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क़दीम टीले वाली मस्जिद पर मुक़द्दमा की 3 अक्तूबर को आइन्दा सुनवाई

सियोल जज जूनियर डीवीझ़न की अदालत में आज लखनऊ की क़दीम टीले वाली मस्जिद की मिल्कियत का मुक़द्दमा 3 अक्तूबर तक के लिए बढ़ा दिया गया।

मुक़द्दमा फ़रीक़ैन की जानिब से नहीं बढ़ाया गया बल्कि अदालत ने ख़ुद मुक़द्दमा की समाअत की अगली तारीख़ 3 अक्तूबर मुक़र्रर करदी है। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमेन ज़फ़र फ़ारूक़ी की जानिब से मुक़द्दमा में जो जवाब बोर्ड के वकील मुईन उद्दीन एडवोकेट ने दाख़िल किया है उस में कहा गया है कि मर्कज़ी हुकूमत ने 1991 -ए-में इबादतगाह तहफ़्फ़ुज़ क़ानून नाफ़िज़ कर दिया था।

इस क़ानून की रो से बाबरी मस्जिद ,ज्ञान वापी मस्जिद और सुमित्रा की ईदगाह जो 1947 -ए‍से पहले तनाज़ा है उनको छोड़कर रियासत की किसी इबादतगाह को तनाज़ा बनाकर उस पर मुक़द्दमा क़ायम नहीं किया जा सकता है। इस क़ानून की रो से जो इबादतगाह जिस फ़रीक़ के पास 15 अगस्त 1947 -ए‍को था वो उस फ़रीक़ के पास रहेगी चूँकि टीलाशाह पीर मुहम्मद की मस्जिद अभी तक मुस्लमानों के इस्तिमाल में है इस लिए उसको तनाज़ा बनाकर मुक़द्दमा नहीं चलाया जा सकता है।

बोर्ड ने अपने जवाबी दावे में दूसरी बात ये कही है कि उस मस्जिद पर इस नौईयत का मुक़द्दमा हिंदुओं की जानिब से तीन मर्तबा दाख़िल किया जा चुका है और तीनों मर्तबा ये मुक़द्दमा अदालत से रद‌ होचुका है। इस लिए ये मुक़द्दमा चौथी मर्तबा क़ाबिल-ए-समाअत नहीं है। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने ये भी कहा है कि जिन लोगों ने मस्जिद पर मुक़द्दमा दायर किया है वो दरअसल हिंदुओं के नुमाइंदे हैं ही नहीं।

याद रहे कि हिंदु फ़रीक़ की तरफ़ से रंजना अग्नी होत्री एडवोकेट, हरीशंकर जैन एडवोकेट और दीगर पाँच हिंदु नुमाइंदों की तरफ़ से अदालत में मुक़द्दमा दायर कर के मस्जिद को हिंदुओं को इबादत के हवाले करने की गुजारिश‌ की थी।

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