मदीना मुनव्वरा 16 नवंबर । ( एजैंसीज़ ) दो मुहक़्क़िक़ीन जिन्हों ने दावा और कुरानी मुताला में महारत हासिल की है इत्तिफ़ाक़ करते हैं कि ग़ैरमुस्लिमों के ईलाज के लिए भी क़ुरआन-ए-करीम के इस्तिमाल की इजाज़त है ताहम उन्हों ने आयात कुरानी अरबी के इलावा किसी दूसरी ज़बान में तिलावत करने से इत्तिफ़ाक़ नहीं किया।
प्रोफ़ैसर करानी मुताला जात इस्लामी यूनीवर्सिटी मदीना मुनव्वरा के डाक्टर अली बिन ग़ाज़ी ने भी कहा कि क़ुरआन मजीद ग़ैरमुस्लिमों के ईलाज केलिए भी इस्तिमाल किया जाता है । क़ुरआन-ए-करीम की तिलावत और दम करने वाला शख़्स इस का रुकमी मुआवज़ा भी हासिल कर सकता है ।
इलतिवा जरी ने बीमारीयों के ईलाज के लिए क़ुरआन-ए-करीम के फ़वाइद की एक तवील फ़हरिस्त तैय्यार की है और मुस्लमानों से ख़ाहिश की है कि इन आयात की रोज़ाना तिलावत की जायॆ।
मुहक़्क़िक़ीन की अक्सरीयत इत्तिफ़ाक़ करती है कि क़ुरआन-ए-क्रीम का बीमारीयों के ईलाज केलिए चाहे वो जिस्मानी हो या ग़ैर जिस्मानी इस्तिमाल संत रसूल अल्लाह है । मख़सूस हालात में आयात की तिलावत की जा सकती है लेकिन क़ुरआन-ए-क्रीम का इस मक़सद ग़ैर अरबी ज़बान में तर्जुमा पढ़ना या उस की तफ़सीर और तावील का मुताला तिलावत क़ुरआन-ए-करीम के ज़ुमरे में शामिल नहीं है ।
तिलावत क़ुरआन-ए-करीम केलिए कोई शराइत आइद नहीं की गई हैं और ग़ैरमुस्लिमों के ईलाज केलिए किसी मुस्लमान की आयात करानी की तिलावत करने कोई इमतिना आइद नहीं । ईलाज के मक़सद से तिलावत क़ुरआन-ए-करीम और दम करने का रुकमी मुआवज़ा हासिल करने पर भी कोई पाबंदी नहीं है ।