(विजय जैन) इलाहाबाद के कान्वेट स्कूल में पढऩे वाली वो दस साल की मासूम बच्ची थी। होली पर चूंकि ज्यादा मौज-मस्ती का मौका मिलता है, इसलिए इस त्योहार से कुछ ज्यादा लगाव था। खूब जमकर होली खेली। अगले दिन जब ये मासूम बच्ची स्कूल पहुंची तो हाथों पर लगे रंग को देखकर उसे खूब डांटा गया और सजा के तौर पर बैंच पर खड़ा कर दिया गया। ये मासूम बच्ची कोई और नहीं बल्कि मुल्क की पहली खातून वज़ीर ए आज़म मरहूमा इंदिरा गांधी थीं। बचपन में उनका पसंदीदा त्योहार होली था।
ये बात उस जमाने की है जब मुल्क गुलाम था और हर हिंदुस्तानी त्योहारों को कांवेंट स्कूलों में नापंसद किया जाता था। 25 अप्रैल 1975 को इंदिरा गांधी ने अपने खत में खुद होली खेलने पर मिली सजा का ज़िक्र किया है। वह उस वक्त मुल्क की वज़ीर ए आज़म थीं।
ये खत उन्होंने शहर में रहने वाले सीनीयर अफसरों को लिखा था। ये अफसर उस वक्त एक मैजीन में काम किया करते थे। इंदिरा गांधी से उन्होंने खत लिखकर पूछा था कि क्या उन्हें स्कूल में कभी सजा भुगतनी पड़ीं इंदिरा गांधी ने पत्र में दो याददास्त का ज़िक्र किया, जिसमें एक होली से जुड़ा है।
खत में उन्होंने कहा कि जब वे दस साल की थी तो इलाहाबाद के कांवेट स्कूल में पढ़ती थी। उस जमाने में सभी हिंदुस्तानी चीजों को नापंसद किया जाता था। होली का त्योहार जब आया तो वह घर पर ही रुक गई। रंगों का त्योहार खूब खेला। जब स्कूल गई तो हाथों में रंग देख खूब डांटा गया और बैंच पर खड़ा कर दिया गया।
———-बशुक्रिया: अमर उजाला