ख़ानक़ाहें तर्बीयत‍ ओ‍ किरदार साज़ी के मराकीज़

ज़ेर तरबियत अफ़राद से मुहब्बत रखना और उन की ख़ुशी को अपनी ख़ुशी जानना और उन के दुख दर्द को अपना दुख दर्द समझना और उन की दिलजोई का सामान करना ,अमली तौर पर इन से कुछ कोताहियां होरही होँ तो हकीमाना उस्लूब इख़तेयार करके उन को मौक़ा व महल की मुनासबत से इस तरह समझाना कि इन के जज्बात को कोई ठेस ना पहूंचने पाए और उन के दीलों के आबगीने कहीं चिकना चोर ना हूजाएं, हिक्मत व दानाई व दानीशमनदी को काम में लाना एक मुरब्बी के लिए निहायत ज़रूरी भी है

ये हक़ीक़त है कि ज़ेर तरबियत अफ्राद के इंसानी जज्बात व एहसासात को मल्हूज़ रखना और उन को तामीरी रुख देने ही का नाम तरबियत है , ये फ़ित्री बात हे कि इंसानी जज्बात व एहसासात को ना समझा जाय और मुतास्सिर होकर जज्बात व गुस्सा से काम लिया जाय तो ख़ुशगवार हालात पैदा होने के बजाय नाख़ुशगवार रद्द-ए-अमल का सामना होता है , ख़ुशगवार नताइज की तलब हो तो एक मुरब्बी को निहायत हिक्मत व दानाई से काम लेकर ज़ेर तरबियत अफ़राद के जज्बात को दरुस्त रुख की तरफ़ मोड़ना ज़रूरी होजाता है,और इस सिल्सिला में शिद्दत व सख़ती के बजाय नरमी बड़ा मूअस्सिर रोल अदा करती है ,इसी लिए नबी पाक ने
तालीम वतरबियत‌,इस्लाह व तज़किया का काम बहुत हि नरमी व महरबानी के साथ फ़रमाया है, चुनांचे आप ने अफ़राद उम्मत को इस बात की हिदायत फ़रमाई। कि तुम लोगों के साथ नरमी और आसानी की राह इख़तियार करो और उन के लिए मुश्किलात मत पैदा करो , ख़ुशख़ब्री सुनाओ उन को मुतनफ़्फ़िर मत बना दो ( बुख़ारी जलद२ किताब अलादाब सफ़ा ९०४) और फ़रमाया। कि यक़ीनन अल्लाह नरम व महरबान है,नरमी व महरबानी को पसंद फ़रमाता है,और इस सिफ़त पर माद्दी वरुहानी हर तरह की नेमतें इस क़दर अता फ़रमाता है कि शिद्दत व सख़ती पर इत्ना इनाम नहीं फ़रमाता।

नबी पाक ए की ज़ात अक़्दस बे निहायत रहीम व महरबान थी ,हक़ सुब्हाना वत्ताली ने आप के इस आली वस्फ़ का ज़िक्र क़ुरान-ए-पाक में फ़रमाया है । ए हबीब ये अल्लाह की रहमत है कि आप उन पर बे निहायत नरम व महरबान हैं, कहीं आप तुंद ख़ू व सख़त होते तो ये लोग आप के करीब ना होते।( प४ सूरत आल-ए-इमरान,जुज़-ए-आयत १५९) इरशाद फ़रमाकर अल्लाह सुब्हाना वत्ताली ने आप की रा॔फ़त व रहमत का तज़किरा फ़रमाया है ।