आम आदमी पार्टी के जन लोक पाल बिल पर तनाज़े के पेशे नज़र सदर जम्हूरिया प्रणब मुखर्जी ने आज कहा कि किसी भी क़ानून के कारामद होने की जांच चाहे वो मर्कज़ का हो या रियासत का अदलिया की जानिब से ही दस्तूर में मुक़र्ररा तारीख़ के मुताबिक़ की जाती है।
पार्लियामेंट की बुनियादी क़ानूनसाज़ी है ताकि अवाम को समाजी , मआशी और सियासी हर महाज़ बाइख़तियार बनाए। आमिला पर क़ाबू पाए और उसे हर लिहाज़ से जवाबदेह बनाए। प्रणब मुखर्जी ने कहा कि क़ानून के कारामद होने का फ़ैसला चाहे वो मर्कज़ी या रियासती क़ानून हो अदलिया की जानिब से दस्तूर में मुक़र्ररा तारीफ़ की बुनियाद पर किया जाता है।
सदर जम्हूरिया का ये तबसरा एक ऐसे वक़्त मंज़रे आम पर आया है जबकि हुकूमत दिल्ली जन लोक पाल बिल के सिलसिले में मर्कज़ी हुकूमत के साथ सफ़ आराई में मसरूफ़ है। चीफ़ मिनिस्टर दिल्ली अरवीनद केजरीवाल कह चुके हैं कि वो विज़ारत-ए-दाख़िला से इजाज़त हासिल किए बगै़र जन लोक पाल बिल दिल्ली असेम्बली में पेश करेंगे ।
केजरीवाल ने 12 साल पुराना हुक्म वापिस लेने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है जिस के तहत ये लाज़िमी है कि तमाम मिसो अदात क़ानून दिल्ली असेम्बली में पेश करने से पहले मंज़ूरी के लिए मर्कज़ी विज़ारत-ए-दाख़िला को रवाना किए जाएं। ओहदेदारों के बमूजब 2002 का हुक्मनामा हुकूमत दिल्ली की जानिब से क़ानूनी मश्वरा और विज़ारत-ए-दाख़िला से राय हासिल किए बगै़र कुलअदम नहीं किया जा सकता।
उसे विज़ारते क़ानून से राय हासिल करनी होगी। ओहदेदारों ने कहा कि ये हुक्मनामा मौजूदा हुकूमत का मनज़ोरा नहीं है। केजरीवाल ने कहा कि इस हुक्मनामे से जो दस्तूर के ख़िलाफ़ है दसतबरदारी इख़तियार की जानी चाहिए ।