हज़रत इमाम हुसैन रज़ी० की करामत

यज़ीदी लश्कर, असीरान-ए-कर्बला और सरहाए शोहदा को दमिश्क़ ले जाते हुए रात के वक़्त एक मंज़िल पर पहुंचा तो वहां एक बड़ा मज़बूत गिरजा घर नज़र आया। यज़ीदियों ने सोचा कि रात का वक़्त है, इस गिरजा घर में क़ियाम करना मुनासिब रहेगा।

गिरजा घर में एक बूढ़ा पादरी रहता था, शिम्रर ने इस पादरी से कहा कि हम लोग रात को तुम्हारे गिरजा में क़ियाम करना चाहते हैं। पादरी ने पूछा तुम कौन लोग हो और कहाँ जाओगे?। शिम्रर ने बताया कि हम इब्न-ए-ज़याद के सिपाही हैं, एक बाग़ी और इसके साथीयों के सुरों और इसके अहल-ओ-अयाल को दमिश्क़ लेकर जा रहे हैं।

पादरी ने पूछा वो सर जिसे तुम बाग़ी का सर बता रहे हो, कहाँ है?। शिमर ने जब हज़रत इमाम आली मक़ाम रज़ी० का सर दिखाया तो पादरी पर हैबत तारी हो गई और कहने लगा कि तुम्हारे साथ बहुत से आदमी हैं, जबकि गिरजा में इतनी जगह नहीं है, इसलिए तुम इन सरों को और क़ैदीयों को गिरजा में रखोऔर ख़ुद बाहर आराम करो।

शिमर ने इस पेशकश को ग़नीमत समझा कि सिर और क़ैदी महफ़ूज़ रहेंगे। चुनांचे सर ए इमाम आली मक़ाम को एक संदूक़ में बंद करके ग्रीन की एक कोठरी में और अहल-ए-बैत को गिरजा घर के एक मकान में रखा गया। आधी रात के वक़्त पादरी को कोठरी के रोशनदानों से कुछ रोशनी नज़र आई। पादरी ने उठ कर देखा तो कोठरी में चारों तरफ़ रोशनी थी।

फिर थोड़ी देर के बाद देखा कि कोठरी की छत फटती है और उम्मुल मोमिनीन हज़रत ख़दीजा रज़ी० और दीगर अजवाज-ए-मतहरात ज़ाहिर हुईं।

ये पाक बीबीयां संदूक़ खोल कर सर-ए-अनवर को देखने लगीं। फिर थोड़ी देर के बाद आवाज़ सुनाई दी कि ऐ बूढ़े पादरी! झांकना बंद कर, ख़ातून ए जन्नत तशरीफ़ ला रही हैं। पादरी ये आवाज़ सुन कर बेहोश हो गया और फिर जब होश में आया तो आँखों पर पर्दा पड़ा हुआ था, मगर इसे ये आवाज़ सुनाई दी कि कोई रोते हुए कह रहा है: अस्सलाम अलैक ए मज़लूम मादर!, ऐ शहीद ए मादर!, गम ना कर, मैं दुश्मनों से तेरा इंतेक़ाम लूंगी और ख़ुदा से तेरा इंसाफ़ चाहूंगी।

पादरी फिर बेहोश हो गया और फिर जब होश में आया तो कुछ ना पाया। बेहद मुश्ताक़ होकर कोठरी का क़ुफ़ुल तोड़कर अंदर दाख़िल हुआ। संदूक़ का ताला तोड़कर सर-ए-अनवर को निकाला, मुश्क-ओ-गुलाब से धोकर मुसल्ले पर रखा और सामने दस्त बस्ता खड़ा होकर अर्ज़ किया ऐ सरदार! मुझे मालूम हो गया कि आप वो हैं, जिनका वस्फ़ मैंने तौरेत और इंजील में पढ़ा है।

आप गवाह रहीये कि में मुसलमान होता हूँ। चुनांचे पादरी कलिमा पढ़ कर मुसलमान हो गया। (तज़किरा।१०५)