सुप्रीम कोर्ट के हुक्म की नफ़ी की सिम्त एक क़दम उठाते हुए राज्य सभा ने आज एक तजवीज़ को मंज़ूरी दे दी, जिसके तहत जेल में महरूस क़ैदियों को इंतिख़ाबी मुक़ाबला करने का हक़ बरक़रार रखा गया है।
इस दौरान वज़ीर-ए-क़ानून कपिल सिब्बल ने इस्तिदलाल पेश किया कि सियासतदानों को मुजरिम साबित करने केलिए अदालतें ग़ैरमामूली जोश-ओ-ख़ुरोश का मुज़ाहरा करती हैं। क़ानून अवामी नुमाइंदगी में तरमीमात(बद्लाव) पेश करते हुए सिब्बल ने कहा कि अदालत-ए-उज़्मा का फ़ैसला वाज़ह तौर पर उसी तरह था।
उन्होंने अदलिया को मश्वरा दिया कि वो ऐसे रोलिंग्स जारी करने में ग़ैरमामूली एहतियात का मुज़ाहरा करें जिन के असरात मुल्क की सियासत पर मुरत्तिब होते हैं। अवामी नुमाइंदगी (तरमीम-ओ-जवाज़) बिल 2013 ऐवान में मंज़ूर करलिया गया जिस में क़ानून अवामी नुमाइंदगी के दफ़ा 62 के ज़ेली दफ़ा (2) तहत ये गुंजाइश फ़राहम की गई है कि ज़ेर-ए-हिरासत किसी शख़्स के हक़ राय दही को रोका नहीं जा सकता बल्कि आरिज़ी तौर पर किसी मर्द या ख़ातून क़ैदी का हक़ मुअत्तल किया जा सकता है।
एक तरमीम में तशरीह की गई है कि जेल में महरूस शख़्स का नाम बदस्तूर फेहरिस्त राय दहिंदगान में शामिल रहेगा और वो मर्द औरत राय दहिंदा रहेंगे और इंतिख़ाबात में पर्चा नामज़दगी दाख़िल करसकते हैं।