क़ुतुब शाही बड़ी मस्जिद अता पुर। 7 एकड़ 10 गुनटे अराज़ी अब कहां है?

अब्बू एमल

अता पुर की क़ुतुब शाही मस्जिद को बड़ी मस्जिद भी कहा जाता है। मस्जिद दरगाह हज़रत इबराहीम शाह साहिब के तहत 7 एकड़ 10 गनटे अराज़ी के साथ थी जिस का सर्वे नंबर 389 अता पुर है। राजिंदर नगर मंडल आर आर डिस्ट्रिक्ट के रिकार्ड में ये सब इंदिराजात हैं। इस ज़मीन पर क़बज़ा करने में अपनों के साथ ग़ैरों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। इन नाजायज़ क़ब्ज़ों का सिलसिला आज भी जारी है। कुछ फ़िक्रमंद मुक़ामी हज़रात रात में इस की हिफ़ाज़त भी कररहे हैं लेकिन इन हक़ परस्तों को हर तरफ़ से परेशान किया जा रहा है। वैसे भी हम ने वक़्फ़ जायदादों की कभी मूसिर हिफ़ाज़त नहीं की। हम ने अल्लाह के तईं अपनी ज़िम्मेदारी को कभी पूरा नहीं किया। बुज़ुर्गों की वक़्फ़ करदा अराज़ी-ओ-जायदादों को हम ने और हमें देख कर ग़ैरों ने तिजारत और मुनाफ़ा ख़ोरी का ज़रीया बना लिया। अब इसी अता पुर की दरगाह की ज़मीन की बात सनईए दरगाह की मौक़ूफ़ा अराज़ी के आधे से ज़्यादा हिस्सा पर ग़ैरों ने क़बज़ा जमा लिया है। इन अराज़ी से मुताल्लिक़ वक़्फ़ बोर्ड के मौजूदा रिकार्ड और क़दीम रिकार्ड में भी फ़र्क़ पाया जाता है या ख़ुदा जाने फ़र्क़ पैदा करदिया गया है। चुनांचे मौजूदा वक़्फ़ रिकार्ड में दरगाह की अराज़ी 2 एकड़ 10 गनटे बताई गई है जबकि क़दीम रिकार्ड में 7 एकड़ 10 गनटे दर्ज हैं। हाइकोर्ट के अहकाम के मुताबिक़ यहां किसी किस्म की तामीर या खुदवाई नहीं होसकती लेकिन महिकमा वाटर वर्क़्स धड़ल्ले से ये सब कुछ कररहा है। खुदवाई जारी है। मस्जिद कमेटी के मुख़लिस अरकान क़ाबिल मुबारकबाद हैं कि वो इन हस्सास और नाज़ुक मुआमलात से गहिरी दिलचस्पी ले रहे हैं क्योंकि इन में दर्द भी है। हसब-ए-आदत वक़्फ़ बोर्ड ग़फ़लत शआरी का शिकार है। सब से पहले तो वक़्फ़ बोर्ड को अपना रिकार्ड ठीक करना चाहीए कि कैसे जदीद और क़दीम इंदिराजात में फ़र्क़ पैदा हुआ। कैसे 7 एकड़ 10 गनटे 2 एकड़ 10 गनटे होगई। इस इलाक़ा में ज़मीन काफ़ी गिरां है। हम ने लापरवाही की तो सारी बेशक़ीमत अराज़ी हाथ से निकल जाएगी और हम हाथ मिलते रह जाऐंगे जैसा कि हम हमेशा करते आए हैं। इस अराज़ी की हमें हिफ़ाज़त करनी चाआई। वक़्फ़ बोर्ड को भी अपनी ज़िम्मेदारी महसूस करनी चाआई। हरवक़त हर जगह ग़फ़लत के मुज़ाहिरे ने हमें कहीं का नहीं रखा। जहां तक इस इदारा की हिफ़ाज़त के लिए मेहनत करने वालों का ताल्लुक़ है उन्हें हर तरह से परेशान किया जाता है नाजायज़ क़ाबज़ीन ख़ुद मारने मरने पर आमादा होजाते हैं। कभी कभी इन शुरफ़ा को पुलिस भी डराती धमकाती है। मस्जिद कमेटी ने मस्जिद के बाहर एक तख़्ती लगा रखी है, जिस पर लिखा है के ये वक़्फ़ जायदाद है और इस का रकबा 7 एकड़ 10 गनटे , लेकिन अब कहां। क़ारईन इस क़ीमती ज़मीन पर नाजायज़ क़बज़े होचुके हैं। मकानात तामीर होचुके हैं। ये कहा जा सकता है का सब ने मिल कर दरगाह की मौक़ूफ़ा अराज़ी को लूट लिया। अक्सर तामीरी काम रात के वक़्त होता है। दिन के उजाले में तामीर करदा हिस्सा पर पानी डाला जाता है। हर शख़्स ख़ूब जानता है इस मिली भगत को। वक़्फ़ बोर्ड की लापरवाही का नतीजा निकला ग़ैरों ने और ख़ुद हम ने मिल कर अपने अज्दाद की वो ज़मीन हड़प करली जो बुज़ुर्गों ने अल्लाह के नाम पर हमें बतौर अमानत दी थी। 29 फ़बरोरी 2011-ए-को वक़्फ़ बोर्ड के सदर नशीन जनाब ख़ुसरो पाशाह ने दौरा किया। हिसारबंदी का तीक़न दिया लेकिन अभी तक अमल शुरू नहीं हुआ है। मिल्लत की अमानत पर लोग बड़ी आसानी से क़ाबिज़ होजाते हैं और ये सिलसिला जारी है। वक़्फ़ बोर्ड सूरत-ए-हाल का ख़ामोश तमाशाई बना हुआ है बल्कि अपाहच बना हुआ है हालाँकि बोर्ड के पास मुकम्मल रिकार्ड मौजूद है। इस लिए बोर्ड की ख़ामोशी की कोई वजह समझ में नहीं आती जिस ने भी ये तारीख़ी मस्जिद तामीर की थी क्या इस ने अतराफ़ की अराज़ी वक़्फ़ करके कोई ग़लती की थी जिस की सज़ा दी जा रही है। हमारे शहर हैदराबाद में अल्लाह की ज़मीन पर नाजायज़ क़बज़े शिद्दत से जारी हैं। ये अब तो आम बात होगई बल्कि सच्च कहा जाय तो उसे नाजायज़ क़ब्ज़ों पर हमारी ख़ामोशी, आधी रजामंदी बनती जा रही है। अल्लाह के घरों पर इस के लिए वक़्फ़ की गई अराज़ी पर क़ब्ज़ों का ये सिलसिला जारी रहेगा तो हम बहुत जल्द दूसरों के आगे हाथ पसारने पर मजबूर होजाएंगी। अतापोर में ज़रूरत इस बात की हैका पहले यहां दुबारा सर्वे किया जाय फिर उस की हिसारबंदी की जाई। इस इलाक़ा का दौरा करके अख़बारात को ब्यान जारी करना काफ़ी नहीं होगा। यहां के लोगों ने बताया कि इस इलाक़ा में ज़मीन 20 हज़ार रुपय गज़ फ़रोख़त होती है तो अंदाज़ा लगाईए कि 7 एकड़ 10 गनटे ज़मीन की क्या भारी क़ीमत होगी। जो लोग यहां वक़्फ़ अराज़ी पर क़ाबिज़ होगए हैं इन को तख़लिया की नोटिस फ़ौरी दी जानी चाआई। हम जब यहां का दौरा कररहे थे तो एक ख़ातून ने रोते हुए कहा कि मेरा बेटा अबदुलजब्बार का कुछ है दिन पहले इंतिक़ाल हुआ था। ज़ालिमों ने प्लाट बनाने केलिए उस की क़ब्र को मिस्मार करदिया। वहां मकान तामीर करदिया। ज़ुहरा बेनामी एन ख़ातून ने भी कहा कि ये तमाम समाजी कीड़े , मकोड़े आम क़ब्रों को मिटा रहे हैं। ज़मीन पर दनदनाते हुए सफ़ैद कपड़ों में मलबूस होकर स्याह कारीयां काले काम कररहे हैं। इन की सरगर्मीयों की इत्तिला देने पर वक़्फ़ बोर्ड आता ज़रूर है लेकिन कुछ करता नहीं। सैंकड़ों दरख़ास्तें राजिंदर नगर पुलिस स्टेशन में पड़ी हुई हैं। पुलिस के आते ही सब काम बंद होजाते हैं। पुलिस के जाते ही फिर वही रफ़्तार बेढंगी शुरू होजाती है। सब को राज़ी ख़ुश करके मना लिया जाता है और सब मिल कर ओक़ाफ़ी ज़मीन हड़प करते जा रहे हैं। मुक़ामी लोगों का कहना हैका ये ज़मीन पुलिस और लैंड गिरा बरस दोनों के लिए भी सोने की कान बनी हुई है जबकि वक़्फ़ बोर्ड के दफ़्तर से सिर्फ 20 मिनट के फ़ासिला पर अल्लाह की ये अमानत है। क़ारईन को हम ये मश्वरा देना चाहते हैं कि एक मर्तबा ज़रूर इस तारीख़ी मस्जिद को देखें। फ़न तामीर का ये आला नमूना है और सारी मस्जिद पत्थर से बनाई गई है। इस ज़मीन पर ये मस्जिद एक क़ीमती मोती की तरह है और अब इन धड़कते तड़पते लोगों को आवाज़ दे रही है कि मुझे लैंड गिरा बरस से बचाॶ। इस की ये तड़प और बेचैनी और करब हम से तो नहीं देखा जाता । आख़िर कब तक ये आलम ग़फ़लत हम पर तारी रहेगा। कब तक वक़्फ़ बोर्ड की लापरवाही की क़ीमत मिल्लत अपनी महरूमी की शक्ल की चुकाती रहेगी। अल्लाह की अमानतें कब तक यूंही ख़ियानतों की शिकार बनती रहेंगी। हम को कब तौफ़ीक़ होगी। क्या हमारे अंदर ओक़ाफ़ी अराज़ी को बचाने का जज़बा ख़ुदा ना करे ख़तम होगया है।