ख़ौफ़-ए-ख़ुदा में रोना

हज़रत सलीम बिन मंसूर रह०फ़रमाते हैं कि मैंने ख़ाब में अपने मरहूम वालिद हज़रत मंसूर बिन अम्मार रह० को देखा और पूछा अब्बा जान! आप के साथ अल्लाह तआला ने कैसा सुलूक फ़रमाया? तो उन्होंने फ़रमाया बेटा! अल्लाह तआला ने मुझे अपने सामने बुलाकर फ़रमाया ऐ मंसूर! जानते हो मैंने तुम्हारी मग़फ़िरत क्यों फ़रमाई?। मैंने अर्ज़ किया नहीं, या अल्लाह! मैं नहीं जानता।

रब तबारक‍ ओ‍ तआला ने फ़रमाया एक रोज़ मजलिस-ए-वाज़ में तुमने ऐसा वाज़ सुनाया कि इस मजलिस में मेरा एक गुनहगार बंदा भी था, जो उम्र भर मेरे ख़ौफ़ से कभी नहीं रोया था। उस रोज़ तुम्हारा वाज़ सुन कर मेरे ख़ौफ़ से वो गुनहगार बंदा भी रोने लगा।

पस इस के रोने से मेरी रहमत जोश में आई और मैंने उसे और इस के सदक़े में सारी मजलिस को और तुम्हें भी बख़्श दिया।
(शरह अलसदूर।११८, अज़: इमाम सयोती)

इसी तरह का एक वाक़िया हज़रत इमाम सयोती रह० ने हज़रत उमर बिन अब्दुल-अज़ीज़ रह० का भी लिखा है। हज़रत इमाम सयोती लिखते हैं कि हज़रत उमर बिन अब्दुल-अज़ीज़ रह० के साहबज़ादे ने ख़ाब में अपने मरहूम वालिद माजिद को देखा और दरयाफ़्त किया अब्बा जान! आप ने कौन सा अमल तमाम आमाल में सब से अफ़ज़ल पाया? तो उन्हों ने जवाब दिया बेटा! अल्लाह से डरकर अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते रहना। (शरह अल सदोर।१२०)

वाज़िह रहे कि अल्लाह तआला के ख़ौफ़ से रोना बहुत अच्छा अमल है, इस अमल से गुनाह माफ़ हो जाते हैं और ये भी मालूम हुआ कि बख़्शे हुओं के तुफ़ैल में दूसरे गुनहगार भी बख़्श दिए जाते हैं। इसीलिए कहा गया है कि अल्लाह वालों की महफ़िल में बैठा करो, ताकि किसी अल्लाह के नेक-ओ-मग़फ़ूर बंदे के तुफ़ैल में तुम्हारी भी मग़फ़िरत हो जाये।

यक़ीनन हम सब को अल्लाह तआला से डरते रहना और अपने गुनाहों की माफ़ी तलब करना चाहीए।