गुजरात में 2002 के मुस्लिम कश फ़सादात के दौरान एक मुसलमान क़ुतबुद्दीन अंसारी का हाथ जोड़कर फ़िर्क़ा परस्तों से रहम तलब करते हुए तस्वीर ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एक अलामती दर्जा हासिल करलिया था जबकि एक हिंदू फ़िर्कापरस्त अशोक मोची को भी तलवार लहराते हुए दिखाया गया था लेकिन आज इतने साल गुज़र जाने के बाद केरला के थला सेरी में ये दोनों मुतज़ाद शख़्सयात ना सिर्फ़ एक कमरे में रिहायश पज़ीर थे बल्कि एक ही ख़ाब को शर्मिंदा ताबीर होते भी देखना चाहते थे।
12 साल बाद जब क़ुतबुद्दीन अंसारी ने बजरंग दल के साबिक़ वर्कर अशोक मोची से मुलाक़ात की तो दोनों ने ही एक दूसरे से मुसाफ़ा किया और अज्म किया कि वो अपनी पुरानी बातों को ख़त्म करदेंगे। स्टेज पर दोनों ही मौजूद थे और एक दूसरे से ख़ुशगवार मूड में बात करते भी नज़र आए।
दोनों ही अब अपनी उम्र की चालीसवें दहाई में हैं। उन्होंने अवाम के सामने ठहरकर गुजरात फ़सादात के दौरान अपने अपने तजुर्बात का इज़हार किया कि किस तरह डर, ख़ौफ़, नफ़रत, तशद्दुद और ख़ूँरेज़ी गुजरात का मुक़द्दर बन गई थी। 12 रस आफ़टर दी जीनो साईड के उनवान से एक समेनार में दोनों को बतौर मेहमान मदऊ किया गया था जो सी पी आई (एम) की सरपरस्ती में तर्तीब दिया गया था।
तक़रीब के दौरान क़ुतबुद्दीन अंसारी ने कहा कि मुहब्बत क्या चीज़ होती है इस का अंदाज़ा मुझे गुजरात छोड़ने के बाद हुआ। आज भी सेकड़ों अफ़राद मुझ से मुलाक़ात के लिए आते हैं लेकिन मैं सिर्फ़ उन लोगों से मिलता हूँ जिन में इंसानियत बाक़ी है। पेशा से दर्ज़ी, क़ुतुबुद्दीन अंसारी की तस्वीर जहां वो हाथ जोड़कर फ़िर्क़ा परस्तों से रहम की अपील कररहा है, उस ज़माने में भी इंटरनेट के जरिया सारी दुनिया में फैल गई थी हालाँकि बारह साल क़बल इंटरनेट का इस्तिमाल इतना आम नहीं था जितना आज है।
बहरेहाल अशोक मोची ने भी अंसारी से हाथ मिलाकर ये एतराफ़ किया कि वो ख़ुद भी नफ़रत के माहौल में रहने के बाद अब मुसालहती ज़िंदगी जीना चाहता है। जो गुज़र गया सो गुज़र गया। माज़ी बेशक मुनाफ़िरत से पर था और उसने भी मुहब्बत की अहमियत को उस वक़्त समझा जब उसने अपनी माज़ी को बिलकुल तर्क करदिया और अब अंसारी को में अपना भाई तसव्वुर करता हूँ। 2002 में जो हुआ वो सियासतदानों की कारस्तानी थी और हम उनके हाथों का खिलौना बन गए थे।