शहर हैदराबाद फ़र्ख़ंदा बुनियाद के नाम पर फ़िर्क़ापरस्तों के सीने पर तास्सुब और शरारत के ज़हरीले साँप लोटने लगते हैं उन की यही दिली ख़ाहिश है कि दामाद रसूल सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम शेरे ख़ुदा हज़रत अली के इस्म मुबारक से क़ायम कर्दा इस शहर का नाम तबदील किया जाए। इस में उन्हें जहां मुतअस्सिब और कमइल्म और मोअरर्ख़ीन का भरपूर तआवुन हासिल है वहीं वो मुस्लिम दुश्मन ज़हनों की सरपरस्ती के भी हामिल हैं।
हद तो ये है कि सरकारी इदारों में भी ऐसे अमन दुश्मन अनासिर सरायत कर चुके हैं जिन का मक़सद ही शहर की मुस्लिमशनाख़्त को बदल कर रख देना है। अगर्चे फ़िर्कापरस्त ताक़तें शहर हैदराबाद को तास्सुब की बिना पर भाग्य नगर कहने में कोई श्रम महसूस नहीं करते लेकिन जब कोई सरकारी प्रोजेक्ट पर अमल आवरी करने वाला इदारा हैदराबाद का भाग्य नगर की हैसियत से हवाला देना शुरू करे तो उसे हम जम्हूरीयत और सेक्यूलर अज़म की बदक़िस्मती कहेंगे।
मिसाल के तौर पर हैदराबाद मेट्रो रेल प्रोजेक्ट के वेब साईट का जायज़ा लें तो इस में इंतिहाई मक्कारी के साथ फ़िर्क़ापरस्तों ने अंग्रेज़ी में Hyderabad Metero Rail a New Face of Bhagyanager (हैदराबाद मेट्रो भाग्य नगर का एक नया चेहरा) नारा इस्तेमाल किया है।
हैदराबाद मेट्रो रेल के ओहदेदारों की चालाकी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन लोगों ने मज़कूरा तशहीरी नारा तो दे दिया लेकिन वेब साईट के आग़ाज़ पर हमारे वेब साईट पर आप का ख़ौर मक़दम है की ज़ेली सुर्ख़ी के नीचे Hyderabad Metro Rail, New Face of Hyderabad दिया जिस से इस प्रोजेक्ट के ओहदेदारों में हक़ीक़त का पता चलने पर होने वाली परेशानी का इज़हार होता है लेकिन एक बात ज़रूर है कि हैदराबाद मेट्रो रेल प्रोजेक्ट ने अपनी वेब साईट पर इस तरह का तशहीरी नारा देते हुए फ़िर्कापरस्ती का मुज़ाहरा किया और इस के इक़दाम से फ़िर्क़ापरस्तों के हौसले बुलंद हुए हैं।
अवाम का कहना है कि एक ज़िम्मेदार प्रोजेक्ट के ज़िम्मेदार इदारा को इस किस्म की ग़ैर ज़िम्मेदारी का मुज़ाहरा नहीं करना चाहीए क्योंकि इस से अमनो ज़ब्त का मसअला पैदा होता है जबकि शरपसंद हमेशा नुक़्स अमन के ख़ाहां रहते हैं। फ़िर्क़ापरस्तों से लेकर चंद नाम निहाद दानिश्वर हैदराबाद को भाग्य नगर क़रार देने पर तुले हुए हैं।
उन लोगों का दावा है कि भागमती दरअसल बानी शहर हैदराबाद मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह की महबूबा और उन की अहलिया थीं लेकिन उन के दावों का हक़ीक़त से कोई ताल्लुक़ नहीं है बल्कि सारे के सारे दावे सिर्फ़ अफ़साने और इशक़ के दास्तानों का छोटा सा हिस्सा है। ये मख़सूस ज़हनों की तरफ़ से गढी गई ऐसी कहानी है जिस में हीरो के किरदार का नाम मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह और हीरोइन के किरदार को भागमती का नाम दिया गया है।
सफ़ी उल्लाह ने एक और बात बताई कि भागमती के तालाकट्टा मेचलम में पैदा होने और वहीं इस का मक़बरा होने की बातें की जाती हैं जो दरुस्त ही नहीं है। अगर वो शाही ख़ानदान की रुक्न थी तो उस के नाम से कोई सिक्का या गुंबदाने क़ुतुब शाही में मक़बरा होना चाहीए था लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं जबकि 1991 में हैदराबाद की चार सौ साला तक़ारीब से भागमती का नाम सुनने में आ रहा है क्योंकि मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह की शक्ल में एक हीरो मौजूद था लेकिन कोई हीरोइन नहीं थी। ऐसे में भागमती की तख़लीक़ की गई।
अफ़सोस तो इस बात पर है कि इस ग़लत तसव्वुर और ख़ासकर हैदराबाद मेट्रो रेल प्रोजेक्ट की शरपसंदी का किसी सयासी क़ाइद और तंज़ीमों ने नोट नहीं लिया। ज़रूरत इस बात की है कि इस बारे में हैदराबाद मेट्रो रेल प्रोजेक्ट के एम डी एन वी एस रेड्डी से वज़ाहत तलब की जाए कि आख़िर उन्हों ने कैसे इस शरारत को अपने वेब साईट पर जगह दी।