क़यामत‌ की निशानी

हज़रत अबूहुरैरा रज़ी० से रिवायत है कि रसूल स०अ०व० ने फ़रमाया क़यामत‌ उस वक़्त तक नहीं आएगी, जब तक माल-ओ-दौलत की फिरावानी नहीं हो जाएगी और फिरावानी भी इस तरह की हो जाएगी कि एक शख़्स अपने माल की ज़कात निकालेगा, लेकिन वो कोई ऐसा शख़्स नहीं पाएगा, जो इसका वो ज़कात का माल ले ले, क्योंकि माल-ओ-दौलत की फिरावानी किसी शख़्स को मोहताज और ज़रूरतमंद नहीं छोड़ेगी और कोई आदमी इस तरह का माल लेने के लिए तैयार नहीं होगा और क़यामत‌ उस वक़्त तक नहीं आएगी, जब तक कि अरब की सरज़मीन बाग़-ओ-बहार और नहर वाली (यानी बेहिसाब माल-ओ-दौलत फ़राहम करने वाली) नहीं बन जाएगी (मुस्लिम) मुस्लिम ही की एक और रिवायत में यूं है कि (क़ियामत उस वक़्त तक नहीं आएगी, जब तक कि) इमारतों और आबादी का सिलसिला अहाब या यहाब तक नहीं पहुंच जाएगा।

यानी माल-ओ-दौलत की फिरावानी इस तरह होगी कि चारों तरफ़ पानी की मानिंद बहती फिरेगी और लोग अपनी ज़रूरत-ओ-हाजत से कहीं ज़्यादा दौलत के मालिक होंगे। अहाब और यहाब, ये दो जगहों के नाम हैं, जो मदीना मुनव्वरा के नवाह में वाकेय् ( स्थित/ मौजूद) हैं। दूसरी रिवायत के मुताबिक़ इन अलफ़ाज़ से ये वाज़िह करना है कि आख़िर ज़माना में मदीना मुनव्वरा में इस क़दर इमारतें तामीर होंगी कि इनका सिलसिला शहर के इर्दगिर्द और नवाही इलाक़ों तक पहुंच जाएगा।

हज़रत शेख़ अब्दुल-हक़ मुहद्दिस देहलवी रह० ने लिखा है कि लफ़्ज़ अहाब अलिफ़ के ज़बर के साथ सहाब के वज़न पर है और ये मदीना मुनव्वरा से चंद कोस के फ़ासिले पर एक मौज़ा का नाम है। नीज़ ये लफ़्ज़ अलिफ़ के ज़ेर के साथ भी मनक़ूल है।