ह्क़ीक़त ए नूर ए मुहम्मदी (स.व.

इस हक़ीक़त से इनकार नहीं किया जा सकता कि एक ज़माना वो था कि सिवाए अल्लाह अज्ज़ व जल्ल के कुछ ना था (बुख़ारी शरीफ) सिर्फ़ अल्लाह ही की ज़ात थी, वो ख़ुद ही अपना हामिद और ख़ुद ही महमूद और ख़ुद ही शाहिद और ख़ुद ही मशहूद और ख़ुद ही महबूब और ख़ुद ही मुहिब था। अल्लाह की मुहब्बत का तक़ाज़ा हुआ कि मर्तबा-ए-बुतून से मर्तबा-ए-ज़हूर में आए तो मख़लूक़ को पैदा करने का इरादा फ़रमाया और अल्लाह ताला की इस हुब्ब ए पाक का नतीजा हबीब ए दो जहां (स.व.)का नूर ठेहरा, जो तमाम मख़लूक़ात की असल है।

हज़रत शाह अबदू लहक़्क़‌ मुहद्दिस देहलवी रहमतू ल्लाहि अलैहि ने मदारीजू न्नूबूव्वत‌ में नक़ल फ़रमाया कि सहीह हदीस से ये बात साबित है कि हुज़ूर नबी करीम स.व. ने इरशाद फ़रमाया सब से पहले अल्लाह ने मेरे नूर को पैदा फ़रमाया। चुनांचे अल्लाह की चाहत इस बात की मुतक़ाज़ी हुई कि सारी मख़लूक़ात इन ही के ज़रीया रब को पहचानें और जिन की मारीफ‌त रब की मारीफ‌त हो और जिन की मुहब्बत रब की मुहब्बत हो, और वो नूर तमाम काइनात का मब्दा(इब्तेदा)क़रार दिया गया और उसे बमंज़िला-ए-असल (बीज) के बनाया गया। जिस तरह बीज का फैज़ान दरख़्त के हर हर जुज़-ए-शाख़-ओ-गुल में सीरायत कीया हुआ है, इसी तरह बीलाशूबा हक़ीक़ते नूर ए मुहम्मदी स.व‌ आलम के हर ज़र्रे ज़र्रे से नुमायां है।

जिस तरह दरख़्त का हर एक जुज‌ तुख़्म(बीज) का मुहताज होता है, इसी तरह आलम का हर एक ज़र्रा अपने वजूद में नूर ए मुहम्मदी स.व. का मुहताज बनाया गया। दरख़्त का हर जुज़ इस बीज की तफ़सील है। इसी तरह तमाम कायनात नूर ए मुहम्मदी स.व. की तफ़सील है।

हुज़ूर रहमतू लीलआलमीन स.व.का नूर पाक तख़लीक़ आलम(दूनीया कि पेदाइश) से पेशतर एक मुद्दत ए मदीद(लम्बे टाइम) तक अर्श पर जगमगाता रहा और ज़ात ए इलहि(इश्वर) के मुशाहिदा (देखने)में मुसतग़र्क था। जब अल्लाह ने इस नूर को फैलाया तो अर्श-ओ-कुर्सी की बेपनाह वुसअतें(बहूत फेलाव) पैदा हो गएं और चांद-ओ-सूरज की क़ंदीलें रोशन हो गएं। आलम(दूनीया) का ज़र्रा ज़र्रा(कण कण) वजूद से हमकीनार हुआ(जन्म मीला), जैसा कि मूस्नद अबदू लरज़्ज़ाक़ में हज़रत जाबिर रज़ी.से रिवायत है कि मैं ने अर्ज़ किया मेरे माँ बाप आप पर क़ुर्बान! मुझ को ये बताईए कि अल्लाह ताला ने सब से पहले किस चीज़ को पैदा किया?। आप स.व. ने फ़रमाया ए जाबिर! अल्लाह ताला ने तमाम एशिया (चीजों)से पहले तेरे नबी के नूर को अपने नूर से पैदा किया, फिर वो नूर क़ुदरत इलाही से जहां चाहता था सैर करता रहा और इस वक़्त लौह-ओ-क़लम, जन्नत-ओ-दोज़ख़, ज़मीन-ओ-आसमान, सूर‌ज-ओ-चांद, जीन‍ओ‍ इन्स वगैरा कुछ नहीं था। जब अल्लाह ताला ने मख़लूक़ को पैदा करना चाहा तो इस नूर के चार हिस्से किए, पहले हिस्सा से क़लम और दूसरे हिस्सा से लौह, तीसरे हिस्सा से अर्श पैदा कीया और चौथे हिस्सा के फिर चार हिस्से किए। पहले हिस्सा से हामिलीन ए अर्श और दूसरे से कुर्सी, तीसरे से तमाम फ़रिश्तों को पैदा किया और चौथे हिस्से को फिर चार हिस्सों में मुनक़सिम(बट्वारा) किया। पहले हिस्सा से आसमान और दूसरे से ज़मीन, तीसरे से जन्नत-ओ-दोज़ख़ और फिर चौथे हिस्सा चार हिस्से किए। पहले हिस्सा से अहल इमान की बसारत का नूर और दूसरे से उन के दिलों का नूर और तीसरे से उन की जूबानों का नूर जो कलिमा तौहीद पैदा किया। (मूस्नद अबदू र्रज़्ज़ाक़)
अबदू र्रज़्ज़ाक़ जिन्हों ने अपनी सनद से इस हदीस को रिवायत किया, इमाम अहमद बिन हन्बल जैसे अकाबिर अइम्मा ए दीन (महागूरू) के उस्ताज़ हैं। अहमद बिन सालिह मिस्री ने अहमद बिन हन्बल रहमतू ल्लाही अलैही से पूछा क्या आप ने हदीस में अबदू र्रज़्ज़ाक़ से बढ़ कर किसी को अहसन देखा? तो आप ने जवाब दिया नहीं। (तहज़ीबू त्तेहजीब)

तख़लीक़ नूर ए मुहम्मदी स.व. की अव्वलीयत के बारे में मिनजुमला रीवायात के एक रिवायत हज़रत अबू हूरैररा रज़ी से मर्वी है कि सहाबा किराम ने पूछा या रसूलू ल्लाह! आप के लिए नूबुव्वत किस वक़्त साबित हो चुकी थी?। आप ने फ़रमाया कि में इस वक़्त भी नबी था, जब कि आदम अलैहि स्सलाम रूह-ओ-जसद के दरमियान थे (यानी उन के तन में अभी जान नहीं आई थी) (तिरमिज़ी शरीफ) इस हदीस शरीफ को साहिब तिरमिज़ी ने हसन कहा है।
आप स.व. के नूरानी वजूद की अव्वलीयत पर वो आयत भी दलील है, जो तीसरे पारे के आख़िरी रूकू में मीसाक़ अनबीया से मुताल्लिक़ आयत हैं। तमाम अनबीया-ए-किराम से आप पर इमान लाने और मदद करने का निहायत शद्द‌-ओ-मद से इक़रार लिया गया है, क्योंके आप की खील्क़त(जन्म) से पहले अनबीया-ए-किराम से अह्द का लिया जाना अक़लन-ओ-नक़लन मूतसव्व‌र नहीं हो सकता।
हक़ीक़त तो ये है कि तमाम अन्बीया-ए-किराम को जो कमालात-ओ‍मोजीज़ात अता किए (दीये ) गए हैं, वो सब आप के नूर के बरकात हैं, जैसा कि इमाम बूवैसरी रहमतू ल्लाही अलैहि ने क़सीदा बुरदा में फ़रमाया कि हर वो मोजिज़ा जो मुरसलीन किराम से ज़ाहिर हुआ है, इस के सिवा-ए-नहीं कि वो मोजीज़ात आप ही की नूर की बरकत से उन से ज़हूर में आए हैं।

हज़रत इमाम बूवैसरी रहमतू ल्लाही अलैहि के इस ख़्याल की ताईद मवाहिब ए लदून्नीया की इस रिवायत से होती है कि जब हक़ ताला ने नूर मुहम्मदी स.व. को पैदा फ़रमाया तो आप के नूर को हुक्म दिया कि अन्बीया के अनवार को देखो। जब आप के नूर ने अन्बीया के नूर को देखा तो आप के नूर ने उन के नूर को ढाँप लिया। अन्बीया किराम ने हैरान होकर अर्ज़ किया ईलहि! ये किस का नूर है?। इरशाद हुआ ये मुहम्मद (स.व.) का नूर है, तुम अगर इस पर ईमान लावों गे तो हम तुम्हें नूबुव्वत से सरफ़राज़ करेंगे(देंगे) तो सब ने कहा हम उन पर ईमान लाए।
यही वो नूर था, जो अर्श से हज़रत आदम के जिस्म अतहर में मुंतक़िल हुआ। यके बाद दीगरे आप के वालिद माजिद हज़रत अबदू ल्लाह के सल्ब में मुंतक़िल हुआ। जिन जिन अस्लाब से ये मुंतक़िल होता गया, वहां वहां अजीब अजीब बरकात जूहूर में आए। सीरत‌ की बहुत सी किताबों में ये रिवायत मन्क़ूल है कि हज़रत अब्बास रज़ी. ने जंग ए तबूक से वापसी के मौक़ा पर अर्ज़ कीया या रसूलू ल्लाह! मुझ को इजाज़त दीजिए कि कुछ आप की मदह बयान करूं तो हज़रत अब्बास ने एक मदही क़सीदा सुनाया, जिस पर हुज़ूर स.व. ने उन्हें दाद् दी।
शेयर का अर्थ यानी जब हज़रत इब्राहीम खलीलू ल्लाह आग में डाले गए तो आप उन की पुश्त में थे तो वो क्योंकर जल सकते थे। हुज़ूर नबी करीम स.व. ने उन के कलाम की कुछ इस्लाह नहीं फ़रमाई, जिस से इस कलाम की शायराना हैसियत बाक़ी ना रही, बल्कि शरई हैसियत आगई। क्योंके किसी बात पर शारे अलैहिस्सलाम का सुकूत उस को शरई मसला बना देता है।

इसी नूर के ज़हूर का सारा आलम मुंतज़िर था, जिस के जूहूर के लिए हज़रत इब्राहीम ने दूआ की थी और हज़रत इसा ने बशारत दी थी और हर नबी ने अपने अपने ज़मानों में इन की आमद की ख़ुश ख़बरीयाँ दी थीं। आख़िर वो साअत आही गई, जिस की तमाम दुनिया मुंतज़िर थी।
रबीउ लअव्वल फ़सल बहार का ज़माना था, रात और दिन मोतदिल, ना सर्दी की शिद्दत और ना गर्मी की हिद्दत। बूल्बूलान ए चमन और तोतीयानें गुलशन में इशरत-ओ-शादमानी का चर्चा था। १२ रबीउलअव्वल दो शंबा का दिन था, सुबह सादिक़ के वक़्त क़बल अज़ तलूअ आफ़ताब वो नूर ए अफ़्लाक बहार ए लौलाक बाइस तख़लीक़ आदम मक़सूद जमी आलम सय्यदू ल्कोनैन रसूलू लअस्क़लैन सुलतान ए दारेन हुज़ूर अहमद मुजतबा मुहम्मद मुस्तफ़ा स.व. कमाले हुस्न-ओ-जमाल और निहायत जाह-ओ-जलाल से ज़हूर में आए।
हुई पहलूए आमीना से हुवैदा
दूआ ए खलील और नवेद ए मसीहा
ये है कौन आग़ोश में आमीना की
सदा आती है मर्हबा मर्हबा की
हुई मुस्तजाब अब दूआ अन्बीया की
मुजस्सम हुई आज रहमत ख़ुदा की
मलक तलवे आँखों से सहला रहे हैं
फ़लक से क़दम चूमने आरहे हैं

हुज़ूर नबी करीम स.व.के दो लिबास हैं, एक बशरी दूसरा नूरी, जो आप का हक़ीक़ी लिबास है आप की अज़्मतों का जो कुछ इदराक किया जाता है, इस का ताल्लुक़ बशरी जिहत से है, नूरानी जिहत से आप की अज़मत का हक़ीक़ी इदराक ना मुमकिन है।

अक़ल-ओ-दानिश की हदों से है बुलंद तेरा मुक़ाम
फ़िक्र इंसानी से मुम्किन नहीं इरफान‌ तेरा