बिलाशुबा ये क़ुरआन क़ौल ए फ़ैसल है और ये हंसी मज़ाक़ नहीं है । ये लोग तरह तरह की तदबीरें कर रहे हैं और मैं भी तदबीर फ़रमा रहा हूँ। पस आप कुफ़्फ़ार को (थोड़ी सी) मोहलत और दे दें कुछ उन्हें कुछ ना कहें (९ ता १२)
इन हक़ीक़तों की क़सम जिनका तुम बार बार मुशाहिदा करते रहते हो तुम अंजान और भोले बनने की हज़ार कोशिश करो फिर भी इनका इनकार नहीं कर सकते, इसी तरह क़ुरआन भी ऐसे रोशन हक़ायक़ का मजमूआ है जिनका इनकार किसी होशमंद इंसान के बस की बात नहीं। ये कौल-ए-फ़ैसल है।
इसका हर फ़ैसला क़तई और अटल है। जिस चीज़ को इसने हक़ कह दिया वही हक़ है, जिसको इस ने बातिल कह दिया वही बातिल है। ज़माने के तग़य्युरात, हालात के तक़ाज़े, कुरआनी हक़ायक़ को उलट पलट नहीं कर सकते। ये ऐसी बातें नहीं हैं जो अज़राह-ए-मज़ाक़ महज़ दिल लगी के लिए कह दी हो और जिनका ज़ाहिर, उनके बातिन के बरअक्स हो।
कुफ़्फ़ार इस्लाम को ज़क पहुंचाने के लिए और हुज़ूर स०अ०व० को नाकाम बनाने के लिए हर वक्त साज़िशें करते रहते हैं। छुप छुप कर मंसूबे तैयार करते हैं। अल्लाह तआला फ़रमाता है वो जो चाहें मंसूबे बनाए, मकर-ओ-फ़रेब के दाम बिछाएं, मैं इनका तोड़ करता जाऊंगा।
उनकी हर तदबीर उलटी होगी, उनकी हर कोशिश उनकी नाकामी का बाइस बनेगी। अल्लाह तआला उनकी जद्द-ओ-जहद को जो वो कुफ्र के ग़लबा को बरक़रार रखने के लिए कर रहे हैं, उनकी नाकामी और शिकस्त का बाइस बना देगा।
वो बड़े कर-ओ-फ़र्र से बदर के मैदान में आए थे। उन्होंने ये ऐलान किया था कि वो आज इस्लाम का चिराग़ बुझा कर वापस जाएंगे। बड़े बहादुर सूरमाओं का लश्कर वो हमराह लाए थे, लेकिन उनकी यही चाल उनकी बरबादी का बाइस बन गई।
उनके बड़े बड़े रईस मारे गए। मक्का के घर घर में सफ़ ए मातम बिछ गई। यही हाल उनकी दीगर साज़िशों का हुआ। किस तरह अपने महबूब की दिल नवाज़ी की जा रही है कि आप अभी उन नाबकारों को कुछ मोहलत और दें ।
मुख़्तसर अर्से के लिए उन्हें अपने सारे अरमान पूरे करने दें। उनकी तकलीफ़ रसानियों पर सब्र करें, मैं ख़ुद उनसे निपट लूंगा, में ख़ुद उनको उनके करतूतों का मज़ा चखा दूंगा।