ख़वातीन के हक़ राय दही पर सऊदी आलिम नाराज़

रियाज़ -3/ अक्तूबर (राईटर) सऊदी अरब में ख़वातीन को हक़ राय दही दिए जाने पर दबी ज़बान में एतराज़ शुरू होगया है। सऊदी के सरकरदा उलमा कौंसल के रुकन शेख़ सालिह अलहीदान ने ढके छिपे अलफ़ाज़ में अपनी नाराज़गी का इज़हार करते हुए कहा कि ख़वातीन को मज़ीद ज़सयासी हुक़ूक़ दिए जाने से क़बल उन से मश्वरा नहीं किया गया। वाज़िह रहे कि सऊदी अरब ने शाह अबदुल्लाह ने गुज़श्ता हफ़्ता अपनी एक तक़रीर में कहा था कि ख़वातीन वहां आइन्दा बलदियाती कौंसल के इंतिख़ाब में वोट डाल सकती हैं और वो शौरी कौंसल की रुकन भी होसकती हैं जो शाह को पालिसी अदा करने में मश्वरा देता है।शाह अबदुल्लाह ने अपनी तक़रीर में कहा कि उन्हों ने ये फ़ैसला मलिक के कई सरकरदा और बारसूख उलमा से मश्वरा के बाद क्या है। दूसरी तरफ़ शेख़ सालिह अलहीदान ने अलमजद टैली वीज़न चैनल पर कहा कि काश कि शाह अबदुल्लाह ने ऐसा नहीं कहा होता कि मैंने उलमा से मश्वरा किया ही।शेख़ एलिसा ला अलहीदान ने कहा कि शाह अबदुल्लाह की तक़रीर से क़बल मुझे इस सिलसिला में कुछ भी नहीं मालूम था ना मुझ से कोई राबिता किया गया था। उन्हों ने कहा कि शाह अबदुल्लाह की तक़रीर सुनने के बाद ही मुझे मालूम हुआ कि ख़वातीन को हक़ राय दही देने का फ़ैसला किया गया। सऊदी अरब में कोई भी आलिम निहायत मुहतात अंदाज़ में अपनी राय देता है और कोई भी खुल कर नहीं कहता कि वो शाह की इस्लाहात की हिमायत करता है या नहीं। शेख़ एलिसा ला ने बराह-ए-रास्त जवाब दिए बगै़र एक अरबी मुहावरा की मदद से मुतनब्बा किया कि अगर उलमा और अवाम के दरमयान राबिता के धागे को ज़्यादा खींचा जाएगा तो वो टूट जाएगा।उमूमन सऊदी आलिम शाह के फ़ैसला से ख़ुश नहीं रहते। 2009 मैं मख़लूत तालीम की ग़रज़ से यूनीवर्सिटी क़ायम किए जाने के बाद एक सीनीयर आलम ने नाराज़गी का इज़हार किया था जिस पर उन्हें ओहदे से हटा दिया गया था।ख़ुद शेख़ सालिह को जो इंसाफ़ से मुताल्लिक़ सुप्रीम कौंसल के सरबराह थे , अपने इस फ़ैसला के बाद ओहदा छोड़ना पड़ा था जिस में उन्हों ने टेलीविज़न के कुछ आफ़िसरान को क़तल किए जाने का फ़ैसला किया था