तारीख़ी गोलकुंडा के इलाक़ा में कई अजाइब पाए जाते हैं। इन के इलावा कई मसाजिद भी हैं जो वीरान हो गई हैं। नया क़िला में 400 साला क़दीम मस्जिद है जिस को मस्जिद मिला ख़्याली कहा जाता है।
ये वसीअ और पुरशिकोह मस्जिद क़िला गोलकुंडा की फ़सील में मशहूर हथयान का दरख़्त के रूबरू वाक़्य ही। वक़्फ़ बोर्ड के रिकार्ड में इस की तफ़सील भी दर्ज है जिस के मुताबिक़ इस का सर्वे नंबर 40 बताया गया है।
वार्ड नंबर 9 है जबकि गज़्ट का नंबर 13२ है। मस्जिद मिला ख़्याली का तज़किरा 270 नंबर पर के सीरीयल में है जो सफ़ा 17 पर दर्ज ही। गज़्ट पर 29 मार्च 1984-ए-की तारीख़ है। मस्जिद की अराज़ी महिज़ हमारी लापरवाही और वक़्फ़ बोर्ड के मुजरिमाना तग़ाफ़ुल या नाएहली की वजह से गोल्फ ग्राउन्ड् को दे दी गई है।
मज़कूरा मस्जिद की अराज़ी का कोई मुस्तनद और सही रिकार्ड नहीं है। कोई हिसाब किताब नहीं ही। मुक़ामी समाजी कारकुनों का कहना है कि कई एकड़ अराज़ी इस मस्जिद के तहत थी जिस को गोल्फ कलब वालों ने अपने क़बज़ा में ले लिया है और वक़्फ़ बोर्ड के रिकार्ड में भी ग़लत इंदिराजात किए गए हैं, हालाँकि मस्जिद के अतराफ़ कई क़ुबूर मौजूद हैं जिन को आहिस्ता आहिस्ता मिटाने की कोशिश की जा रही है।
मस्जिद मिला ख़्याली से लगाकर गोल्फ मैदान वालों ने वसीअ मैदान तैय्यार कर लिया है और ये सब कुछ वक़्फ़ बोर्ड के साथ मिली भगत के बगै़र नहीं किया जा सकता। कहने को तो मस्जिद मिला ख़्याली आरक्योलोजी के क़बज़ा में है लेकिन सारा कंट्रोल गोल्फ कलब के हाथ में है।
स्कियोरटी वाले रात दिन गेट पर मौजूद रहते हैं। हर आने जाने वाले पर नज़र रखी जाती ही। मस्जिद को हमेशा ताला लगा रहता है। इस मस्जिद की तामीर 1569 -ए-में हुई थी ।
इस मस्जिद के सामने 450 साला क़दीम हथयान का दरख़्त भी है जिसे देखने के लिए सारी दुनिया से सय्याह आते हैं। इस दरख़्त की ख़ास बात ये है कि इस के तने (Trunk) में 15 आदमी उतर सकते हैं। मस्जिद मिला ख़्याली सतह ज़मीन से 15 फ़ीट बुलंदी पर वाक़्य ही। इस की 15 कमानें हैं। तारीख़ी मस्जिद को देखने वालों की गाड़ीयों के नंबर भी नोट किए जाते हैं। मुक़ामी समाजी कारकुनों ने मशहूर इन्क़िलाबी शायर ग़दर तलंगाना प्रजा पार्टी के सदर-ओ-टी आर ऐस लीडर को मस्जिद का मुआइना करवाया जो गोल्फ ग्राउन्ड् की तामीरी सरगर्मीयां देखने आए थॆ।
इस के इलावा गोलकुंडा पुलिस स्टेशन में शिकायत भी दर्ज कराई गई कि फ़ौरी तौर पर गोल्फ ग्राउन्ड् मैं तामीरी सरगर्मीयां रोक दी जाएं। इस सिलसिले में इक़दामात किए जाएं। यहीं ग़दर और वेद कुमार को पता चला कि बिलकुल क़रीब में दो मसाजिद मिला ख़्याली और मस्जिद मुस्तफ़ा ख़ां भी हैं।
दोनों ने मसाजिद का दौरा किया। खासतौर पर मस्जिद मिला ख़्याली की बनावट और ख़ूबसूरती को देख कर वो बेहद हैरतज़दा हुई। ये उन की वसीअ उल-नज़री थी जिस के लिए वो शौहरत भी रखते हैं। सवाल ये है कि क्या हम अब इस काबिल भी नहीं रहे कि अपने बुज़ुर्गों की दी हुई अमानतों की हिफ़ाज़त कर सकें।
समाज के दौलत मंदों और अमीरों ने इस मस्जिद की अराज़ी को गोल्फ खेल की मैदान बनादिया। हम ख़ामोश तमाशाई बने रही। एक इबादतगाह को खेल के मैदान में तबदील करदिया गया और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। मस्जिद मिला ख़्याली का ये हश्र देख कर अफ़सोस होता है और हमारी बेख़बरी पर मातम करने को दिल चाहता है।
मस्जिद के क़रीब वाक़्य क़ब्रिस्तान पर ग़दर ने गुलहाए अक़ीदत का नज़राना भी पेश किया और वाअदा किया कि वो मस्जिद का ताला खुलवाने की कोशिश करेंगी। पासबां मिल गए काअबा को सनम ख़ाना सी शायद अल्लामा इक़बाल ने ये शेअर ऐसे ही मौक़ा केलिए कहा था। उन्हों ने कहा कि वो चीफ़ मिनिस्टर से मुलाक़ात करेंगे।
हम हैं कि घरों में बैठे हुए हैं। बेहिस-ओ-हरकत हैं। ताला खुलवाने का हमें हक़ है और हक़ को माँगना पड़ता है। ख़ामोशी को तो नीम रजामंदी समझा जाता ही। ग़दर ने ये भी कहा कि यहां गोल्फ ग्राउन्ड् बनाने की इजाज़त किस ने दी, कैसे दी, क्या मुआमलत मैं रुकमी लेन देन भी हुई ही? कितने सियासतदानों की हथेलियां गर्म हुईं। ये सारी बातें मुअम्मा बनी हुई हैं। इन की जांच की जानी चाआई।उन्हों ने मुक़ामी लोगों से पूछा कि आप लोग क्यों ख़ामोश रही।
आख़िर में ग़दर ने कहा कि हुकूमत को इस का जवाब देना पड़ेगा। क्या मस्जिदों और क़ब्रिस्तानों की ज़मीनों पर अमीरों का शौक़ पूरा किया जाएगा।