ग़रीब मुसलमानों को जन्नत की बशारत

हज़रत ओसामा बिन जै़द रज़ी० से रिवायत है कि (एक दिन) रसूल करीम सअ०व० फ़रमाने लगे कि में (मेराज़ की रात, या ख़ाब में या हालत कश्फ़ में) जन्नत के दरवाज़े पर खड़ा था (मैंने देखा कि) जो लोग जन्नत में दाख़िल हुए हैं, इन में ज़्यादा तादाद ग़रीबों की है और मालदारों को क़यामत के मैदान में रोक कर रखा गया है।

अलबत्ता अस्हाब नार यानी काफ़िरों को दोज़ख़ में ले जाने का हुक्म दे दिया गया है और जब मैं दोज़ख़ के दरवाज़े पर खड़ा हुआ तो देखा कि जो लोग दोज़ख़ में डाले गए हैं इन में ज़्यादा तादाद औरतों की है। (बुख़ारी-ओ-मुस्लिम)

हासिल ये कि मोमिनीन में से जो लोग इस फ़ानी दुनिया में मालदारी, तमोल और जाह-ओ-मंसब की वजह से ऐश-ओ-इशरत की ज़िंदगी इख़्तेयार किए हुए हैं, उन को जन्नत में जाने से उस वक़्त तक के लिए रोक कर रखा जाएगा, जब तक उन से अच्छी तरह हिसाब नहीं ले लिया जाएगा।

चुनांचे उस वक़्त वो लोग इस बात से सख़्त रंज-ओ-ग़म महसूस करेंगे कि उन्हें दुनिया में माल-ओ-ज़र की कसरत और जाह-ओ-मंसब की वुसअत क्यों हासिल हुई और वो अपनी ख़ाहिशात नफ्स के मुताबिक़ दुनियावी लज़्ज़ात-ओ-इशरत से क्यों बहरामंद हुए।

क्योंकि ज़ाहिर है कि अगर उन से उन दुनियावी उमूर का इर्तिकाब हुआ होगा, जिन को हराम क़रार दिया गया है तो वो अज़ाब के हकदार होंगे और अगर उन्होंने महज़ इन चीज़ों को इख़्तेयार किया होगा, जिन को हलाल क़रार दिया गया है, तब भी उन्हें हिसाब-ओ-किताब के मरहला से बहरहाल गुज़रना पड़ेगा।

जब कि फ़ोक़रा ओ मुफ़लिस लोग इससे बरी होंगे कि ना तो उन से हिसाब लिया जाएगा और ना उन्हें जन्नत में जाने से रोका जाएगा, बल्कि वो मालदारों से चालीस साल पहले जन्नत में चले जाएंगे। गोया उन का जन्नत में पहले जाना इन नेअमतों के एवज़ होगा, जिन से वो दुनिया में महरूम रहे होंगे।