हर मज़हब और क़ौम में तहवार और जश्न मनाने के लिए कुछ खस दिन होते हैं। इस्लाम के अलावा दुसरे मज़ाहिब-ओ-अक़्वाम में एसे तहवारों की तादाद बहुत ज़्यादा है, मगर मज़हब इस्लाम में ख़ुशी मनाने के लिए ईद के नाम से सिर्फ़ दो दिन मुक़र्रर किए गए हैं।
इन में एक तो ईद उलफ़तर का होता है और दूसरा दिन ईद अज़हा का है, जिस के लिए ईद उलफ़तर के दो माह दस दिन बाद ज़िल्हज की दस तारीख मुक़र्रर है।
उस दिन सारे आलम के मुसलमान अल्लाह ताआला की रज़ा के हुसूल के लिए जानवर की क़ुर्बानी पेश करते हैं। ज़िल्हज का महीना बड़ी अहमियत का हामिल है।
इस महीने में दो अज़ीम इबादतें अदा की जाती हैं और इन दोनों का ताल्लुक़ एक अज़ीम पैग़म्बर हज़रत सय्यदना इब्राहीम(AS) की याद से वाबस्ता है।
अल्लाह ताआला को अपने खलील के ये आमाल इस क़दर पसंद आए कि रहती दुनिया तक के लिए उनको जारी-ओ-सारी करदिया। इसी लिए उस दिन हर आक़िल बालिग़ साहिब निसाब मुसलमान पर क़ुर्बानी वाजिब क़रार दी गई है।
अहादीस शरीफा में क़ुर्बानी की बड़ी फ़ज़ीलत बयान की गई है। हज़रत स्येदा आईशा सिद्दीक़ा रज़ी अल्लाहु तआला अनहा से मर्वी हैके हुज़ूर अक़्दस (स०अ०व०) ने इरशाद फ़रमाया यौम अलनहर यानी ईद अज़हा के दिन इंसान का कोई अमल अल्लाह ताआला को क़ुर्बानी से ज़्यादा पसंद नहीं है।
क़ुर्बानी का जानवर क़यामत के दिन अपने सींगों, अपने बालों और खुरों के साथ ज़िंदा होकर आएगा और क़ुर्बानी का ख़ून ज़मीन पर गिरने से पहले अल्लाह ताआला की रज़ा के मुक़ाम पर पहुंच जाता है, इस लिए ए अल्लाह के बन्दू! ख़ुश दिली से क़ुर्बानी किया करो।
हज़रत सय्यदना हुसैन रज़ी अल्लाहु तआला अनहु से मर्वी हैके हुज़ूर अकरम (स०अ०व०)ने फ़रमाया जो शख़्स खुश दिल्ली के साथ क़ुर्बानी करता है तो वो क़ुर्बानी इस के लिए जहन्नुम से आड़ बन जाती है।
क़ुर्बानी करने वाला सिर्फ़ अल्लाह ताआला के हुक्म और इताअत की नियत से क़ुर्बानी करे और इस क़ुर्बानी को अपने लिए कोई जबर ना समझ कर ख़ुश दिली से उसको अदा करे तो ये क़ुर्बानी अल्लाह ताआला के नज़दीक मक़बूल होगी और क़ुर्बानी करने वाले के लिए जहन्नुम से रुकावट का ज़रीया बनेगी।
क़ुर्बानी एक अज़ीम इबादत है, लिहाज़ा क़ुर्बानी करने वाले को चाहीए कि वो अपनी क़ुर्बानी में इख़लास पैदा करे, ताकि उसकी क़ुर्बानी बारगाह इलहि में मक़बूल हो जाये।
अगर कोई साहिब निसाब शख़्स दीन से दूरी, बुख़ल और कंजूसी की वजह से क़ुर्बानी नहीं करता तो इस के हक़ में हुज़ूर(स०अ०व०) ने नाराज़गी का इज़हार फ़रमाया है।
हज़रत अबू हुरैरह रज़ी अल्लाहु तआला अनहु से मर्वी हैके हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) ने इरशाद फ़रमाया जो शख़्स क़ुर्बानी करने की वुसअत रखता हो और फिर भी वो क़ुर्बानी ना करे तो एसा शख़्स हमारी ईदगाह में दाख़िल ना हो अल्लाह ताआला हम सब को अमल की तौफ़ीक़ नसीब फ़रमाए और इख़लास के साथ क़ुर्बानी पेश करने की तौफ़ीक़ बख़्शे। (आमीन)