हज़रत अबूज़र रज़ी अल्लाहु तआला अनहु कहते हैंके मेरे ख़लील (हुज़ूर नबी करीम स०) ने मुझ को सात बातों का हुक्म दिया है।
चुनांचे आप(स०)ने एक हुक्म तो ये दिया कि में फ़िक़रा-ओ- मसाकीन से मुहब्बत करूं और उनसे क़ुरबत रखों।
दूसरा हुक्म ये कि में उस शख़्स की तरफ़ देखूं, जो (दुनियावी एतेबार से) मुझ से कमतर दर्जे का है और उस शख़्स की तरफ़ ना देखूं जो (जाह-ओ-माल और मंसब में) मुझ से बालातर है।
तीसरा हुक्म ये दरिया कि में क़राबत दारों से नातेदारी को क़ायम रखों, अगरचे कोई (क़राबतदार) नातेदारी को मुनक़ते करे।
चौथा हुक्म ये दिया कि में किसी शख़्स से कोई चीज़ ना मांगों।
पांचवां हुक्म ये दिया कि में (हर हालत में) हक़ बात कहूं अगरचे वो (सुनने वाले को) तल्ख़ और ग़ैर ख़ुश आइंद मालूम हो।
छटा हुक्म ये दिया कि में ख़ुदा के दीन के मुआमले में और अमर बिलमारुफ़-ओ-नही उन अलमनकर के सिलसिले में मलामत करने वाले की किसी मलामत से ना डरों
सातवां हुक्म ये दिया कि में कसरत के साथ लाहौल वलाक़ोवाता इल्ला बिलल्ला का वरद रखों।
(फिर आप(स०) ने फ़रमाया कि) पांचवें ये सातों बातें और आदतें इस ख़ज़ाना की हैं, जो अर्श इलहि के नीचे है (और जिस से फ़्यूज़-ओ-बरकात नाज़िल होते हैं)। (अहमद)
हज़रत मिला अली क़ारी(RH) हदीस पाक की तशरीह करते हुए फ़रमाते हैंके लाहौल वलाक़ोवता इल्ला बिलल्ला दरअसल इस गंज माअनवी का एक हिस्सा है, जो अर्श इलहि के नीचे महफ़ूज़ रखा गया है और गंज माअनवी तक उस शख़्स के अलावा किसी और की रसाई नहीं होसकती, जिस को ख़ुदा की तरफ़ से हवल-ओ-क़ुव्वत यानी क़ुदरत-ओ-ताक़त हासिल हो। या ये मानी हैंके ये अलफ़ाज़ (लाहौल वलाक़ोवता इल्ला बिलल्ला) जन्नत के ख़ज़ानों में से एक ख़ज़ाना हैं।