क़स्साब की मुंसिफ़ाना समाअत नहीं की गई

नई दिल्ली, ०१ फरवरी: (पी टी आई) मुंबई पर हुए 26/11 दहश्तगर्द हमलों के कलीदी मुजरिम मुहम्मद अजमल अमीर क़स्साब ने सुप्रीम कोर्ट में इस्तेदलाल पेश किया है कि इस मुक़द्दमा में इस की आज़ाद-ओ-ग़ैर जांबदार समाअत नहीं हुई है।

सीनीयर ऐडवोकेट राजू रामचंद्रन ने जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने इस मुक़द्दमा में क़स्साब की वकालत के लिए सालसी मुक़र्रर किया है, जस्टिस आफ़ताब आलम की ज़ेर क़ियादत बंच से कहा कि वो (क़स्साब) इस मुल्क के ख़िलाफ़ जंग छेड़ देने की वसीअ तर साज़िश का हिस्सा नहीं था।

मिसिज़ रामचंद्रन ने कहा कि हती कि अगर मैं (क़तल की सज़ा-ए-के लिए) दफ़ा 302 के तहत जुर्म का मुर्तक़िब भी पाया जाता होतो इस को हरगिज़ ये नहीं कहा जा सकता कि मैं मुल्क के ख़िलाफ़ जंग छेड़ने की किसी वसीअ तर साज़िश का हिस्सा था।

उन्होंने बंच पर बहस करते हुए ये दावा भी किया कि इस्तिग़ासा इस मुक़द्दमा में किसी शक-ओ-शुबा के बगै़र क़स्साब को ख़ाती साबित करने में नाकाम होगया है। इलावा अज़ीं क़स्साब को अपनी सही दिफ़ा करने और सफ़ाई ब्यान करने का मौक़ा भी नहीं दिया गया इलावा अज़ीं किसी मुल्ज़िम को सफ़ाई की पेशकशी के लिए क़ानूनी मदद की फ़राहमी के हक़ की ख़िलाफ़वर्ज़ी भी की गई है।

अदालत अज़मी ने 10 अक्टूबर को एक हुक्म जारी करते हुए 24 साला अजमल अमीर क़स्साब को दी गई सज़ाए मौत पर हुक्म अलतवा जारी कर दिया था जो मुंबई हमलों के मुक़द्दमा में ज़िंदा बच जाने वाला वाहिद बंदूक़ बर्दार है।

क़स्साब की तरफ़ से दायर कर्दा ख़ुसूसी दरख़ास्त रुख़स्त में बॉम्बे हाईकोर्ट के फ़ैसले को चैलेंज करते हुए ये दावा किया गया था कि ख़ुदा के नाम पर ऐसे घीनौने जुर्म करने के लिए इस (क़स्साब) की रोबोट की तरह ज़हन साज़ी की गई थी। और वो इस कम उम्र में सज़ाए मौत का मुस्तहिक़ नहीं है।

क़स्साब को नॉर्थ रोड जेल में रखा गया है जहां से इस ने जेल हुक्काम की मदद से ख़ुसूसी दरख़ास्त रुख़स्त दायर किया है।

जिस में दहश्तगर्दी के इस मुक़द्दमा में इस के जुर्म की तसदीक़ और इस पर दी जाने वाली सज़ा-ए-को चैलेंज किया गया है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने 21 फरवरी को अपने फ़ैसले में तहत की अदालत के फ़ैसले को जायज़ क़रार दिया था जिस में क़स्साब को सज़ाए मौत दी गई थी।