मैदान-ए-करबला में जब हज़रत इमाम हुसैन रज़ी० के अहबाब शहीद हो चुके और आपके भतीजे-ओ-भांजे भी जाम शहादत नोश फ़र्मा चुके तो हज़रत इमाम हुसैन रज़ी० के साहबज़ादे हज़रत क़ासिम रज़ी० मैदान में तशरीफ़ लाए। आपको देख कर यज़ीदी फ़ौज में खलबली मच गई।
यज़ीदी लश्कर में एक शख़्स अरज़क पहलवान भी था, जिसे मिस्र-ओ-शाम वाले एक हज़ार जवान की ताक़त का मालिक समझते थे। ये शख़्स यज़ीद से दो हज़ार रुपए सालाना पाता था और करबला में अपने चार ताक़तवर बेटों के साथ मौजूद था। जब हज़रत इमाम क़ासिम मैदान में आए तो मुक़ाबला में आने के लिए कोई तैयार ना हुआ।
इब्न-ए-साद ने अरज़क से कहा कि क़ासिम के मुक़ाबला में तुम जाओ। अरज़क ने अपनी तौहीन समझी और मजबूरन अपने बड़े बेटे को ये कह कर भेजा कि मेरा बेटा अभी क़ासिम का सर लेकर आता है। चुनांचे इसका बेटा हज़रत क़ासिम के मुक़ाबला में आया और हज़रत क़ासिम के हाथों बड़ी ज़िल्लत की मौत मारा गया।
उसकी तलवार पर हज़रत क़ासिम ने क़बज़ा कर लिया और ललकारा कि कोई दूसरा है? जो मेरे मुक़ाबला में आए। अरज़क ने अपने बेटे को मरते देख कर पहले तो रोया और फिर ग़ुस्सा में आकर अपने दूसरे बेटे को मुक़ाबला के लिए रवाना किया। हज़रत इमाम क़ासिम ने इसके दूसरे बेटे को भी मार डाला।
अरज़क ने दीवाना वार अपने तीसरे लड़के को भेजा, मगर अल्लाह के शेर ने उसे भी जहन्नुम रसीद कर दिया। अरज़क ने जब अपने चौथे लड़के को भेजा तो वो भी हज़रत क़ासिम के हाथों से ना बच सका। अब तो अरज़क की आँखों के सामने अंधेरा छा गया और ग़ुस्सा में दीवाना होकर ख़ुद मैदान में पहुंच गया।
हज़रत क़ासिम रज़ी० के मुक़ाबला में अरज़क को देख कर हज़रत इमाम हुसैन रज़ी० ने हाथ उठाकर दुआ की कि ऐ अल्लाह! मेरे क़ासिम की लाज तेरे हाथ में है। अरज़क ने पै दर पै बारह नेज़े मारे, मगर हज़रत क़ासिम ने उसके हर वार को रोक लिया। फिर इसने झल्लाकर आपके घोड़े की पुश्त पर ऐसा नेज़ा मारा कि घोड़ा मर गया और हज़रत इमाम क़ासिम पैदल हो गए।
हज़रत इमाम हुसैन ने फ़ौरन दूसरा घोड़ा भेज दिया, हज़रत क़ासिम ने इस पर सवार होकर मुतवातिर(लगातार) तीन नेज़े मारे और अरज़क ने आपके हर वार को रोक लिया। इसके बाद जब अरज़क ने तलवार निकाल ली तो हज़रत क़ासिम ने भी तलवार निकाल ली।
अरज़क ने हज़रत क़ासिम की तलवार देख कर कहा कि ये तलवार तो मैंने हज़ार दीनार में ख़रीदी थी और हज़ार दीनार दे कर उसको ज़हराब करवाया था, मगर ये तुम्हारे पास कहाँ से आ गई?। हज़रत इमाम क़ासिम ने फ़रमाया कि ये तुम्हारे बड़े बेटे की निशानी है, जो तुम्हें इसका मज़ा चखाने के लिए मुझे दिया गया है।
इसके बाद आप ने फ़रमाया कि तुम एक मशहूर सिपाही होकर भी बे एहतियाती से काम ले रहे हो, यानी तुम्हारे घोड़े की ज़ेन तक ठीक से नहीं कसी गयी यानी ढीली है। अरज़क घोड़े की ज़ेन देखने के लिए जैसे ही झुका, हज़रत इमाम क़ासिम ने ख़ुदा का नाम लेकर एक ऐसी तलवार मारी कि अरज़क के दो टुकड़े हो गए। (तज़किरा।८१)