मुख्तसर सा हिसाब लिखता हूँ
ग़म की कोई किताब लिखता हूँ
तेरे हर इक सवाल के बदले
मैं पुराना जवाब लिखता हूँ
उसके चेहरे पे कितने चेहरे थे,
लिखते लिखते हिजाब लिखता हूँ
क्या लिखूं पिछली रात के सदक़े
ख्व़ाब देखा था ख्व़ाब लिखता हूँ
एक दुनिया के देखने के बाद
सारी दुनिया ख़राब लिखता हूँ
(अरग़वान रब्बही)