ख़वातीन के लिए बला सोदी क़र्ज़

रियासत आंधरा प्रदेश में ख़वातीन के लिए सेल्फ हेल्प् ग्रुपस के ज़रीया जिस तरह के फ़वाइद और राहत पहुँचाई जा रही है इस के मुसबत नताइज का जायज़ा लिए बगै़र हुकूमत सिर्फ ऐलानात पर ही इकतिफ़ा कर रही है। चीफ़ मिनिस्टर किरन् कुमार रेड्डी की हुकूमत ने एक साल मुकम्मल होने की ख़ुशी में ख़वातीन को बुला सोदी क़र्ज़ देने का ऐलान किया।

इस से बज़ाहिर ख़वातीन के शोबा को ख़ुशी होगी मगर अब तक के अंजाम दिए गए कामों का जायज़ा लिया जाय तो पता चलता है कि रियासत में ख़वातीन के लिए शुरू करदा असकीमात ही नहीं दीगर कई प्रोग्राम्स सुस्त रवी का शिकार होचुके हैं।

अब तक मालना असकीमात और बहबूदी इक़दामात की अमलदरआमद को यक़ीनी बना लें तो सही मानों में रियासत के अवाम खासकर ख़वातीन की बहबूद की कोशिशों में इन्क़िलाब आजाएगा। चीफ़ मिनिस्टर ने अपने रचा बंडा प्रोग्राम के तहत ख़वातीन के लिए 5 लाख रुपय तक के क़र्ज़ पर कोई सूद ना लेने का ऐलान किया। सेल्फ हेल्प् ग्रुपस की ख़वातीन को यक़ीनन इस से फ़ायदा होगा।

सवाल ये है कि इस सिलसिला में हुकूमत जो पहले ही से ख़सारा के बोझ से दबी हुई है, ख़वातीन को दी जाने वाली बला सोदी रक़म का बोझ भी बर्दाश्त करेगी। हुकूमत के इस फ़ैसला से ख़वातीन को किस हद तक फ़ायदा होगा ये चीफ़ मिनिस्टर की नेक नीयती पर मुनहसिर ही। उन्हों ने फ़ख़्रिया ऐलान तो किया है कि इन के इस तारीख़ी फ़ैसला से देही इलाक़ों में इन्क़िलाबी तबदीली आएगी। ये एक ऐसी तल्ख़ हक़ीक़त है कि ख़वातीन के नाम पर हुकूमत करनेवाली पार्टी देही इलाक़ों में ग़रीब ख़वातीन के लिए तिब्बी निगहदाशत का मोस्सर बंद-ओ-बस्त नहीं करसकती। कई ख़वातीन अपने ईलाज-ओ-मुआलिजा के लिए सरकारी दवा ख़ानों की ठोकरें खाती हैं।

हाल ही में एक ग़रीब ख़ातून को दर्द ज़ह के बावजूद दवाख़ाना में शरीक नहीं किया गया और इस ने सड़क पर ही बच्चे को जन्म दिया। अगर इस तरह की सच्चाई से हुकूमत को वाक़िफ़ करवाया जाय तो वो गो मग्गो , शश-ओ-पंज और ग़ुस्से की कैफ़ीयत में मुबतला होगी। चीफ़ मिनिस्टर अपना एक साल पूरा कररहे हैं अगर उन्हें मालूम करवाया जाय कि इस एक साल के दौरान रियासत के ग़रीब अवाम पर क्या गुज़री है और अक़ल्लीयतों के लिए किस तरह के हालात पैदा किए जा रहे हैं तो वो उलझ पड़ेंगे और कंधे उचकाते हुए ग़ुस्से की निशानी ज़ाहिर करेंगी। इन से कई सवालात किए जा सकते हैं।

ये पूछा जा सकता है कि इन के दौर में आबपाशी प्रॊजॆक्टस् का क्या हुआ, किसानों की बर्क़ी सरबराही में ताख़ीर या अदम सरबराही से फसलों की तबाही का उन के पास कितना रिकार्ड है। शहरी इलाक़ों में ख़ासकर हैदराबाद-ओ-सिकंदराबाद में अवाम को बर्क़ी सरबराही में कटौती के ज़रीया सज़ा दी जा रही है।

शहर में सेहत आम्मा का मसला, साफ़ सफ़ाई, सड़कों की अबतरी, सरकारी दवा ख़ानों की ज़बूँहाली की जानिब तवज्जा दिलाई जाय तो वो इन सवालात में ग़ैर यक़ीनी उन के शश-ओ-पंज का राज़ फ़ाश करदेगी। ये महिज़ इत्तिफ़ाक़ है कि किरण कुमार रेड्डी ने चीफ़ मिनिस्टर की हैसियत से एक साल पूरा कर लिया। जबकि उन के पीछे लातादाद मसाइल हैं। वो अपनी हुकूमत की एक साला तकमील पर बज़ाहिर ख़ुश दिखाई देते हैं लेकिन उन के अंदर फ़रोग़ पाने वाला ग़ुस्सा उन की असल मायूसी का रद्द-ए-अमल है।

उन्हों ने तलंगाना तहरीक को नाकाम बनाने की कोशिश की और रचा बंडा प्रोग्राम के ज़रीया अवाम की तवज्जा अपने फ़लाही कामों की तरफ़ मबज़ूल कराना चाहा। जुमा के दिन भी सेल्फ हेल्प् ग्रुप की ख़वातीन के लिए बुला सोदी क़र्ज़ का ऐलान करने के लिए टी आर ऐस सरबराह के चंद्रशेखर राउ के हलक़ा लोक सभा को मुंतख़ब किया। इस जलसा के ज़रीया वो ये साबित करना चाहते थे कि इलाक़ा तलंगाना के अवाम अलैहदा रियासत के बजाय तरक़्क़ी चाहते हैं।

किरण कुमार रेड्डी के ग़ुस्सा का इज़हार उस वक़्त हुआ जब इस जलसा में ख़वातीन ने नारे लगाते हुए एक रुपया केलो चावल स्कीम को मुस्तर्द करदिया। ख़वातीन ने ज़रूरी अशीया की क़ीमतों में कमी लाने का मुतालिबा किया। एक रुपया केलो स्कीम के तहत नाक़िस चावल की सरबराही पर ख़वातीन ने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करदी। चीफ़ मिनिस्टर के लिए इस नाराज़गी का नोट लेना अज़हद ज़रूरी है कि इन की असकीमात के बाइस अवाम को राहत और ख़ुशी के बजाय तकलीफ़ और नाराज़ी पैदा होरही ही। उन्हों ने डसमबर तक लाखों नौजवानों को रोज़गार देने का वादा किया है।

महबूबनगर के कुलैक्टर को भी उन्हों ने हिदायत दी है कि राजीव युवा करना लो के तहत 30 हज़ार के बजाय 50 हज़ार नौजवानों को रोज़गार फ़राहम किया जाई। ये किस तरह मुम्किन है और इस पर किस हद तक अमल आवरी होगी। बहुत जल्द राज़ फ़ाश होगा। हुकूमत की असकीमात के ख़द्द-ओ-ख़ाल बड़ी हद तक वाज़िह हो चुके हैं। हुकूमत के कारिंदों को तो उन असकीमात के अच्छे इमकानात दिखाई दे रहे हैं मगर अवाम के लिए ये असकीमात सिफ़र फ़ायदा रखती हैं। अवाम को ये वाज़िह इलम होना चाहीए कि इन के लिए हुकूमत जो कुछ कररही है इस का फ़ायदा किस को हासिल हो रहा है।

अवाम बड़े मुहज़्ज़ब अंदाज़ में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। इस का मतलब ये नहीं है कि हुकूमत की कारकर्दगी और असकीमात की ख़राबियों के बावजूद वो हुकूमत को बर्दाश्त करने के आदी होरहे हैं। अवाम ने ख़ुद को तहम्मुल और बर्दाश्त की एक बेहतरीन मिसाल के तौर पर पेश करना चाहते हैं ताकि वक़्त आने पर वो अपनी शराफ़त को ही मोस्सर हथियार बनाकर हुकूमत को सबक़ सिखा सकें। हुकूमत अगर अपनी फ़ित्री लग़ज़िशों से बाज़ ना आए तो उसे इंतिख़ाबात की लकीर को उबूर करने की इजाज़त नहीं दी जाएगी।

किरण कुमार रेड्डी को जो 2014 -ए-के असैंबली इंतिख़ाबात में अपना लोहा मनवाना चाहते हैं अवाम की नाराज़गी मोल लेनी नहीं चाहीए वर्ना उन्हें असैंबली इंतिख़ाबात की लकीर से पीछे हटने की ज़हमत करनी पड़ेगी।