क़ियामत के तीन होलनाक मवाक़े

उम अलमॶमनीन हज़रत सय्यदा आईशा सिद्दीक़ा रज़ी अल्लाह अनहा से रिवायत है कि (एक दिन) वो (यानी हज़रत आईशा) दोज़ख़ की आग का ख़्याल करके रोने लगीं, यानी अचानक उन के दिल में दोज़ख़ का ख़्याल आगया तो इस की दहश्त से उन पर गिरिया तारी हो गया। रसूल करीम सिल्ली अल्लाह अलैहि वसल्लम ने (इन को इस तरह अचानक रोते देखा तो) पूछा कि ये तुम्हें क्या हुआ, क्यों रो रही हो?। उन्हों ने कहा कि मुझे दोज़ख़ की आग का ख़्याल आगया था (उस की दहश्त और ख़ौफ़ से रोने लगी हूँ) और हाँ क्या आप सिल्ली अल्लाह अलैहि वसल्लम क़ियामत के दिन अपने अहल-ओ-अयाल को भी याद रखेंगी?। रसूल करीम सिल्ली अल्लाह अलैहि वसल्लम ने (ये सुन कर) फ़रमाया कि (वैसे तो अहल-ए-बैत ही किया, क़ियामत के दिन अपनी पूरी उम्मत का ख़्याल-ओ-फ़िक्र होगा, लेकिन) सूरत-ए-हाल ये है कि इस दिन तीन मवाक़े ऐसे होंगे कि वहां किसी को किसी का ख़्याल नहीं होगा, यानी मख़सूस तौर पर किसी का ख़्याल नहीं होगा (अलबत्ता शफ़ाअत अज़मी उमूमी तौर पर तमाम ख़लाइक़ के लिए होगी)। एक मौक़ा तो वो होगा, जब (आमाल-ओ-किरदार को तौलने के लिए मीज़ान सामने होगी, ताआनका ये मालूम ना हो जाय कि इस की मीज़ान भारी रही या हल्की, यानी जब तक आमाल तुल ना जाऐंगे और ये पता ना चल जाएगा कि नेक आमाल का पलड़ा झुक गया है या ऊपर को उठ गया ही, तब तक हर शख़्स अपनी अपनी फ़िक्र में सरगरदां रहेगा। दूसरा मौक़ा वो होगा, जब आमाल नामे (हाथों में) हवाले किए जाएंगी, यहां तक कि ये ना कहा जाने लगे कि आॶ मेरा आमालनामा पढ़ो और जब तक कि ये मालूम ना हो जाय कि पीठ के पीछे से आमाल दाएं हाथ में दिया गया है या बाएं हाथ में। बाएं हाथ में (यानी दूसरा होलनाक मौक़ा वो होगा, जब हर एक के बारे में नजात या अज़ाब का फ़ैसला होने वाला होगा और लोगों के आमाल नामे उन की पीठ के पीछे से उन के हाथों में थमा दिए जाएंगी। चुनांचे जो शख़्स नजात याफ़ता होगा, इस का आमालनामा इस के दाएं हाथ में आएगा और जो शख़्स मुस्तूजिब अज़ाब गिरदाना जाएगा, इस का आमालनामा इस के बाएं हाथ में होगा। इस तरह उस वक़्त जब तक ये मालूम ना हो जाय कि किस का आमालनामा इस के दाएं हाथ में और किस का आमालनामा इस के बाएं हाथ में दिया गया है और जिस का आमालनामा दाएं हाथ में आएगा, वो मारे ख़ुशी के ये ना कह उठे कि आॶ मेरा आमालनामा पढ़ लो तब तक हर शख़्स तरद्दुद में रहेगा और किसी को किसी का होश-ओ-ख़्याल नहीं रहेगा) और तीसरा मौक़ा वो होगा, जब लोग पुल सिरात (से गुज़रनी) के क़रीब होंगे और वो पल सिरात जहन्नुम की पुश्त पर (यानी इस के दहाने पर) रखा जाएगा (यहां तक कि ये मालूम ना हो जाय कि इस पर से आफ़ियत के साथ गुज़रकर नजात पाली है या जहन्नुम में गिर पड़ा ही)। (अबोदाॶद)
हज़रत सय्यदा आईशा सिद्दीक़ा रज़ी अल्लाह अनहा को हुज़ूर अकरम सिल्ली अल्लाह अलैहि वसल्लम के जवाब का हासिल ये है कि क़ियामत के दिन ख़ास तौर पर तीन मवाक़े ऐसे होंगी, जिन की दहश्त-ओ-होलनाकी सब को इस तरह हैरान-ओ-दरमांदा और वहशत ज़दा बना देगी कि किसी को किसी फ़र्द की ख़बर नहीं होगी और ना कोई किसी को याद करने और इस का हाल जानने की मोहलत पाएगा। हर शख़्स अपनी ही फ़िक्र में रहेगा और इस को हर लम्हा ये धड़का लगा रहेगा कि नहीं मालूम मेरा क्या हश्र हो और मुझे किस अंजाम से दो चार होना पड़ी। वाज़िह रहे कि लोगों के हाथों में उन के आमाल नामों के पहुंचने की सूरत ये होगी कि दाएं हाथ को गर्दन में डाल कर पुश्त की तरफ़ से निकाला जाएगा और बाएं हाथ को बग़ल के नीचे से निकाल कर पुश्त की तरफ़ ले जाया जाएगा और फिर पुश्त की तरफ़ से हाथों में आमाल नामे दे दिए जाएं ग.