नई दिल्ली २९ दिसम्बर: (एजैंसीज़) ऐसे हज़रात जो हमेशा दावा और इल्ज़ामात आइद करते हैं कि ग़ैर मुस्लिमों को इस्लाम की जानिब राग़िब करने दौलत का सहारा लिया जाता है और उन्हें मुशर्रफ़ बह इस्लाम होने का लालच दिया जाता है, मुंदरजा ज़ैल नकात उन की आँखे खोलने के लिए काफ़ी हैं।
हाल ही में इस्लामी दावों मर्कज़ पर 25 दिसम्बर को तक़रीबन 100 मर्दो ख़वातीन ने सालाना इजलास में शिरकत की जहां मौज़ू बेहस सब से अहम नुक्ता वो था जहां मुशर्रफ़ बह इस्लाम होने वालों को अपने तजुर्बात पेश करने थे कि किस तरह उन्हों ने अपनी मर्ज़ी से इस्लाम क़बूल किया।
उन्हों ने ये भी कहा कि किसी भी इस्लामी तंज़ीम के शुरू करदा प्रोग्राम में शामिल होकर या मुहिम का हिस्सा बन कर उन्हों ने ऐसा नहीं किया बल्कि वो इस्लाम की जानिब शुरू से ही माइल थे। हासिदीन का ये भी कहना है कि ग़रीब और निचली ज़ातों के लोगों को माली इमदाद का लालच देकर उन्हें मुशर्रफ़ बह इस्लाम किया जा रहा है।
यही बात कुछ अर्सा से ईसाई मिशनरीज़ के ख़िलाफ़ भी कही जा रही थी लेकिन यहां इस बात का तज़किरा बेहद ज़रूरी है कि जिन लोगों ने अपनी मर्ज़ी से क़बूल इस्लाम क्या वो आला तालीम-ए-याफ़ता अफ़राद जैसे डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, और चार्टर्ड एकाउंटेंटस थे। इस मौक़ा पर मुहम्मद उम्र गौतम सदर नशीन इस्लामी दावों मर्कज़ जिन्होंने ख़ुद भी 1984-ए-में क़बूल इस्लाम किया था, ने कहा कि उन्हें उस वक़्त बहुत ज़्यादा मुश्किलात का सामना करना पड़ा था बाअज़ औक़ात उन पर ज़ुलम होता है।
अपनी बात जारी रखते हुए उन्हों ने कहा कि सालाना इजलास मुनाक़िद करने का मक़सद ये है कि नौ मुस्लिम अपने तजुर्बात का बाहमी तबादला कर सकें। और एक दूसरे से क़रीबतर होते हुए नए रास्तों को फ़रोग़ दे सकें। वो रिश्ते जो नाजायज़ नहीं बल्कि पाक और इस्लाम से वाबस्ता हूँ जैसे हर मुस्लमान दूसरे मुस्लमान का दीनी भाई होता है वैसे ही ख़वातीन भी एक दूसरे की दीनी बहनें हैं।
नए रिश्तों का मतलब हरगिज़ नहीं कि हम मर्दो ज़न के आज़ादाना इख़तिलात की वकालत कररहे हैं बल्कि हम दीनी रिश्तों को मुस्तहकम करना चाहते हैं।