आगरा, २८ दिसम्बर: (आई ए एन ऐस) दिल नादां तुझे हुआ क्या है , आख़िर इस दर्द की दवा किया है। ये और ऐसे दीगर हज़ारों अशआर के शायर मिर्ज़ा ग़ालबऔ ऐसी शख़्सियत का नाम है जिसे हर उर्दू दां के इलावा ग़ैर उर्दू दां भी जानता है और उन के हज़ारों अशआर उन के परसितारों को अज़बर हैं।
मिर्ज़ा ग़ालिब का 215 वां यौम-ए-पैदाइश यहां मनाया गया, लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि आगरा की जिस हवेली में मिर्ज़ा ग़ालिब की पैदाइश 1797 में हुई थी, वो आज एक लड़कीयों के कॉलेज में तबदील होचुका है।
काला महल नामी इलाक़े के लोगों को ये भी नहीं मालूम मिर्ज़ा ग़ालिब जैसे उर्दू के अज़ीम शायर वहीं पैदा हुए थे। सोनी टी वी के करतार सिंह ने बताया कि ये एक अलग बात है कि लोग मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी के दीवाने हैं, लेकिन मुक़ामी लोग ग़ालिब का कोई एहतिराम नहीं करते।
गुज़शता दो हफ़्तों से करतार सिंह ग़ालिब की ग़ज़लें एक प्रोग्राम में पेश कररहे हैं। आगरा होटल्स ऐंड रेस्टुरेन्ट एसोसीएसन के साबिक़ सदर संदीप अरोड़ा ने कहा कि जब पाकिस्तान और दीगर ममालिक के सय्याह मुतालिबा करते हैं कि उन्हें ग़ालिब की जाय पैदाइश पर ले जाया जाये तो उस वक़्त उन्हें बड़ी शर्मिंदगी होती है।