क़ानून हक़ तालीम का इमदादी या गैर इमदादी अक़लीयती स्कूलों पर इतलाक़ नहीं होता। इन हालात में अक़लीयती स्कूल्स मआशी तौर पर कमज़ोर तबक़ात से ताल्लुक़ रखने वाले बच्चों के लिए 25 फ़ीसद नशिस्तें महफ़ूज़ रखने के पाबंद नहीं होंगे।
ये अक़लीयती तालीमी ईदारीयों की किसी अंजुमन यूनीयन और एसोसीएशन के ओहदेदारों की जानिब से ज़ाहिर कर्दा ख़्यालात नहीं हैं बल्कि हमारे मुल्क की अदालते उज़्मा (सुप्रीम कोर्ट) की रोलिंग है जिस से मुल्क में फैले लाखों अक़लीयती स्कूलों को ज़बरदस्त राहत मिली है।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस आर एम लोधा की ज़ेरे क़ियादत एक पाँच रुक्नी बेंच ने कहा है कि अक़लीयती इदारे क़ानून हक़ तालीम के दायरेकार में नहीं आते। अदालते उज़्मा ने साथ ही समाजी बहबूद से मुताल्लिक़ क़ानून के दस्तूरी जवाज़ को भी बरक़रार रखा है जिस की कई एक दस्तूरी तरमीमात के बाद तदवीन अमल में आई थी।
इस क़ानून के तहत गैर इमदादी ख़ान्गी स्कूलों के लिए कमज़ोर तबक़ात के तलबा के लिए 25 फ़ीसद नशिस्तें महफ़ूज़ रखना लाज़िमी क़रार दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के पाँच रुक्नी बेंच ने दफ़ा (5)15 और 21A को भी बरक़रार रखा है जिस के तहत ख़ान्गी स्कूलों के लिए अमलन 25 फ़ीसद नशिस्तें कमज़ोर तबक़ात से ताल्लुक़ रखने वाले तलबा के लिए महफ़ूज़ करना लाज़िमी है।
दरख़ास्त गुज़ारों ने इस्तिदलाल पेश किया कि माज़ी में दी गई रोलिंग में वाज़ेह तौर पर कहा गया है कि इस किस्म की मुदाख़िलत क़ानून हक़ तालीम की दफ़आत 14, (1)15, (1)19 ( जी ) और 21 की ख़िलाफ़वर्ज़ी होती है।
यहां इस बात का तज़किरा ज़रूरी होगा कि साल 2009 के दौरान पार्लीयामेंट ने क़ानून हक़ तालीम मुदव्विन किया था जिस की दफ़ा 21A के तहत 6 ता 14 साल उम्र के हामिल बच्चों को मुफ़्त तालीम फ़राहम करने को यक़ीनी बनाया गया।