क़ौमी सलामती ज़राए की खु़फिया नौईयत से बालातर

नई दिल्ली: सहाफियों को अपने ज़राए पोशीदा रखने और उनके तहफ़्फ़ुज़ का अवामी मुफ़ाद में हक़ हासिल है लेकिन जब क़ौमी सलामती से उनका तक़ाबुल किया जाये ज़राए का खु़फ़ीया रखना क़ौमी सलामती से ज़्यादा अहम नहीं हो सकता। वो सरदार पटेल यादगारी लेकचर दे रहे थे।

उन्होंने कहा कि देरीना तनाज़ात या मसला जो ज़ेर-ए-बहस है सहाफ़ीयों के हक़ के बारे में है कि उन्हें अपने ज़राए के तहफ़्फ़ुज़ का हक़ हासिल है या नहीं। उन्होंने कहा कि उनके ख़्याल में जिस तरिक़े से दुनिया-भर की अदालतें इस सिलसिले में इक़दामात कर चुकी हैं वो दुरुस्त सिम्त में है।

किसी को भी अपने ज़राए पोशीदा रखने का हक़ है लेकिन जब क़ौमी सलामती का सवाल आजाए तो उसे ज़राए की खु़फ़ीया नौईयत तक बरतरी हासिल होजाती है। अरूण जेटली ख़ुद भी एक नामवर क़ानूनदां हैं । उन्होंने कहा कि ये मामला इन्फ़िरादी साख और अवामी मुफ़ाद का है।

उन्होंने कहा कि दुनिया-भर में फ़ैसलों का रुजहान उसी सिम्त है चुनांचे क़ौमी सलामती को हर मुल्क में ज़राए की खु़फिया नौईयत पर तर्जीह दी जाती है।