ग़िजाईयत की कमी तशवीशनाक मसला

हिंदूस्तान की तरक़्क़ी, रिश्वतखोरी के ख़िलाफ़ मुहिम , अवाम की ख़ुशहाली, इफ़रात-ए-ज़र में इज़ाफ़ा, ग़रीबों की फ़लाह-ओ-बहबूद, इलाक़ाई मसाइल वफ़ाक़ी ढांचा को मज़बूत बनाने के मुतालिबात अवाम के जज़बा-ओ-एहसास की आसूदगी और हुकूमतों के अच्छे इंतिज़ामात की सताइश ख़राबियों पर तन्क़ीदों के दरमयान जब वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ये कहते हैं कि मुल्क में नाक़िस ग़िज़ा या तग़ज़िया बख़श ग़िज़ा ना मिलने से कई मासूम बच्चे अपनी ज़िंदगी की ख़ुशगवार बहारें देखने से क़बल ही मुरझा जाते हैं तो ये क़ौमी शर्मिंदगी की बात है ।

एक माहिर मआशियात की ज़बान से निकलने वाले अलफ़ाज़ क़ौमी तरक़्क़ी के तमाम बुलंद दावाओं को खोखला साबित करते हैं। वज़ीर-ए-आज़म ने मुल्क में ग़ुर्बत और ग़िज़ाई अदम सलामती के दरमयान पाई जाने वाली तकलीफ़देह बल्कि बाइस-ए-शर्म हक़ीक़त का नोट लिया है।

इन के इस अंदाज़ फ़िक्र से यू पी ए हुकूमत पर अज़खु़द दबाव बढ़ेगा कि मुल्क में घरेलू मजमूई पैदावार में काबुल लिहाज़ इज़ाफ़ा के बावजूद नाक़िस ग़िजाईयत या तग़ज़िया बख़श ग़िज़ा ना मिलने के वाक़ियात की हद में इज़ाफ़ा हो रहा है।

मुल्क की छः रियास्तों में ज़ाइद अज़ एक लाख बच्चों का क़द और वज़न महस अच्छी ग़िज़ा ना मिलने की वजह से घटना और कम होता गया है। पाँच साल से कम उम्र् के 42 फ़ीसद बच्चों का वज़न तशवीशनाक हद तक कम है।

इन में 59 फ़ीसद बच्चे दीगर बच्चों के मुक़ाबले छोटे क़द के हैं। नंदी फाउंडेशन की जानिब से की गई तहक़ीक़ से पता चला है कि मुल़्क की छः रियास्तों बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 100 से ज़ाइद अज़ला में बच्चों की सेहत और ग़िजाईयत का मुआमला तशवीशनाक हद तक रिकार्ड किया गया है।

सर्वे से पता चलता है कि कम आमदनी वाले ख़ानदानों से ताल्लुक़ रखने वाले बच्चे तग़ज़िया की कमी से पाई जाने वाली ख़राब सेहत और बीमारीयों से मुतास्सिर हैं। इन में ज़्यादा तर एस सी, एस टी और मुस्लिम ख़ानदानों के बच्चे शामिल हैं। मुस्लमानों के बच्चों में तग़ज़िया की कमी और ग़ुर्बत ज़दा मुस्लिम ख़ानदानों की तादाद का अंदाज़ा होने के बाद मुस्लिम मुआशरा के लिए ये सर्वे दर्दनाक और तकलीफ़देह हो जाता है।

मुस्लमानों में जहां शरई उसूलों और ज़कात-ओ-सदक़ात की ताकीदें पाई जाती हैं, क़ुरआन-ओ-सुन्नत की रोशनी में एक मुस्लिम मुआशरा तशकील पाता है तो वहां उन के बच्चे अच्छी ग़िज़ा से महरूम रहते हैं , फिर मुस्लमानों की दीनी-ओ-फ़लाही या ज़कात इकट्ठा करके ग़रीबों की मदद करने में मसरूफ़ तंज़ीमों के लिए ये वाक़ियात गौरतलब हैं। ख़ुद मुस्लिम मुआशरा के ज़िम्मा दारान के लिए भी ये सर्वे आँख खोल देने के लिए काफ़ी है।

अगर चीका बच्चों में तग़ज़िया की कमी नाक़िस ग़िजाईयत का मसला क़ौमी नौईयत का है मगर इस मसला से सब से ज़्यादा मुस्लिम बच्चे मुतास्सिर हूँ तो फिर मुस्लमानों का दीनी फ़रीज़ा और शरई ज़िम्मेदारों की कोताहियों या अदम तवज्जही से रौनुमा होने वाली अफ़सोसनाक ख़राबियां आशकार हुई हैं।

बच्चों में तग़ज़िया की कमी का मसला ग़ुर्बत से मरबूत है जब ख़ानदान ग़ुर्बत का शिकार हो तो अच्छी ग़िज़ा का तसव्वुर मुश्किल है। मुस्लिम मुआशरा में ज़कात, सदक़ात, अतायात और दीगर तरीक़ों से रक़ूमात जमा करने का मुआमला सरगर्मी से पाया जाता है तो फिर इस तरह की रक़ूमात की वसूली और उन के मसारिफ़ का मक़सद और मंशा-ए-क्या होना चाहीए, ये गौरतलब है।

जब मुस्लमानों के बच्चे फ़ाक़ाकशी का शिकार हूँ तो ज़कात की अदायगी का दीनी जज़बा मुस्लमानों को दावत फ़िक्र देता ही। अगर चीका उस वक़्त इस सर्वे से आने वाली सच्चाई एक क़ौमी मसला है मगर इस सच्चाई का तल्ख़ पहलू ये है कि मुस्लमानों के बच्चे अपने निज़ाम ज़िंदगी को तरस रहे हैं। बच्चों में ग़िज़ा की कमी, नाक़िस ग़िज़ा या फिर तग़ज़िया बख़श ग़िज़ा ना मिलने की वजह से बीमारीयों का घर जाना मुम्किन है मगर क़ौमी-ओ-रियास्ती सतह पर सरकारों को अपनी पालिसीयों और ग़ुर्बत के ख़ातमे के लिए की जा रही कोशिशों का संजीदगी से जायज़ा लेने के लिए ये सर्वे एक अहम दस्तावेज़ है।

हिंदूस्तान जैसे कसीर आबादी वाले मुल्क में अगर 6 साल से कमउमर के बच्चों की तादाद ग़िजाईयत की कमी का शिकार हो तो फिर मलिक का मुस्तक़बिल ताबनाक होने की उम्मीद किस तरह की जा सकेगी। वज़ीर-ए-आज़म ने अज़खु़द इस पर अफ़सोस का इज़हार किया है और उसे शर्मिंदगी का बाइस क़रार दिया है।

6 साल से कम बच्चों की तादाद तक़रीबन 16 करोड़ है। आने वाले बरसों में ये बच्चे मलिक के बेहतर शहरी होंगी, इन में से कोई साईंसदाँ, किसान, असातिज़ा, डाटा ऑप्रेटर , दस्तकार और सर्विस प्रोवाइडर्स् बनेंगे मगर इन में से एक बड़ी तादाद अच्छी ग़िज़ा की कमी से ठिठुर रही है तो फिर हिंदूस्तान का मुस्तक़बिल भी सिकुड़ता जाएगा। सर्वे से हुकूमत और इस के सरबराह की आँखें खुल जाएं तो ये एक बेहतर तबदीली होगी।

हुकूमत अब अपने कामों का मुहासिबा करके मुल़्क की मुख़्तलिफ़ रियास्तों, शहरों, अज़ला और देही इलाक़ों में इन ग़रीब अफ़राद तक ग़िज़ा फ़राहम करने का बंद-ओ-बस्त करने के साथ अच्छी तग़ज़िया बख़श ग़िज़ा की फ़राहमी पर भी जंगी बुनियादों पर इक़दामात करे। आंगन वाड़ी मराकज़ को मज़ीद मज़बूत-ओ-मुस्तहकम बनाकर बल्कि उन्हें वुसअत दे कर बेहतर ग़िज़ा फ़राहम करने का इंतिज़ाम किया जा सकता है ।

मुल्क़ के 96 फ़ीसद मवाज़आत में आंगन वाड़ीयाँ हैं लेकिन इन में से सिर्फ 61 फ़ीसद आंगन वाड़ीयाँ ज़ाती इमारतों में काम कर रही हैं। इन को पुख़्ता मकान फ़राहम करने के इलावा इस तरह के इदारों पर तवज्जा दी जाकर ग़रीब के घर तक अच्छी ग़िज़ा की फ़राहमी को यक़ीनी बनाया जाना चाहीए।

इस ख़सूस में 2 लाख करोड़ की ज़रूरत को पूरा करने हुकूमत की ज़िम्मेदारी है। मुस्लिम मुआशरा के ज़िम्मेदारों, मज़हबी तंज़ीमों, ज़कात-ओ-सदक़ात की वसूली के ज़रीया फ़लाही काम अंजाम देने वाले इदारों को भी अपने कामों के दायरा को वसीअ करने की ज़रूरत है।