ग़ुर्बत और जराइम का चोली दामन का साथ : तिहाड़ जेल डाटा

नई दिल्ली, ०२ फरवरी (पी टी आई ) एशिया-ए-की आज़म तरीन जेल तिहाड़ जेल के कैदियों के डाटा का अगर मुताला किया जाय तो एक बात वाज़िह हो जाती है कि जुर्म और ग़ुर्बत का चोली दामन का साथ है ।

जायज़े के मुताबिक़ तिहाड़ जेल के 92 फीसद कैदी ऐसे हैं जिन का ताल्लुक़ समाज के निचले तबक़ा से है । 2011 के दौरान तैयार किए गए डाटा के मुताबिक़ तिहाड़ जेल में मौजूद 12.124 कैदियों में 92 फीसद कैदी ऐसे हैं जिन की माहाना आमदनी 8000 रुपय से ज़ाइद नहीं थी ।

तिहाड़ जेल के ला ऑफीसर और तर्जुमान सुनील गुप्ता ने बताया कि तिहाड़ जेल में मौजूद 75 फीसद कैदी ऐसे हैं जिनकी गिरफ़्तारी के वक़्त उन की सालाना आमदनी 50,000 रुपये थी । जेल में मौजूद 2414 कैदी ऐसे हैं जो अपनी गिरफ़्तारी के वक़्त ज़राअती लेबर के तौर पर अपनी ख़िदमात अंजाम दिया करते थे जबकि 536 कैदियों की तादाद इन किसानों पर मुश्तमिल है जो ख़ुद अपने खेतों में पैदावार करते थे जिन में बीज बौना और हल चलाना वगैरह शामिल हैं।

तिहाड़ जेल में नाख़्वान्दा कैदियों के लिए तालीमी प्रोग्राम भी शुरू किया गया है । मिस्टर गुप्ता ने कहा कि इस बात का बख़ूबी अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि नाख़्वान्दगी ग़ुर्बत और जराइम एक दूसरे से मरबूत हैं। उन्हों ने कहा कि नाख़्वान्दा कैदी अगर थोड़ी बहुत काम चलाउ तालीम भी हासिल कर लें तो जेल से बाहर जाने के बाद वो कम से कम जराइम की जानिब दुबारा राग़िब नहीं होंगे।

हमारा मक़सद जुर्म को ख़तम करना है , मुजरिम को नहीं । इस तरह मुख़्तलिफ़ प्रोग्राम्स के ज़रीया कैदियों को तरेब दी जाती है। ख़वांदगी के प्रोग्राम को पढ़ाव से मौसूम किया गया है ।