उर्दू रबाईआत ने जहां दुनियाए उर्दू में एक काबिल-ए-क़दर इलमी-ओ-अदबी इज़ाफ़ा किया है वहीं फ़ारसी रबाईआत ने दक्कन के इस फ़र्ज़ंद को उर्दू अदब के सतूनों की कहकशां में शामिल किया है । हज़रत अमजद हैदराबादी ना सिर्फ रबाईआत बल्कि नस्र के ज़रीया भी उर्दू अदब को बहुत कुछ दिया है । आदिल असीर देहलवी की मुरत्तिब करदा रबाईआत अमजदऒ के मुताबिक़ हज़रत अमजद हैदराबादी ने नस्र और नज़म में मुतअद्दिद किताबें अपनी यादगार छोड़ी हैं । मुस्लिम उल-ईख़लाक़ के नाम से अख़लाक़ मिलाली के लामा सोम का उर्दू तर्जुमा किया तो गुलिस्ताँ सादी का गुलिस्ताँ अमजद के नाम से तर्जुमा किया ।

जमाल अमजद हिकायात अमजद , पयाम अमजद , अय्यूब की कहानी , मियां बीवी की कहानी , हज अमजद , आप के नस्री कारनामे हैं । जब कि मंजूम तख़लीक़ात मैं रबाईआत के इलावा रियाज़ अमजद हिस्सा अव्वल , रियाज़ अमजद हिस्सा दोम , ख़िरक़ा अमजद , नज़र अमजद वगैरह भी आप की यादगार हैं । हज़रत अमजद हैदराबादी के फ़न और शख्सियत के ताल्लुक़ से भी कई किताबें शाय होचुकी हैं जिन में बारगाह अमजद हयात अमजद अरमूग़ान अमजद मुक्तो बात अमजद नुमायां हैं ।

हज़रत अमजद हैदराबादी ने 1908 में तुग़यानी के बाद 6 बरसों तक तन्हा ज़िंदगी गुज़ारी , बाद में आप का अक़्दे सानी जमाल अलनिसा-ए-से हुआ । अमजद हैदराबादी ने इन का नाम जमाल सलमा रखा उन के साथ वो हज को भी गए और हज से वापसी पर जमाल सलमा इंतिक़ाल कर गएं । इस के कुछ अर्सा बाद आप ने क़मर अलनिसा-ए-बेगम से निकाह किया और ख़ुशगुवार ज़िंदगी गुज़ार कर हिंदूस्तान के इस अज़ीम रुबाई गो शायर ने 29 मार्च 1961 को दाई अजल को लब्बैक कहा और दरगाह हज़रत शाह ख़ामोशऒ के अहाता में अपनी महबूब बीवी जमाल सलमा के पहलू में दफ़न हुए ।।

हर चीज़ मुसब्बिब सबब से मांगो
मिन्नत से ख़ुशामद से अदब से मांगो
क्यों गैर के आगे हाथ फैलाते हुए अमजद
बंदे हो अगर रब के तो रब से मांगो

जैसी बेमिसाल रुबाई कहने वाले इस अज़ीम शायर की वफ़ात पर तिलक चंद महरूम ने ख़राज अक़ीदत पेश करते हुए ये फ़िक्र अंगेज़ रुबाई तहरीर की थी ।।

बाबा ताहिर रहा ना सरमद बाक़ी
लेकिन है उन की याद असअद बाक़ी
अमजद का नाम भी रहेगा क़ायम
जब तक हैं रबाईआत अमजद बाक़ी