क़ज़ाफ़ी के दीदार के लिए अवाम का तांता

बिन ग़ाज़ी (लीबिया), 25 अक्तूबर (राईटर) लीबिया में नई हुकूमत के क़ानून इस्लामी शरीयत पर मबनी होंगी। क़ौमी उबूरी कौंसल के सरबराह मुस्तफ़ा अबदुलजलील ने सजदा शुक्र बजा लाने के बाद अवाम से ख़िताब करते हुए में सब से अपील करता हूँ कि वो माफ़ी, रवादारी और मुसालहत से काम लें।

हमें अपनी रूह से नफ़रत और दुश्मनी को निकाल देना चाहिए। इन्क़िलाब की कामयाबी और मुस्तक़बिल की कामयाबी के लिए ये बहुत ज़रूरी है । उन्होंने ऐलान किया कि हम शरई क़ानून नाफ़िज़ करेंगे।

पहले भी ये ऐलान किया गया था कि हुकूमत में इस्लाम का बड़ा रोल होगा। उन्होंने कहा हम मुस्लिम मलिक के तौर पर इस्लामी शरीयत की बुनियाद पर क़वानीन वज़ा करेंगे जो भी क़ानून इस्लामी उसूल के ख़िलाफ़ होगा उसे क़ानूनी तौर से रद्द कर दिया जाएगा।

इसी लिए मुल्क में इस्लामी बैंकिंग भी क़ायम की जाएगी। अबदुलजलील ने ख़लीजी रियास्तों, अरब लीग, अक़वाम-ए-मुत्तहिदा और योरोपी यूनीयन का बग़ावत की हिमायत के लिए शुक्रिया अदा किया।

जिन ममालिक के जहाज़ों ने क़ज़ाफ़ी और उन की फ़ौज पर बम बरसाए थे उन के पर्चम लहराए गई। ये सच्च भी है कि नाटो के जहाज़ों ने जितनी शिद्दत से बमबारी की इसी की वजह से क़ज़ाफ़ी के ख़िलाफ़ बग़ावत करने वालों को फतह नसीब हुई।

लोगों को अंदेशा है कि क़ौमी उबूरी कौंसल के सरबराह मुस्तफ़ा अबदुलजलील इख़तिलाफ़ राय का शिकार इन्क़िलाबी इत्तिहाद पर अपनी मर्ज़ी नहीं चला सकें गे ।इस की वजह से बाअज़ मुबस्सिरीन के इन अंदेशों को हक़बजानिब समझा जा रहा है कि किसी रहनुमा के ना होने की वजह से मुल्क में इंतिशार और बाहमी लड़ाई शुरू हो सकती है।

बाअज़ मुस्लमान इस बात को नापसंद करते हैं कि क़ज़ाफ़ी की शरई उसूलों के मुताबिक़ तदफ़ीन नहीं की गई।अक़वाम-ए-मुत्तहिदा के सेक्रेटरी जनरल बांकी मून ने कहा कि आलमी इदारा नए लीबिया की तामीर में मदद करेगा।

अमरीकी सदर बराक ओबामा ने आज़ादी के ऐलान का ख़ौरमक़दम किया है। आज़ादी के ऐलान के बाद नई हुकूमत की तशकील और आईनसाज़ असैंबली बनाने के बाद 2013 में मुकम्मल जमहूरीयत के क़ियाम की राह हमवार हो गई है।

मगर ये मुल़्क मुख़्तलिफ़ क़बाइल पर मुश्तमिल है और क़ज़ाफ़ी ने इन सब को यकजा क्या हुआ था।मगर अब यहां तशद्दुद भड़क सकता है और बाहमी लड़ाईयां भी होसकती हैं।मिसरा ता में लोग क़तार लगाकर क़ज़ाफ़ी की लाश देखने आरहे हैं।

उन्हें इस बात का ख़्याल नहीं है कि क़ज़ाफ़ी की जल्द तदफ़ीन होनी चाहीए और ना ही क़ौमी कौंसल को इस बात की फ़िक्र है कि बैरून-ए-मुल्क इस हवाले से उनकी क्या शबिया बन रही है।